मिर्च की खेती कैसे करे

   रेड चिल्ली यानी लाल मिर्च सबसे प्रमुख मसाला है। भारतीय मसालों में यह सबसे प्रमुख है। इसका उपयोग खाने को स्वादिष्ट और चटपटा बनाने के लिए भारत ही नहीं विभिन्न देशों में किया जाता है। इसका उत्पादन भारत के अनेक राज्यों में होता है जिनमें आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सबसे  प्रमुख हैं। देश के कुल उत्पादन का 57% मिर्च अकेले आंध्र प्रदेश से आता है। अन्य उत्पादक राज्य कर्नाटक,मध्य प्रदेश,पश्चिम बंगाल गुजरात और उत्तर प्रदेश  हैं। वैसे कमोवेश लगभग पूरे भारत में इसे  उगाते हैं। सूखी लाल मिर्च के अतिरिक्त ताजी हरी मिर्च भी उपयोग में लाई जाती है। आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले की ख्याति मिर्च उत्पादन के लिए सबसे अधिक है। 


 

 मिर्च की खेती कैसे करें : 

वैसे तो मिर्च सालों भर मिलती है हरी मिर्च हो या फिर सूखी लाल मिर्च । वर्ष में 3 बार मिर्च की रोपाई होती है किंतु सभी क्षेत्रों में ऐसा नहीं होता है। हल्की दोमट और बलुई मिट्टी इसकी खेती के लिए बहुत उपयुक्त मानी जाती है। ध्यान रहे इसकी खेती के लिए ऐसी  जमीन का चयन करें जिसमें जलजमाव बिल्कुल ना होता हो। जलजमाव की स्थिति में पत्तियां पीली होकर फसल सूख जाती है। 


कब-कब  करें रोपाई 

आमतौर पर मुख्य फसल के रूप में मिर्च की नर्सरी जुलाई से अगस्त तक लगाई जाती है और खेतों में पौधों को अगस्त से सितंबर के बीच  लगाते हैं। जबकि गरमा फसल की नर्सरी जनवरी से फरवरी तक लगाते हैं और नर्सरी से पौधों को उखाड़ कर खेत में फरवरी से मार्च के पहले हफ्ते तक लगाते हैं। 


पौधशाला की तैयारी : मिट्टी को खूब भुरभुरी कर खरपतवार के अवशेष और  मोथा की जड़े यथासंभव निकाल  ले। अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की कंपोस्ट खाल मिट्टी में मिलाएं और 10 सेमी ऊंची 30  सेमी चौड़ी क्यारियां बनाएं और इसमें  फंगीसाइड थीरम (Therum) या कैप्टान से उपचारित बीज  डालें। 


उन्नत बीज  और उसकी मात्रा : एक हेक्टेयर खेती के लिए 1 किलोग्राम बीज सामान्यता पर्याप्त होता है किंतु अंकुरण एवं  प्रभावित करने वाले बाह्य कारकों के संभावित प्रभाव को देखते हुए सवा किलो बीज की अनुशंसा की जाती है। सामान्यतः इसकी निम्नांकित प्रजातियां  प्रचलित है : -  सबौर अंगार,पूसा ज्वाला,कल्याणपुर लाल, पंत-1, भाग्यलक्ष्मी, आंध्र ज्योति, किरण, अपर्णा, एनपी- 46 ए, आरसीएच-1, मथानिया लॉन्ग, चाइना। उत्तर बिहार में सबसे अधिक लाल मिर्च के उत्पादन के लिए चाइना प्रजाति का उपयोग किया जा रहा है। 


खेत की तैयारी : 200 क्विंटल कंपोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में समान रूप से फैलाकर  जोताई  करें। दो तीन बार जोत कर मिट्टी को नरम और भुरभुरी बना ले। अंतिम जुताई के पहले अनुशंसित मात्रा में रासायनिक उर्वरक भी डाल दें।


उर्वरक : सिंगल सुपर फास्फेट 3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर,  म्यूरेट ऑफ पोटाश( MoP) 1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और यूरिया 3 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर। इसमें से  फास्फेट और पोटाश  की पूरी मात्रा और यूरिया की एक तिहाई मात्रा अंतिम जुताई के दौरान डालें  । शेष यूरिया 25 दिनों के अंतराल पर दो बार मेंआधा-आधा उपयोग में लाएंगे।

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खेत में पौधारोपण:  सामान्यतः नर्सरी में पौधे 25 दिन से 1 महीने के बीच रोपण करने लायक तैयार हो जाते हैं।रोपण के लिए पौधों को  उखाड़ने के समय ध्यान दें की जड़े न टूटे। पौधों की जड़ों को मोनोक्रोटोफॉस 36 एसएल के एक मिली प्रति 1 लीटर पानी में  सलूशन बनाकर  उपचारित करें।अब इन्हें कतार से कतार 45  सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखते हुए खेत में लगाएं। कतार सीधी रखने के लिए रस्सी का उपयोग कर सकते हैं। रोपण के बाद प्रत्येक पौधे के  पास हल्की सिंचाई करें ताकि जड़ों और मिट्टी के बीच सीधा संपर्क बन सके और पौधे  मृत होने से बचे।2 दिन बाद  फिर से हल्की सिंचाई करें।



सामान्य देखभाल :  प्लांटेशन के 10 दिन बाद खुरपी से प्रत्येक पौधे के आसपास मिट्टी भुरभुरी करें और यदि खरपतवार उग रहे हो तो उन्हें निकाल दें। और 25  दिन बाद सामान्य सिंचाई करें तथा बची हुई यूरिया में से आधी मात्रा पूरे खेत में समान रूप से डाल दें। सिंचाई के समय दानेदार दवा  थाईमेट 10 जी 500 ग्राम प्रति कट्ठा डाल दें उससे पौधों में बहुत सारे कीड़े और फफूंद नहीं लगेंगे।ध्यान दें की वायरस से फैलने वाला पत्र संकोचन रोग न फैले अन्यथा फसल की उत्पादकता बाधित हो जाएगी। जैसे ही किसी पौधे पर  करली लीफ अथवा पत्र संकोचन रोग के लक्षण देखें उसे सावधानीपूर्वक उखाड़ कर जलाकर नष्ट कर दें । क्योंकि वायरस रोग को कीड़े मकोड़े फैलाते हैं अतः प्रिकॉशन के तौर पर Dimethoate 30EC 1 ml प्रति लीटर पानी में  मिलाकर छिड़काव करें। 30 से 40 दिन में फूल आने लगते हैं और उत्पादन आरंभ हो जाता है।


फल और  उसका संग्रहण : यदि आपको हरी मिर्च का उत्पादन करना है तो बाजार की मांग के अनुसार पकने से पहले किंतु पूरी तरह विकसित मिर्ची को तोड़कर बेच सकते हैं। यद्यपि हरी मिर्च का मूल्य सूखी मिर्च के मुकाबले  बहुत कम होता है किंतु  वजन कई गुना अधिक होता है। इससे कुल फसल अवधि में अधिक से अधिक बार फलन प्राप्त कर सकते हैं और उत्पादकता बढ़ा सकते हैं। किंतु यदि स्थानीय रूप से हरी मिर्च का भाव और मांग कम हो तो मिर्च को लाल होने के बाद तोड़े और अच्छी तरह  सुखा कर वायु  अवरुद्ध बोरियों में संग्रहित करें।


उत्पादन : सामान्यतः 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सुखी लाल मिर्च का उत्पादन होता है। किंतु केवल हरी मिर्च का उत्पादन करें तो यह मात्रा 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टर हो जाती है। 


उत्पादन लागत : कंपोस्ट 200 क्विंटल का मूल्य ₹15000/-, उर्वरक एवं कीटनाशक 11,000/-, जोताई ₹15000/-, लेबर कंपोनेंट ₹15000/-, सिंचाई 10,000/- बीज 20 से 25000/- अर्थात 1 हेक्टेयर मिर्च की खेती में कुल लागत ₹90000/- आने की संभावना है। स्थानीय बाजार अथवा आपके द्वारा चुने गए  ब्रांड के अनुरूप लागत में परिवर्तन हो सकता है।


आउटपुट : न्यूनतम उत्पादन 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर  ले तो ₹150/- प्रति किलोग्राम के हिसाब से  उत्पादन का कुल मूल्य 225000/- आता है। इस प्रकार लागत के मुकाबले 150% का मुनाफा प्राप्त होता है। 5 महीने में 90000 इन्वेस्ट कर 135000/- का मुनाफा वह भी खेती से मजाक नहीं है। किसान भाई और युवा वर्ग इस खेती में सन्निहित अपार संभावनाओं के द्वार अपनी मेहनत और  व्यवसायिक सोच के सहारे आसानी से  खोल सकते हैं।


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