मौसम के मिज़ाज और खेती




भारत के विभिन्न भागों में वर्ष 2020 में विगत वर्षों की तुलना में अधिक वर्षा हुई। जिससे खास तौर पर गंगा-यमुना-कोसी के जलोढ़ मैदानी इलाकों में बाढ और सामान्य से अधिक समय तक जल जमाव जैसी समस्याओं का सामना किसानों को करना पड़ा। परिणामस्वरूप खरीफ फसल तो बर्बाद हुई हीं, बहुत बड़े कृषि योग्य भू-भाग में रबी फसलों की बोआई/बीजाई न हो सकी। तिलहन फसलों में सर्व-प्रमुख सरसो-तोरी-राई की खेती बहुत ही सीमित क्षेत्र में हो पायी। अर्थात तिलहन उत्पादन में भारी गिरावट होना तय है। किन्तु इन सब हानियों से परे दीर्घकालिक फायदे की बात करें तो दो मुख्य बातें हाईलाईट होती हैं :  (1) भूमि की उर्वराशक्ति को पुनर्जीवित होने का मौका मिला। 

(2) भूमिगत जलस्तर में व्यापक रूप से सुधार हुआ है। 

मानसून के दौरान जलमग्न हुई भूमि का वह भाग जो रबी फसलों सरसो, गेहूं की बुवाई की समय सीमा बीत जाने के बाद जनवरी मध्य तक सूख पाया है, उसके लिए सामान्य तौर पर किसान भाई मूँग और तिल की खेती करने की सोच रहे हैं। मोटे तौर पर यह उचित भी है। 

                            बिहार-उत्तर प्रदेश के चौर(अवतल प्रारूप वाली भूमि) संभवतः मूँग की खेती के लिए इस वर्ष बहुत कम उपलब्ध होंगे। इसलिए मूँग का कुल उत्पादन घटेगा और मूल्य वृद्धि होने की संभावना है। उल्लेखनीय है कि मूँग की खेती के लिए न तो सिंचाई की जरूरत है और न ज्यादा उर्वरकों की। बुवाई के समय केवल सिंगल सुपर फॉस्फेट या राक फॉस्फेट का प्रयोग काफी है। सिंगल सुपर फॉस्फेट 250 किलोग्राम/हेक्टेयर देने से अच्छी उपज प्राप्त होती है ।

नोट : पोटाश की कमी वाले  क्षेत्रों में 1 किलोग्राम/कट्ठा म्यूरेट ऑफ पोटाश भी  दे सकते हैं और कम नमी होने की स्थिति में 35 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर भी जरूरी है। 

फसल संरक्षण : - सामान्यतः मूंग पर फंगस,वायरस इत्यादि का प्रकोप नही होता है परन्तु कभी-कभी पत्ते खा जाने वाले ग्रास हॉपर,टिड्डी या कैटरपिलर का प्रकोप होता है।इनके नाम के लिए इंडोसल्फान 35EC अथवा मालाथिऑन 50EC का 20 ml 10 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।इससे भी काम न चले तो फुराडॉन 3जी आधा किलोग्राम प्रति कट्ठा की दर से व्यवहार करें।

     अंततः निष्कर्ष यही निकलता है कि मूँग की खेती में लागत कम और फायदे ज्यादा हैं। साथ में अल्प मात्रा में तिल या लालमी (एक प्रकार का मस्क मेलोन) सहवर्ती फ़सल के रूप में लगा कर अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इससे जैव विविधता के फायदे मिलते हैं और कीटों का प्रकोप कम होता है। 

बीज दर :  बड़े  दाने वाली उन्नत प्रभेद  400 ग्राम/कट्ठा (20 किलोग्राम/हेक्टेयर) और छोटे दाने वाली देशी प्रभेद 250 ग्राम/कट्ठा।  

यदि राइजोबियम कल्चर उपलब्ध है तो बुवाई के पूर्व बीज़  को उपचारित कर लेने से उपज और मृदा की गुणवत्ता में सकारात्मक परिवर्तन होता है। 

               साधारण स्थितियों में देशी मूँग की औसत उपज 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। धरातल पर तथाकथित उन्नत प्रभेद का रिकार्ड ज्यादा बढिया नहीं है। 




        

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