जून माह में किये जाने वाले कृषि कार्य

 जून माह भारतीय पंचांग के अनुसार प्रायः ज्येष्ठ आषाढ़ के महीनों के मध्य आता हैं।इसी समय मॉनसून भी दस्तक देता है।इस वर्ष यानि 2021ई० में 3 जून को केरल और 10-12जून तक शेष भारत में मॉनसून का आगमन हो चुका हैं।और अच्छी खासी बारिस के आसार नजर आ रहे हैं।जमीन और हवा में काफी नमी है जो धान के बीज गिराने और विभिन्न खरीफ फसलों की बुआई के लिए उपयुक्त स्थिति हैं। 

कृषि क्षेत्र की एक सच्चाई जिसे अक्सर किसान भाई भूल जाते हैं,वो हैं-"किसान की मर्जी से मौसम नहीं बदलता,पर वे मौसम के अनुरूप खेती कर सकते हैं।"    

यदि उपरोक्त सूत्र वाक्य का मर्म समझ लें तो खेती लाभ का धंधा बन सकता हैं।मोटे तौर पर ज्यादातर लोग रूटीन खेती करते हैं और मौसम की 'गुगली' में फंस जाते हैं।खरीफ या जायद फसलों के लिहाज से मौसम तीन विकल्पों क्रमशः-बाढ़,सुखाड़ और संतुलित वर्षा में से एक ही उपलब्ध कराती हैं।इसलिए अपनी जमीन की प्रकृति,किस्म और आगामी मौसम पूर्वानुमान के अनुरूप फसल का चुनाव करें और स्मार्ट किसान बनें।आगे हम जानेंगे इस माह के कृषि कार्यो में से उन मुख्य कार्यो के बारे में,जो इस वर्ष की संभावित बरसात की मात्रा के अनुरूप हैं।

1.‌ अनाज की खेती:-


(i)धान - चावल जो पूरे एशिया और खास तौर पर भारत में भोजन का सबसे प्रमुख  घटक हैं,धान से ही प्राप्त होता हैं।इसकी इतनी ज्यादा प्रजातियाँ हैं कि सबकी चर्चा की जाए तो महाग्रंथ बन जाए। भारत में मुख्यतः ये धान के खेत हैं -- पर्वतीय-पठारी भागों के सीढ़ीदार खेत,मैदानी भागों के सामान्य,मध्यम,नीची और गहरी जमीन।इन में से गहरे जल जमाव वाली भूमि में सामान्यतः फरवरी से अप्रैल तक ही मूंग  और धान  की मिश्रित बोआई की जाती हैं,फिर वर्षा जल के जमाव से मूंग सूख कर सड़ जाती है और जैविक खाद की तरह उर्वरा शक्ति वढ़ाती हैं।धान जल स्तर के अनुरूप बढ़ता जाता हैं।इसके परंपरागत  किस्में  जागर,पाखर,जेसरिया ईत्यादि हैं जबकि उन्नत प्रभेद जानकी और सुधा हैं।शेष चारों भूमि में धान सीधी बुआई के बजाए नर्सरी तैयार कर बिचड़े कीचड़ में रोपने की विधि से लगाई जाती हैं।अभी नर्सरी में धान के बीज बोने का उपयुक्त समय हैं।बीज बोने के25 दिन बाद पौधे उखाड़ कर अच्छी तरह जुताई कर कीचड़(mud) बनाये गये खेत में रोप सकते हैं।रोपन के पूर्व फास्फेट की पूरी मात्रा पोटाश की आधी मात्रा और नाइट्रोजन की एक चौथाई मात्रा का प्रयोग करें।

(ii) मक्का - खरीफ मक्का की  खेती/बुआई साफ मौसम देख कर कर लें।फफून्दनाशी से बीजोपचार करना न भूलें।

(iii)मरूआ या रागी - खरीफ मरूआ की रोपाई जून में पूरा कर लें।गरमा मरूआ यदि रोपा हैं तो उपरिवेशन कर लें।यह सबसे अधिक फायदेमंद मोटा अनाज (millet)हैं।इसका हलवा और रोटी बनाई जाती हैं जो अत्यंत पौष्टिक व शक्तिवर्धक  खाद्य पदार्थ हैं।

(iv)ज्वार - बाजरे की बुआई भी जून माह में ही की जाती हैं।बिहार के आरा - बक्सर पूर्वी उत्तरप्रदेश,राजस्थान,मध्यप्रदेश में इसकी खेती  होती हैं।कम वर्षा वाले क्षेत्रों में अपेक्षाकृत  ऊँची भूमि में मोटे अनाज एवं पशुओं के चारे के लिए इन्हे उपजाया जाता है।

2. दलहन की खेती :- जून माह में मुख्यतः दो दलहन फसलें बोई जाती हैं।


अरहर+उड़द,अरहर+मक्का,उड़द+मक्का,अरहर+मरूआ,अरहर+मूँगफली,अरहर+मिश्रीकन्द,अरहर+साँवा।अरहर(pigeon pea)उच्च कोटि की दलहन प्रजाति हैं,जिसमें 21-26% तक प्रोटीन पायी जाती हैं।यह पूरे भारतवर्ष में लोकप्रिय हैं और कई  नामो से जाना जाता हैं;जैसे - तुअर,तूर,रहरी,अरहर,आदि।लिन्नियस नामकरण पद्घति के अनुसार इसे Cajanus cajan या Cajanus indicus कहते हैं। यह एक लम्बी अवधि की फसल है जो खेत में 9 महीने रंडरहती है। शुद्ध अरहर की फसल उगाने के लिए प्रति हेक्टेयर 20 कि०ग्रा० बीज की जरूरत होती है।मिश्रित खेती के लिए 15 कि०ग्रा० बीज पर्याप्त है।अकेले उत्तरप्रदेश में 30 लाख एकड़ से अधिक क्षेत्र में इसकी खेती होती है।उन्नत प्रभेद - प्रभात,बिहार,लक्ष्मी,BR-65,मालवीय अरहर-151उरद के उन्नत प्रभेद-T-9को जून-जलाई में बो सकते हैं।

3. तिलहन- खरीफ फसल में तिलहन के की विकल्प हैं।-तिल,सूरजमुखी,मूँगफली,एरंड/अंडी।अंडी एक अखाद्य तिलहन फसल हैं और इसकी बुआई जुलाई-अगस्त  में होती हैं।जबकि तिल,मूँगफली,सूरजमुखी खाद्य श्रेणी के तिलहन हैंऔर 15 जून से 15जुलाई के बीच बोए जा सकते हैं।मूँगफली  के लिए ऊँची,ह्लकी दोमर मिट्टी उपयुक्त हैं।तिल के लिए भी ऊँची जमीन  चाहिए  जिसमें जल जमाव न हो।कमोवेश सूर्यमुखी भी जल जमाव को बर्दाश्त  नहीं कर पाती हैं।

4. कन्दवर्गीय फसलें:-अदरक व हल्दी रोपने का समय मई तक ही हैं जो बीत चुका हैं।ओल की अगैती बुआई मार्च-अप्रैल  में हो चुकी हैं किन्तु मुख्य फसल जून माह में ही रोपाई जाती हैं।विस्तृत  जानकारी के लिए निम्नांकित  लिंक को क्लिक करें : ओल की खेती 

 खरीफ  अरबी मई-जून में ही रोपी जाती हैं,जबकि इसकी वसंतकालीन रोपाई फरवरी में होती हैं।12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज लगता हैंऔर उपज 80-100 क्विंटल तक होती हैं इसके कन्द के अलावा पत्तों की भी सब्जी बहुत स्वादिष्ट  होती हैं।130-140दिन में फसल खोदने के लिये तैयार हो जाती हैं।अच्छी कमाई के लिए  इसका खेती कर सकते हैं।जून के अंत से जुलाई भर मिश्रीकन्द  यानि केसऊर की खेती कर सकती हैं।सितम्बर  अरहर के साथ इसकी मिश्रित खेती सितम्बर माह में भी कर सकते हैं।जून- जुलाई में बोने पर बीज 15-20kg/hectare और अगस्त  में 30-40 kg/hectare और सितम्बर  में 50-60kg/hectare की दर से लगता हैं।जून-जुलाई में इसे मकई और अरहर के साथ भी लगा कर सकते हैं।मिश्रीकन्द की खेती के विशेष इच्छुक हैं तो कमेंट सेक्शन में लिखें।इस पर विस्तृत  एवं अनुभव सिद्ध तथ्यों से परिपूर्ण लेख उपलब्ध कराया जाएगा।

5. बरसाती सब्जियों की खेती :-ज्यादातर बरसाती सब्जियाँ गरमा और बरसाती दोनों रूपों में उगाई जाती हैं,जिसमें बैगन,भिण्डी,लौकी,खीरा,घिनौनी,करेला,नेनुआ,बोदी,पेठा और मिर्च प्रमुख हैं।इनमें से भिण्डी को छोड़कर शेष सभी के लिए थोड़ा सा जल जमाव  भी अत्यंत घातक हैं।इस तथ्य को ध्यान में रख कर ही उपयुक्त भूमि में इन फसलों को लगाए।ये सारी सब्जियाँ टेरेस गार्डन,लाॅन या बैकयार्ड किचन गार्डन के लिए भी बहुत उपयुक्त  हैं।


फूलगोभी(Cauliflower): जून माह में अगैती (early)प्रभेद का बीज नर्सरी में बोया जाता हैं।बिहार में प्रचलित नस्लें हैं-पटना अर्ली,पूसा कतकी,कुँआरी ।इनके अलावा कुछ  हाईब्रिड  नस्लें भी उपलब्ध हैं।छोटे स्तर पर गमलों में भी बीज बोया जा सकता हैं।बरसाती मौसम में उगते ही बेवकूफ की तरह लम्बे होकर मुरझाते हुए मर जाने की बीमारी अक्सर  अगात फूलगोभी की नर्सरी में पाई जाती हैं।इसके निराकरण  हेतु streptocycline नामक antibiotic दवा का प्रयोग  बीजोपचार तथा उगते के बाद स्प्रे के रूप में भी करना चाहिए।600-700  ग्राम बीज लगता हैं। यह उच्च लाभ देने वाली फसल हैं किन्तु विशेष देखभाल  की जरूरत पड़ती हैं।

 


बैंगन
(Egg plant/Brinjal):बैगन की मुख्य फसल हेतु जून महीने के अंत तक पौधशाला में बीजाई कर देनी चाहिए।वैसे 15  जुलाई तक भी कर सकते हैं।बैंगन की खेती पर विस्तृत व पूर्ण जानकारी के लिए alongwithroots.blogspot.com पर विजिट करते रहें।(शीघ्रप्रकाश्य)।

भिण्डी(Okra/Lady finger): बरसाती भिण्डी की बोआई  जून से जुलाई तक कर सकते हैं।एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 8-10 kg बीज लगता है।कतार से कतार की दूरी 50 सेमी और कतार में पौधे से पौधे की दूरी 40 सेमी रखें।

लौकी(Gourd): जून-जुलाई  में रोपी जाने वाली बरसाती लौकी नवंबर-दिसंबर तक फल देती है।खेतों में लगाने के लिए ऊँचे थाले बनाए जिनमें पहले से 2-3 kg सड़ी गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट के साथ 20 ग्राम यूरिया,25 ग्राम पोटाश  और 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट प्रति थाला मिला लें और तीन बीज  प्रत्येक में रोपें।गमलों या ग्रो बैग में  भी इसी प्रकार  रोप सकते हैं।मचान बनाना जरूरी हैं।


नेनुआ/घिउरा(Sweet Gourd/SpongeGourd)  :इसे बरसात में जुलाई महीने में 2m×1.5m की दूरी पर ऊँची बेड बना कर रोपते हैं।खाद एवं उर्वरक लौकी के समान प्रयोग  करें।यदि 1m चौड़ी व 20cm ऊँचे बेड बना कर रोपें तो बिना मचान बनाए भी उपज ले सकते हैं किन्तु मचान पर फलों की गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ जाती हैं।



तोरई/झिगुनी(RidgeGourd):जून-जलाई  माह में एकल या मिश्रित फसल के रूप में इसे लगाया जाता हैं।( गरमा तोरई फरवरी- मार्च में रोपी जाती हैं।) अरहर+मकई+ तोरई एक प्रचलित  फसल संयोजन हैं।एकल फसल के रूप में नेनुआ की तरह ही बेड बनाकर रोप सकते हैं।मचान बनाकर लताओं को उन पर फैलने दें।इससे उपज की मात्रा एवं गुणवत्ता बढ़ जाती हैं।खाद एवं उर्वरक की मात्रा कद्दू से आधी कर दें।उन्नत प्रभेद पंजाब सदाबहार,पूसा नसदार,सतपुतिया,PKM1,कोयम्बटूर-2 इत्यादि।

 खीरा(Cucumber): बरसाती खीरे की खेती 50 सेमी चौड़ी,20 सेमी ऊँची बेड व 50 सेमी चौड़ी नाली के अंतराल बनाकर 50-50 सेमी की दूरी पर 3-3 बीज रोपते हुए करें।खाद एवं उर्वरक का प्रयोग जुताई के समय ही कर दें।यह सावन-भादो के महीने में फल देता है।इस दौरान सामान्य माँग के अतिरिक्त व्रत-त्योहारों की भरमार होने से अत्यधिक माँग उत्पन्न हो जाती है जिससे मूल्य ज्यादा मिलता है।

करेला (BitterGourd): जून-जुलाई में मुख्यतः दो प्रकार के करेले रोपे जाते हैं - बारहमासी और हाईब्रिड। पुरानी भदई नस्लें अब लुप्तप्राय हैं।इसकी लताएँ जमीन पर फैल कर फल नही देती।मचान बनाकर ही उपज ले सकते हैं। कीटनाशक एवं फफून्दनाशी का आवश्यकतानुसार उपयोग करना पड़ता है। 

बरबटी/बोदी/बोरो(Long Beans): बोने का समय - जून से जुलाई तक। उन्नत प्रभेद - पूसा बरसाती,पूसा दोफसली, पूसा ऋतुराज। पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी,कतार से कतार की दूरी 25 सेमी। खाद एवं उर्वरक - कम्पोस्ट 4 क्विंटल/कट्ठा, यूरिया 1.4 kg/कट्ठा, म्यूरेट ऑफ पोटाश 1.5 kg/कट्ठा और सिंगल सुपर फास्फेट 5 kg/कट्ठा। (1 कट्ठा=1760 वर्ग फीट)

6. बागवानी : - आम,अमरूद, लीची,केला, नींबु, नारियल के पौधे लगाने का सबसे अधिक उपयुक्त समय 15 जून से 31 जुलाई तक है।यदि अप्रैल माह में गड्ढे खोदकर तैयार कर लिए गए हैं तो रोपने से 10-12 दिन पूर्व खाद-उर्वरक और मिट्टी का मिश्रण भरकर दबा दें।

7. वानिकी  : - गम्हार, जल गम्हार,बकाईन, करंज, बबूल, खैर के बीज पौधशाला में लगायें।

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