पालक घर पर उगाए

पालक एक पत्तेदार सब्जी है जिसे गमलों, बगीचों, बालकनियों, पिछवाड़े और छतों पर उगाया जा सकता है। यह एक बहुपयोगी सब्जी है जिसे सलाद में कच्चा भी परोसा जा सकता है या साइड डिश के रूप में पकाया जा सकता है।पालक-पनीर की लोकप्रियता से तो सभी वाकिफ हैं।



कहाँ उगायें? : गमला

- गमले: पालक अच्छी जल निकासी वाले गमलों और बर्तनों में अच्छी तरह से उगता है जिससे उसमें पानी का जमाव नहीं होता है। पालक लगाने का सबसे अच्छा समय पतझड़ या सर्दियों के महीनों में होता है जब मौसम बहुत गर्म नहीं होता है।

बीज कहाँ से लें?

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उपयुक्त स्थान 

- गार्डन: पालक को बगीचों की सीमाओं पर अच्छी तरह से लगाया जाता है जहां सूरज की रोशनी और इसके बढ़ने के लिए जगह होती है। इसे काफी गहराई तक लगाने की जरूरत है ताकि इसके आसपास के अन्य पौधों द्वारा परेशान किए बिना इसके बढ़ने के लिए जगह हो।

- बालकनी: अगर आपके घर में जगह सीमित है तो पालक उगाने के लिए बालकनी एक बेहतरीन जगह है क्योंकि आमतौर पर ये काफी छोटी होती हैं। आपको अच्छी धूप प्रदान करने की आवश्यकता है और सुनिश्चित करें कि पौधों को फैलने और ठीक से बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह है ताकि वे न हों

घर पर पालक उगाना मुश्किल नहीं है। आपको बस एक बर्तन, थोड़ी मिट्टी और थोड़ा पानी चाहिए।

स्टेप्स:

1) बर्तन को खाद मिट्टी और कोकोपिट से भरें और सुनिश्चित करें कि उसके बीच में एक जल निकासी छेद हो।

2) बीजों को गमले के अंदर डालें, उन्हें मिट्टी और पानी से अच्छी तरह ढक दें।

3) गमले को धूप वाली जगह पर या अपनी बालकनी या छत के ऊपर रखें

4) जैसे ही पालक बढ़ने लगे, इसे स्वस्थ रखने के लिए हर कुछ हफ्तों में खाद डालें और सिंचाई करें।

घर पर पालक उगाने का सबसे आसान तरीका है गमलों में।

पालक को गमलों में उगाने की सबसे अच्छी बात यह है कि आप इसे कहीं भी रख सकते हैं, यहां तक कि बालकनी या पिछवाड़े में भी। और तो और, अगर आपको पौधों को अपने किचन गार्डन में और अपने घर से दूर ले जाने की आवश्यकता है, तो यह काफी आसान काम भी होगा।

सबसे पहले, एक बर्तन चुनें और इसे मिट्टी से भर दें (जैविक खाद का उपयोग करना सबसे अच्छा है)। आकार की बात करें तो पालक के बीज के लिए 10-15 सेमी गहरा बर्तन ठीक रहेगा। बीजों को लगभग 5-6 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपें क्योंकि इससे उन्हें अंकुरित होने पर बढ़ने के लिए जगह मिलेगी और फिर भी उनकी पत्तियों को फैलने के लिए पर्याप्त जगह मिल जाएगी। इस बात का ध्यान रखें कि उन्हें कितने पानी की जरूरत है और वाष्पित होने पर और मिलाते रहें।

 अगर आप ताजा पालक की अपनी फसल उगाना चाहते हैं, तो प्रक्रिया शुरू करने से पहले आपको कुछ चीजें जाननी होंगी।

पहली चीज़ जिसकी आपको आवश्यकता होगी वह है पालक उगाने के लिए एक कंटेनर। यह या तो एक बर्तन या मिट्टी के साथ एक उठा हुआ बिस्तर हो सकता है। आपको अपने कंटेनर में मिट्टी डालनी चाहिए और उसके कंटेनर के नीचे एक समान परत बनाने के लिए प्रतीक्षा करनी चाहिए। फिर आपको मिट्टी की परत के ऊपर कुछ खाद डालनी चाहिए और इसे तब तक मिलाना चाहिए जब तक कि यह आपके कंटेनर या उठी हुई क्यारी की सतह पर समान रूप से वितरित न हो जाए- यह आपके पौधों को बढ़ने के साथ पोषक तत्व प्रदान करेगा।

अंत में, आपको अपने बीजों को खाद की परत के ऊपर एक दूसरे से लगभग 2 इंच की दूरी पर छोटी पंक्तियों में लगाना होगा- सुनिश्चित करें कि प्रति वर्ग फुट में 3 से अधिक पंक्तियाँ नहीं हैं, ताकि यह एक दूसरे से अधिक न हो और उनका दम घुटो!

घर में सब्जियां उगाना एक संतुष्टिदायक अनुभव हो सकता है। लेकिन आपको इसके साथ आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार रहने की जरूरत है। तो, आप अपना पालक कैसे उगाएंगे?

घर पर सब्जियां उगाने के दो विकल्प हैं: गमले में लगाना या सीधे मिट्टी में लगाना। सबसे अच्छा विकल्प आपकी जीवनशैली और आपके पास किस प्रकार की जगह उपलब्ध है, इस पर निर्भर करता है।

पालक उगाना अपेक्षाकृत आसान और सीधा है, लेकिन घर पर इसकी खेती करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। पालक आमतौर पर बर्तनों में उगाए जाते हैं क्योंकि उन्हें बनाए रखना और इधर-उधर ले जाना आसान होता है।

पालक उगाना आसान है, आपको केवल यह जानने की जरूरत है कि क्या आवश्यकताएं हैं। इसका स्वाद मीठा, अखरोट जैसा होता है। इसे सलाद में, या टैकोस या सैंडविच के हिस्से के रूप में सबसे अच्छा खाया जाता है। आप इसे कुछ क्रंच के लिए सूप या चावल के व्यंजन में भी डाल सकते हैं।

घर पर सब्जियाँ उगाना कई तरीकों से और घर के आसपास कई सतहों पर किया जा सकता है जैसे बालकनी पर, आपकी डेस्क पर, कंटेनरों में या आपकी छत पर भी। आप अपने पौधों से क्या चाहते हैं इस पर निर्भर करता है कि आप उन्हें किस तरह से उगाना चाहते हैं!

पालक उगाने के लिए कुछ अच्छी जगहों में आपका किचन गार्डन शामिल है जहाँ उन्हें बहुत सारी रोशनी मिलेगी और साथ ही खाना पकाने के लिए पर्याप्त जगह होगी! पालक के लिए बालकनी भी सही है क्योंकि इसे सुबह की धूप और दोपहर की धूप मिलती है लेकिन हो सकता है कि शाम की धूप ज्यादा न मिले इसलिए इन्हें यहां लगाते समय इस बात का ध्यान रखें!

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आर्जीमोन मेक्सिकाना यानि भटकटैया : एक परिचय

 भटकटैया, सत्यानाशी,कन्टैया या मैक्सिकन प्रिक्ली पॉप्पी यह सारे नाम आर्जीमोन मैक्सिकना नामक पौधे के हैं।


 इसके बीज काली सरसों या राई के समान दिखते हैं और विषैले होते हैं। कटीले पत्तों और फलों वाले इस हर्ब का मूल स्थान यद्यपि मेक्सिको है किंतु संसार के विभिन्न भागों सहित भारत में भी हर जगह पाया जाता है। फलों,तने या पत्तों को तोड़ने अथवा काटने पर पारदर्शी पीले दूध जैसा निकलता है इसी कारण आयुर्वेद में इसे स्वर्णक्षीरी कहां गया है।

भावप्रकाश निघंटू नामक आयुर्वेदिक ग्रंथ के अनुसार यह पीला रस घाव, दाद ,कुष्ठ इत्यादि की चिकित्सा में अत्यंत उपयोगी है। विषाणु और कीटाणुओं का नाश करता है। न ठीक होने वाले घाव के इलाज में यह रामबाण औषधि है। मुनाफाखोर,लालची व्यापारी भटकटैया के बीजों का दुरुपयोग करते हैं। वे सरसों के साथ मिलाकर तेल निकालते हैं और मिलावटी सरसों का तेल शुद्ध तेल के नाम पर बेच लेते हैं। या मिलावटी तेल मौत का कारण भी बन सकता है। इससे एपिडेमिक ड्रॉप्सी यानी पेट की झिल्ली में पानी भरने का रोग उत्पन्न हो जाता है।

              चूँकि आर्जीमोन मैक्सिकना के बीज विषैले होते हैं इनसे निकलने वाला तेल मृत्यु अथवा गंभीर रोग का कारण बन सकता है इसलिए इसके अल्प मात्रा में सेवन के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होने वाले लक्षणों का संग्रह कर एक होम्योपैथिक दवा के रूप में इसकी प्रूविंग की जा सकती है। इस प्रकार होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति में एक और भारतीय औषधि का समावेश हो सकेगा जो मानवता के कल्याण की दिशा में एक और कदम साबित होगा। इसके अतिरिक्त इसके रस यानी स्वर्णक्षीर के गुणों का अध्ययन आधुनिक वैज्ञानिक विधियों द्वारा किया जाना भी आवश्यक है। प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में दिए गए विवरण के ऊपर मैं प्रश्नचिन्ह नहीं लगा रहा परंतु मेरा मानना है कि किसी चीज पर आंख मूंदकर विश्वास करना अंधविश्वास है। पुरातन को अद्यतन बनाना वास्तव में विज्ञान का एक कर्तव्य है।

   आर्जीमोन मैक्सिकना के साथ एक मिथक भी जुड़ा हुआ है। पुराने जमाने में रसायन वैज्ञानिक जिन्हें कीमियागर या अल्केमिस्ट कहा जाता था अपने अनुसंधान और ज्ञान को काफी गुप्त रखते थे। उनके मुख्यता तीन परम लक्ष्य थे : -  (1) ब्रह्मांड के साथ मनुष्य के संबंधों की खोज और मानवता के हित में इसका लाभ उठाना। (2) अमृत की खोज और (3) सीसा या तांबा जैसे कम मूल्य वाले धातुओं को सोना में परिवर्तित करने का उपाय ढूंढना।

                     भारत में भी कीमियागरों के देसी वर्जन पाए जाते थे जिन्हें रसज्ञ, रस-सिद्ध अथवा रसायनज्ञ कहा जाता था इनमें नागार्जुन का नाम उल्लेखनीय है। कहा जाता है कि उन्होंने सोना बनाने की विधि खोज ली थी जिसमें स्वर्णक्षीरी के उपयोग के विषय में कई स्थानों पर उल्लेख किया गया है। परंतु किसी भी ग्रंथ में सोना बनाने की संपूर्ण विधि लिखी हुई नहीं मिलती है,  केवल संकेत कथाएं और उल्लेख मिलते हैं। मध्यकाल के यूरोप और पश्चिम एशिया के कीमियागर अपने ज्ञान को अत्यंत गुप्त संकेतो में नोट करते थे किंतु आज की तारीख में उन्हें समझने वाला कोई नहीं है। इन संकेतों की कोई सार्वभौमिक भाषा भी नहीं है जिसकी सहायता से इन्हें डिकोड किया जा सके।इन सब तथ्यों की सहायता से हम अंततःइस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सत्यानाशी का न केवल औषधीय महत्व था बल्कि रासायनिक प्रक्रियाओं में भी उपयोगी था।


साबूदाने का रहस्य

 दोस्तों आप सब साबूदाना से तो अवश्य परिचित होंगे। भारत में 40 के दशक से व्रत त्योहार उपवास में फलाहारी एवं पवित्र खाद्य पदार्थ के रूप में इसका उपयोग खूब होता रहा है। इसे सुपाच्य समझकर रोगियों के  पथ्याहार में शामिल किया जाता रहा है। परंतु क्या आपने कभी साबूदाने का पेड़ अथवा पौधा देखा है? या फिर इसे जमीन में रोपकर उगाने की कोशिश की है? आप ने भले ही कोशिश ना की हो पर मैंने जरूर की है। मगर मैं असफल रहा। समय के साथ यह 4जिज्ञासा परवान चढ़ती रही और अंततः मैं साबूदाना के रहस्य से परिचित हो गया। क्या आप सब दर्शक भी जानना चाहेंगे?

साबूदाना मुख्यता दो तरीके से फैक्ट्रियों में तैयार किया जाता है। यह किसी पेड़ का फल अथवा बीज नहीं है। सबसे पहले Sago Palm trees के तने से प्राप्त गूदे से बनाया जाता था। मूल रूप से अफ्रीकी उत्पत्ति वाले इस पौधे का तना बहुत मोटा होता है और इस मोटे तने के भीतर से गूदा निकालकर पीसा जाता है और पाउडर बनाया जाता है। इस पाउडर को फिल्टर कर गर्म करते हैं जिससे दाने बनते हैं। साबूदाना बनाने का सबसे मुख्य तरीका जो आज प्रचलित है सर्वथा अलग है। दक्षिण अमेरिकी मूल के कंद कसावा जिसकी खेती अफ्रीका महाद्वीप में सबसे अधिक की जाती है से सबसे अधिक साबूदाना बनाया जाता है। कसावा को टेपियोका रूट भी कहा जाता है भारत में भी कसावा से ही साबूदाना बनाया जाता है। दक्षिण भारत के तमिल नाडु इत्यादि राज्यों में साबूदाने का उत्पादन होता है। सालेम जिले में कसावा की खेती सबसे ज्यादा होती है और वही सबसे अधिक टेपियोका स्टार्च प्रोसेसिंग प्लांट हैं। इस प्रक्रिया में 4 से 6 महीने लगते हैं। इस दौरान साफ किए गए और पील किए हुए कंदों को मैश कर पानी में सड़ने या फर्मेंटेशन के लिए छोड़ दिया जाता है। बाद में जो लुगदी प्राप्त होती है उससे फाइबर को अलग कर जेली जैसी संरचना वाली स्टार्च एनरिच पदार्थ प्राप्त करते हैं। इसे मशीनों में डालकर दाना बनाया जाता है और सुखा कर ग्लूकोस एवं स्टार्च पाउडर की पॉलिश की जाती है जिससे मोतियों जैसे चमचमाते साबूदाने प्राप्त होते हैं। भारत में 40 के दशक में साबूदाना बनाने का उद्यम कुटीर उद्योग के रूप में शुरू हुआ था। किंतु आश्चर्य की बात है की शेष भारत में ज्यादातर लोग इससे अनभिज्ञ रहे।

यह सब जानने के बाद मेरे दिमाग में एक ही बात बार-बार आती है कि कसावा कंद को सड़ाकर आर्टिफिशियल तरीके से बनाया गया साबूदाना किस प्रकार पवित्र हुआ और उपवास के दौरान फलाहारी भोजन के योग्य माना गया? यदि किसी सुधि पाठक अथवा दर्शक इसका तर्कसंगत उत्तर ढूंढ कर कमेंट कर सकें तो बहुत आभार होगा।

पहले तो साबूदाने की खिचड़ी और खीर बनाई जाती थी किंतु अब इसकी बहुत सारी रेसिपी तैयार की जाती है और लोग मजे से उन्हें खाते हैं। साबूदाने का उपयोग ना केवल उपवास-फलाहार और रोगियों के पथ्याहार मैं बल्कि बहुत सारे फेवरेट रेसिपीज मैं भी किया जा रहा है। पापड़, तिलौड़ी, चाट- पकोड़े और विभिन्न प्रकार के व्यंजन में इसका उपयोग किया जा रहा है। लोग साबूदाने को पवित्र और धार्मिक उपयोग के योग्य मानते हैं। वे नहीं जानते की यह कितने गंदे प्रोसेस से तैयार होता है। यहां हम साबूदाने की पापड़ रेसिपी दे रहे हैं इसका उपयोग आप अगले उपवास के दौरान कर सकते हैं।

विधि

2 लीटर पानी में 100 ग्राम साबूदाना डालकर गर्म करते हैं। इसे तब तक पकाते हैं जब तक थी साबूदाना पूरी तरह से गल कर पानी को जेली जैसी ना बना दे। तब इसे चूल्हे से उतार लेते हैं गैस बंद कर देते हैं और छत पर साफ सूती कपड़ा बिछाकर कलछी से वह द्रव्य लेकर कपड़े के ऊपर छोटे-छोटे गोल धब्बे के रूप में फैलाते हैं और सूखने के लिए छोड़ देते। ऐसा करने से पहले मिश्रण में स्वादानुसार सेंधा नमक और थोड़ी मात्रा में गोल मिर्च पाउडर मिलाते हैं इससे नमकीन और चड़पड़ा स्वाद आता है। उपवास के दौरान कुछ लोग सेंधा नमक का प्रयोग शुद्ध मानते हैं और साधारण नमक का उपयोग अशुद्ध। कई दिनों तक सुखाने के बाद पापड़ तैयार हो जाता है जिसे सावधानीपूर्वक कपड़े से अलग कर लेते हैं और साफ सूखे डब्बे में स्टोर कर लेते हैं। जब भी खाने का मन हो इसे खाद्य तेल गरम कर तल लीजिये और मजे से खाइए। यह पापड़ बनाते समय शुरू में ही सावधानी बरतने की जरूरत होती है । जब साबूदाना पक रहा हो तब ध्यान रखें की इसका टेक्सचर बहुत अधिक गाढ़ा ना हो और ना बहुत ज्यादा ढीला। यदि तिलौड़ी बनानी है तो पानी कुछ कम डालें और मिश्रण को गाढ़ा होने दे तथा कुछ दाने ऐसे हो जो पूरी तरह गले ना हो। इस मिश्रण में स्वादानुसार सेंधा नमक और तिल मिला लें। तिल को पहले हल्का भून लें। जब मिश्रण ठंडा होकर हाथ सहने योग्य हो जाए तब छोटी-छोटी बड़ियों जैसे पिंड साफ कपड़े पर डालते चले जाएं और कई दिनों तक धूप में सुखाएं। जब यह तिलौड़ियाँ खूब सुख जाए तब कपड़े पर से इन्हें अलग कर ले और साफ-सूखे डिब्बे या मर्तबान में स्टोर कर ले। जब भी खाने का मन हो तो कढ़ाई में करू तेल गर्म करें,तिलौड़ियाँ डालें, ब्राउन होने तक तले और खाने का मजा ले।

Robot text generator



Robots.txt is a file that can be used to control search engine crawlers and web robots. This file tells crawlers which parts of the website they are allowed to access and which they are not allowed to access. For example, you can use Robots.txt to block web crawlers from accessing private pages on your website that you do not want to be indexed by search engines.

Robots.txt is a file that can be placed in the root directory of a website to help control how robots to crawl and index web pages. It is a text file with the file name "robots.txt" and it should be uploaded in the site root directory, but not within a folder.

The Robots.txt Generator Tool is an online tool that allows you to easily create robots.txt files for your websites. The Robots.txt Generator tool provides simple instructions and also has the option to be used with Google Webmasters, which makes it easier to implement on websites that are already indexed in Google.

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