मिश्रीकंद की खेती


 


हिंदी भाषी क्षेत्रों में universally मिश्रीकंद और बिहार में केसवर/ केसऊर के नाम से प्रसिद्ध यह कंद मीठा, स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक गुणों से भरपूर होता है। इसमें लो कैलोरी,फाइबर,मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। अंग्रेजी भाषा में इसे मैक्सिकन याम बिन(Maxican yam been) कहां जाता है। जीव विज्ञान की भाषा में इसका नाम पैकीराईजस इरोसस (Pachyrhizus erosus) रखा गया है। 17 वी शताब्दी के पहले तक इसका नामोनिशान तक भारत में नहीं था। 'गजरा-केसऊर' वाले सरस्वती माता के भक्तों के लिए यह हार्ट ब्रेकिंग न्यूज़ है कि मिश्रीकंद भारत की मौलिक पैदाइश नहीं है। लगभग 3000 वर्षों से भी पहले से मेक्सिको और लैटिन अमेरिकी देशों में इसका उपयोग खाद्य पदार्थ के रूप में किए जाने के पुरातात्विक प्रमाण उपलब्ध है। 17 वी शताब्दी में कुछ स्पेनिश नाविको और व्यापारियों ने मिश्रीकंद के बीज फिलीपींस में लाकर लगाए और वहीं से धीरे-धीरे लगभग पूरे एशिया में फैल गया। इस प्रकार प्रायः 18 वीं सदी से मिश्रीकंद भारत में प्रचलित हुआ। और तब से पंडे पुजारियों ने सरस्वती माता की पूजा में इसे अनिवार्य प्रसाद अवयव के रूप में शामिल कर लिया। वर्तमान परिदृश्य में इसका व्यापारिक महत्व बढ़ गया है। कभी कौड़ियों के मोल बिकने वाला यह कंद आज बाजार में अच्छी कीमत पर बिकता है। यद्यपि खेती को प्रायः घाटे का सौदा कहा जाता है परंतु फायदे वाली कुछ गिनी चुनी फसलों में से मिश्रीकंद भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस आलेख में इसकी खेती के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला जाएगा।

रोपने का उचित समय : 1 जुलाई से 15 सितंबर।

उपयुक्त भूमि : उपजाऊ दोमट एवं बलुई दोमट मिट्टी वाली भूमि मिश्रीकंद की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। ध्यान रहे जिस जमीन का चुनाव इसकी खेती के लिए कर रहे हैं उसमें जलजमाव की संभावना ना हो।

उन्नत प्रभेद : राजेंद्र मिश्रीकंद-1 और 2, इनके अतिरिक्त विभिन्न प्रचलित स्थानीय किस्में।

खेत की तैयारी : 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से कंपोस्ट डालकर गहरी जुताई करें। यह जुताई रोटावेटर से ना करें। 1 सप्ताह बाद दूसरी जोताई करें और पाटा मारकर समतल कर ले। यदि खरपतवार ना हो और मिट्टी हल्की एवं भुरभुरी हो जाए तो दो ही जुताई  काफी है अन्यथा तीसरी जुताई की भी जरूरत पड़ सकती है। अनुशंसित मात्रा में रासायनिक उर्वरक डालकर ही अंतिम जुताई करें।

बीज की मात्रा : जुलाई महीने की बुवाई में 15 से 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से लगाएं। अगस्त महीने में बोना है तो बीज की मात्रा बढ कर 30 से 40 किलोग्राम हो जाती है। वही सितंबर माह में रोपने के लिए 50 से 60 किलोग्राम बीज लगता है। यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि अगात खेती में बीज कम लगने का मुख्य कारण फसल की समय अवधि अधिक होना है जिससे पौधों के विकास फैलाव और कल्ले निकलने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। अगस्त सितंबर में बोने से समय कम मिलता है और कल्ले निकलने का पर्याप्त अवसर नहीं मिलता। इसी कमी की पूर्ति के लिए बीज की मात्रा बढ़ाई जाती है।

खाद एवं उर्वरक : यहां सभी मात्राएं एक हेक्टेयर खेती के लिए बताई जा रही हैं। कंपोस्ट 200 क्विंटल, सिंगल सुपर फास्फेट 2.5 क्विंटल, यूरिया 1.75 क्विंटल और म्यूरेट ऑफ पोटाश (एम ओ पी) 1.35 क्विंटल। इसमें से आधी मात्रा यूरिया की बुवाई के समय देनी है और आधी 40 से 50 दिन बाद।

रोपन योजना (Plantation plan) : एकल फसल के रूप में मिश्रीकंद को निम्न प्रकार से रोपा जाता है - जुलाई महीने में कतार से कतार और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखी जाती है। अगस्त महीने में कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधों की दूरी 15 सेंटीमीटर रखी जाती है जबकि सितंबर महीने की रोपाई में यह दूरी घटकर 15 * 15 सेंटीमीटर रह जाती है।

खरपतवार नियंत्रण : रोपाई के लगभग 30 दिन बाद निराई गुड़ाई करना जरूरी है। क्योंकि बरसात के कारण अवांछित खरपतवार जल्द ही निकल आते हैं और फसली पौधे को दबाने लगते है। निराई का दूसरा लाभ यह है कि मिट्टी की ऊपरी परत हल्की और वात रंध्र से परिपूर्ण हो जाती है। यदि पुनः घास उग आए तो 50 से 60 दिन बाद फिर से निराई गुड़ाई करें।


अन्य आवश्यक क्रियाकलाप : जब पुष्प कलियाँ निकलने लगे तो यथासंभव उन्हें तोड़ दे। फलियां लग जाएंगी तो कंद बनने की प्रक्रिया बाधित होगी और उपज तीन चौथाई घट जाएगी। किंतु यदि आपका फोकस बीज उत्पादन पर है तो आप पुष्पदंडों को बिल्कुल ना तोड़े और यथासंभव फलन को प्रेरित करने वाला हार्मोन दवा मीराकुलान स्प्रे करें। बड़े पैमाने पर कंद के लिए खेती कर रहे हैं तो हाथ से पुष्पदंड को तोड़ना आसान काम नहीं है। इसके लिए रासायनिक विधि का उपयोग अधिक सुविधाजनक है। ऑक्सीन श्रेणी के हार्मोन 2, 4-डी का छिड़काव करके भी अपेक्षित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। इसके 0.004 % सॉल्यूशन का उपयोग करें।

पादप संरक्षण : मिश्रीकंद की जड़ को छोड़कर अधिकांश हिस्से विषैले होते हैं इसलिए इसकी फसल पर कीट पतंगों का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है। किंतु फफूंद जनित बीमारी पत्र लांछन हो सकती है । इसके नियंत्रण के लिए इंडोफिल एम - 45 दो ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें। एक हेक्टेयर में यह दवा लगभग 2 किलोग्राम लगती है। एक हेक्टेयर में 1000 लीटर पानी लगता है।

सिंचाई : आमतौर पर नवंबर महीने तक खेतों में पर्याप्त नमी रहती है किंतु दिसंबर से जनवरी के बीच सिंचाई की आवश्यकता पढ़ सकती है। जब खेत में मिट्टी सूख कर दरारें पड़ने लगे तो सिंचाई कर दें अन्यथा कंद फटने लगते हैं और उपज में भी कमी आ जाती है। किंतु ध्यान रहे कहीं जलजमाव ना हो।

                       एकल फसल के अलावा मिश्रीकंद की खेती मिश्रित फसल के रूप में भी सफलतापूर्वक की जाती है। कुछ प्रचलित कंबीनेशन निम्नलिखित हैं - मिश्रीकंद + तुवर, मिश्रीकंद + मकई ,मिश्रीकंद + मकई+ अरहर।

लागत : जोताई बीज खाद उर्वरक लेबर कंपोनेंट पेस्टिसाइड्स सिंचाई इत्यादि के ऊपर मुख्य रूप से खर्च होता है जो इस प्रकार है :

          जुताई - ₹1,500

खाद एवं उर्वरक - ₹27,000

              बीज - ₹18,000

    लेबर कंपोनेंट - ₹15,000

हार्मोन फंगीसाइड - ₹2,000 

            सिंचाई -- ₹3500

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       कुल खर्च = ₹81,000

आमदनी(income) : न्यूनतम उपज 400 क्विंटल और न्यूनतम थोक विक्रय दर 1,200 रुपया प्रति क्विंटल लें तो ₹4,80,000 प्राप्त होते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान 81,000 रुपए का 8 महीने का ब्याज ग्रामीण महाजनी दर से ₹32,400 होता हैं। और यदि किसान का अपना खेत नहीं है तो एक हेक्टेयर का किराया ₹25,000 लगेगा। इस प्रकार एक हेक्टेयर मिश्रीकंद की खेती पर कुल खर्च बैठता है ₹1,38,400/- । इसे कुल प्राप्ति में से घटाने पर शुद्ध लाभ ₹3,41,600 आता है।

8 महीने में निवेश का लगभग 250% रिटर्न देने वाला यह काम करने को कहा जाए तो क्या आप करना चाहेंगे ?

बरसाती भिण्डी की खेती

 भिंडी को लेडीज फिंगर या ओकरा(okra) भी कहते हैं। अपने विशिष्ट गुणों के कारण यह एक लोकप्रिय सब्जी है। साल में भिंडी की दो फसलें उगाई जाती हैं पहली फरवरी-मार्च में गरमा फसल और दूसरी जून-जुलाई में बरसाती। यहां हम बरसाती भिंडी की खेती कैसे करें इस विषय पर सभी जरूरी जानकारियां और व्यवहारिक अनुभव शेयर कर रहे हैं।


खेत की तैयारी : लगभग 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से कंपोस्ट डालकर गहरी जुताई करें जिससे खरपतवार मिट्टी के नीचे चले जाएं। दूसरी जुताई में रासायनिक उर्वरक अनुशंसित मात्रा में डालें। दूसरी जुताई यथासंभव रोटावेटर से करें।

खेत का चयन : 6.4 से लेकर 7 पीएच मान वाली हल्की दोमट मिट्टी युक्त ऊंची भूमि में बरसाती भिंडी की खेती करें। जलजमाव से छोटे पौधे गल जाते हैं तथा बड़े पौधों की उत्पादकता घट जाती है।

उर्वरक की मात्रा : सिंगल सुपर फास्फेट यानी एसएसपी 3.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं 80 किलोग्राम यूरिया अथवा 1.5 क्विंटल डीएपी प्रति हेक्टेयर और म्यूरेट ऑफ पोटाश 1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें।

बीज की मात्रा : 8 से 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अथवा 150 ग्राम से 200 ग्राम प्रति कट्ठा। 


उन्नत प्रभेद : परभणी क्रांति, केएच- 312, सेलेक्शन- 8 ,सेलेक्शन -10, एचबीएच -142, भवानी, कृष्णा तथा भिन्न-भिन्न कंपनियों के पीतशिरा प्रतिरोधी हाइब्रिड किस्में।

 संरचना : 60 सेमी चौड़ी बेड के अंतराल पर 15 सेमी गहरी और 40 सेमी चौड़ी नाली बनाएं यह संरचना यथासंभव पूरब से पश्चिम दिशा में बनाएं इससे क्यारियों में धूप ज्यादा अच्छे से लगेगी। बेड के दोनों किनारों से 5 - 5 सेमी छोड़कर बिजाई करें ताकि पौधों की दो कतारों के बीच 50 सेमी का अंतराल रहे।


बीज का उपचार : यदि सवेरे रोपना है तो बीज रात में भिगो दें। सुबह 5:00 बजे पानी से निकाल ले और थीरम नामक फंगीसाइड के सॉल्यूशन में उपचारित कर छांव में सुखा लें। एक किलोग्राम बीज के उपचार हेतु 2 ग्राम थीरम के साथ 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का भी व्यवहार करें।


बिजाई : एक कतार में पौधों से पौधों की दूरी 30 से 40 सेमी रखें और एक स्थान पर 3 या 4 बीज रोपें। यदि सभी उग जाएं तब भी कोई दिक्कत नहीं है। बाद में निकोनी के दौरान कमजोर पौधे को हटाया जा सकता है। एक बेड पर दो कतार लगाएं। बरसाती फसल के लिए प्रायः अंकुरित बीज रोपना अनिवार्य नहीं है क्योंकि जमीन और वातावरण में बहुत अधिक आर्द्रता होती है । केवल फफूंद और बैक्टीरिया संक्रमण से बचा कर रखने की जरूरत है।

खरपतवार नियंत्रण : बिजाई के 15 से 20 दिन बाद पहली निराई करें। खरपतवार हटाने के साथ-साथ मिट्टी भुरभुरी करना भी जरूरी है। जड़ों के विकास के लिए यह अति आवश्यक है। खरपतवार फसल को कमजोर कर देते हैं वह पौधों के हिस्से की पोषक सामग्री भी हजम कर जाते हैं। केमिकल तरीकों से यथासंभव बचे रहें। यह तरीका इको फ्रेंडली नहीं है। पहली निकोनी के साथ ही यूरिया 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। दूसरी निकोनी इसके 20 से 30 दिन बाद इतनी ही मात्रा में यूरिया डालकर करें। उत्पादन : 45वे से 60वें दिन के बीच भिंडी की तुराई आरंभ हो जाती है । यह प्रभेद विशेष तथा परिवर्तनशील भौतिक मौसमी घटकों पर निर्भर करता है कि रोपाई के कितने दिन बाद फल प्राप्त होगा। फसल अवधि में कुल उत्पादन औसतन 90 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है।

निवेश एवं आमदनी : उपरोक्त विधि से खेती करने पर सभी खर्चों को जोड़कर 80,000 से 85,000 रुपए प्रति हेक्टेयर निवेश होता है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहे तो उत्पादन 100 क्विंटल तक हो सकता है। यद्यपि भिंडी का बाजार मूल्य परिवर्तनशील है फिर भी औसत न्यूनतम होलसेल रेट ₹15 प्रति की किलोग्राम रखें तो कुल प्राप्ति ₹1,05,000 हो सकती है। यानी ₹20,000 का न्यूनतम शुद्ध लाभ प्राप्त होगा। किंतु यदि यथासंभव अधिक से अधिक उत्पाद को स्थानीय खुदरा बाजार में किसान सीधे उपभोक्ता को बेचे तब संपूर्ण विक्रय मूल्य दो लाख से अधिक आता है। भिंडी की खेती एक प्रकार का जुआ है।

नोट : -- कुछ अन्य बाह्य कारकों का भी ध्यान रखना पड़ता है। आवारा पशु और नीलगाय इसके सबसे बड़े दुश्मन है। यदि खेत को चारों तरफ से बांस और जाली की सहायता से सुरक्षित कर सकें तो पूरा लाभ उठा सकते हैं।

 रोग एवं कीट नियंत्रण : मुख्य रोग पीतशिरा रोग है एक बार संक्रमित होने पर कोई इलाज नहीं है। इसलिए बीज उसी नस्ल का चुने जो वायरस से होने वाले पीतशिरा रोग से प्रभावित नहीं होता है। फल एवं तना छेदक कीड़ों और अन्य हानिकारक कीटों के नियंत्रण के लिए मालाथियान 50 ईसी 20 एमएल दवा 10 लीटर पानी में घोलकर प्रति कट्ठा की दर से छिड़काव करें। मालाथिऑन के स्थान पर इंडोसल्फान 35 ईसी का उपयोग कर सकते हैं। तनाछेदक एवं फलछेदक अधिक परेशान करें तो फुराडॉन 3 जी दानेदार दवा आधा किलोग्राम प्रति कट्ठा की दर से पूरे खेत में छीट दें । यदि पत्तों पर जाल बुनकर क्षति पहुंचाने वाली मकड़ी या रेड माइट का प्रकोप हो तो डाईकोफॉल 18.5 ईसी 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में डाइल्यूट कर स्प्रे करें। डायकोफॉल के बजाय सॉल्युबल सल्फर का भी प्रयोग कर सकते हैं। रेड माइट नामक मकड़िया बहुत छोटी छोटी होती है जिन्हें बहुत ध्यान से देखने पर ही पता चलता है। इनका प्रकोप बरसाती भिंडी में कम होता है। 

                    सावधानियां : कीटनाशकों अथवा फफूंद नाशी के प्रयोग से पूर्व फल तोड़ ले और स्प्रे के कम से कम 7 दिन बाद ही अगली तुड़ाई करें। क्योंकि यह रसायन जहरीले होते हैं और इनके अवशेष शरीर में उपद्रव मचा देते हैं अतः इनसे बचने के उपायों का सतर्कता से पालन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त फलों की तुराई में यह भी सतर्कता बरतनी चाहिए की पूर्ण परिपक्व होने से पहले ही फलों को तोड़ लें। फल की लंबाई तो बढ़ जाए किंतु यह नरम रहे तभी तोड़ ले। रेशे कड़े हो जाने पर बिक्री में परेशानी आती है साथ ही भिंडी के ढेर में कुछ कठोर रेशे वाले परिपक्व फल दिख जाने पर मूल्य कम हो जाता है। फसल से पूरा लाभ लेने के लिए इन छोटी-छोटी बातों का बड़ा ध्यान रखना पड़ता है । फल तोड़ने में पौधे क्षतिग्रस्त ना हो इसके लिए चाकू या ब्लेड से फल का डंठल काटे। बड़े खेतों से फल तुराई के लिए हाथों पर प्लास्टिक के डिस्पोजेबल दस्ताने लगाएं क्योंकि भिंडी के पत्तों और फलों पर खुजली व इरिटेशन उत्पन्न करने वाले रोम होते हैं।

बैंगन की उन्नत खेती


बैंगन (Brinjal) सोलेनेसी (Solanaceae) कुल का एक पौधा है जिसके फल भारत ही नही दुनियाभर में सब्ज़ी के तौर पर लोकप्रिय हैं।इसके कुल वैश्विक उत्पादन में अकेले भारत का योगदान 27% है,जबकि चीन शीर्ष पर है।

गुण(Qualities) :  यह शरीर में कोलेस्ट्राल घटाने में मददगार सिद्ध हुआ है।सुपाच्य है और स्वादिष्ट भी।हृदय रोग से बचाता है और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित रखने में सहायक है।सब्जियों का राजा कहलाता है।

 दोष(Drawbacks) :  लोक प्रचलित मान्यता है कि बैंगन खाने से खुजली बढती है। मगर जिसे पहले से खुजली नही है उसे कोई फर्क नही पड़ता। 

चूंकी बैंगन हर मौसम में उपलब्ध रहता है तो जाहिर सी बात है कि इसे वर्ष में एक से अधिक बार रोपा जाता होगा। यह खरीफ, रबी और गरमा तीनो मौसम में रोपा जाता है।

खरीफ : जून-जुलाई में बीजाई कर जुलाई-अगस्त में रोपाई, यह मुख्य फसल है।जब नर्सरी में 5-7 इंच के पौधे हो जाए तब उखाड़ कर खेत में लगाएं।

● रबी : अक्टूबर में बीजाई और नवम्बर माह में रोपाई। 

● गरमा : फरवरी मध्य से मार्च तक बीजाई और मार्च-अप्रैल तक रोपाई। 

स्थानीय जलवायु की विशिष्टता के अनुरूप उपरोक्त समय से कुछ भिन्न शेड्यूल भी हो सकते हैं।

पौधशाला में बीज गिराकर बिचड़े तैयार करना उन्हीं किसानों के लिए उपयुक्त व व्यवहारिक है जो व्यवसायिक पैमाने पर बैंगन की खेती करना चाहते हैं, अन्यथा छोटे पैमाने पर, टेरेस गार्डन में या बैकयार्ड किचन गार्डन में रोपने के लिए तैयार बिचड़े खरीद लेना सुविधाजनक होता है।परन्तु मनपसंद प्रभेद के लिए स्वयं बीजाई कर पौधे तैयार करना श्रेष्ठ विधि है।

प्रचलित देशी किस्में : -- गुच्छेदार हरा,कचबचिया/सतपुतिया,गुच्छेदार सफेद इत्यादि। 

उन्नत किस्में : -- पूसा पर्पल लॉङ्ग (PPL),चाइनीज लॉन्ग पर्पल F-1,ब्रिंजल ब्लैक ब्यूटी,व्हाइट ऑब्लॉङ्ग राउंड, नीलम,राजेन्द्र बैंगन-1,राजेन्द्र बैंगन-2,पूसा क्रांति,पूसा अनमोल, पंत ऋतुराज, पंत सम्राट, कल्याणपुर टी-3,  US-1004 हाइब्रिड F-1 इत्यादि। इनमें से पूसा क्रांति और ब्लैक ब्यूटी गोल और वजनदार होते हैं।ये भर्ता/चोखा के लिए ज्यादा उपयुक्त होते हैं तथा बाजार में अपेक्षाकृत महँगे बिकते हैं।PPL,नीलम और राजेन्द्र बैंगन अधिक प्रचलन में हैं।चाइनीज मिर्च की तरह चाइनीज बैंगन भी लोकप्रिय हो रहा है।

खेत की तैयारी - पहली जुताई गहरी होनी चाहिए। जुताई से पहले ही 200 क्विंटल/हेक्टेयर की दर से कम्पोस्ट डाल दें।दूसरी जुताई रोपने से दो-तीन दिन पूर्व करें और अनुशंसित मात्रा में रासायनिक उर्वरक भी डाल दें। 

रोपने का तरीका : - गरमा बैंगन (फरवरी-मार्च) 60 सेमी ×45 सेमी के फॉर्मेट में रोपते हैं, जबकि मुख्य फसल (जून-जुलाई) 75 सेमी × 60 सेमी के फॉर्मेट में।प्रति थाला 6 इंच के दायरे में 2-3 बिचड़े लगाएं।ये तो हुई खेतों में बैंगन लगाने की विधि, अब हम शहरी और गार्डेनिंग का शौक रखने वाले पाठकों की रूचि का ध्यान रखते हुए टेरेस एवं लॉन गार्डेनिंग के तहत गमलों, ग्रो बैग्स या बेकार पड़े खाली प्लास्टिक के डिब्बों में बैंगन उपजाने की विधि जानेंगे। जो भी पॉट्स लें उनके बॉटम में जल निकासी के लिए छिद्र होने चाहिए। यदि नही हैं तो कर लें।ग्रो बैग्स जो आजकल चलन में हैं और बाजार या ई-कॉमर्स प्लेटफार्म्स पर उपलब्ध हैं, उनमें जल निकासी की समुचित व्यवस्था बनी होती है। पॉट्स के बॉटम में जो छिद्र हैं उन पर सीधे मिट्टी डालने के बजाए पहले टुटे हुए मिट्टी के बर्तन या खपरों के टुकड़े डालें ताकि मिट्टी से छिद्र बंद न हो। यदि पूरा पॉट केवल खेत या गार्डन की मिट्टी से भर देंगे तो अपेक्षित परिणाम प्राप्त नही होगा।सही बढवार के लिए मिट्टी,खाद और softening agents (मृदुकारक घटक) का उचित मिश्रण जरूरी है। यदि आप पहले से कोई उपयुक्त मिश्रण इस्तेमाल कर रहे हैं तो ठीक है अन्यथा गार्डन स्वाएल, कोको पिट और वर्मी कम्पोस्ट तीनो बराबर मात्रा में मिलाकर पॉट्स को भरें। पौधा रोपें और सिंचाई करें।रोपने से पहले जड़ों पर थीरम 75% पाउडर छिड़कें या बेवेस्टीन के 0.5%  घोल में कुछ देर डुबोकर रखें। 

अनुशंसित उर्वरक  : - प्रति हेक्टेयर 3-3.5 क्विंटल सिंगल सुपर फास्फेट, 1 क्विंटल म्यूरेट ऑफ पोटाश और 0.8 क्विंटल यूरिया अंतिम जुताई में दें।इतनी ही मात्रा यूरिया की रोपने के 30 वें और 60 वें दिन डालें।कम क्षेत्र में बैंगन की खेती करना हो तो इस प्रकार समझें : SSP 6-7 kg,MOP 2kg, यूरिया 1.6 kg प्रति कट्ठा।(10,000 वर्ग मीटर = 1 हेक्टेयर; लगभग 50 कट्ठा = 1 हेक्टेयर)

सिंचाई : - मुख्य फसल के लिए प्रायः सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती।नवम्बर से मई तक आवश्यकतानुसार सिंचाई कर सकते हैं।ध्यान रहे जड़ों के पास जल जमाव न हो।


खरपतवार नियंत्रण
: - रासायनिक विधि का प्रयोग न करें।पारंपरिक तरीका अपनाते हुए खुरपी-कुदाल से घास निकालें,मिट्टी भुरभुरी करें।50-60 दिन बाद दूसरी निराई के बाद कतार पर मिट्टी चढायें। बगल के चित्र को जूम कर देखें कि कैसा करना है।

कीट प्रबंधन : - बैंगन की फसल में फल छेदक और तना छेदक कीड़ा ज्यादा लगता है।यह अग्रस्थ कलिकाओं को नष्ट कर फलन को बाधित कर देता है।जो फुनगियां मुरझाई हुई दिखे उन्हें यथासंभव तोड़कर हटा दें और मालाथिऑन 50 EC 20ml दवा प्रति कट्ठा 10 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।इसके स्थान पर इंडोसल्फान 35 EC का भी प्रयोग कर सकते हैं।फुराडान 3जी दानेदार दवा 500 ग्राम प्रति कट्ठा की दर से पौधों के पास डालें।

स्पेशल टिप्स : अधिक उपज, शीघ्र फलन और गुणवत्ता वृद्धि के लिए समय-समय पर माईक्रो-न्यूट्रिएन्ट्स और हार्मोन का foliar spray(पर्णीय छिड़काव) कर सकते हैं।

उपज : उपरोक्त तरीके से खेती कर एक सीजन में 250 - 300 क्विंटल/हेक्टेयर उपज प्राप्त कर सकते हैं।

लागत एवं लाभ : वर्तमान दरों के सापेक्ष 1 हेक्टेयर बैंगन की खेती करने में 1 लाख रूपए खर्च होते हैं। कुल न्यूनतम उपज 250 क्विंटल मानें और थोक मूल्य दर 10/- प्रति किलोग्राम लें तो उत्पाद का कुल मूल्य 2,50,000/- ढाई लाख रूपए  बनता है।इस प्रकार 100-120 दिन में 1,50,000/- डेढ लाख रूपए शुद्ध लाभ प्राप्त होता है। 150% का लाभ कुछ कम है क्या?तुलना करें ओल की खेती

ओल की खेती

 


🎃एक बहुवर्षीय भूमिगत रूपांतरित तने या घनकंद के रूप वाली सब्जी जिसे उत्तर भारत में 'ओल','सूरन' या 'जिमीकंद' आदि नामों से जाना जाता है और अंग्रेजी में Elephant Foot कहलाता है,एंटीऑक्सीडेंट्स और औषधीय गुणों से लबालब भरा हुआ है। कुछ लोगों को लगता है कि यह  yam  है पर वास्तव में रतालू को yam  कहा जाता है जो एक लता वर्गीय पौधे के पर्व-संधियों पर और कंद के रूप में प्राप्त होता है। ओल को वैज्ञानिक भाषा में Amorpholus ceompenulatus कहा जाता है। 

            🥔      ओल न केवल एक लोकप्रिय स्वादिष्ट सब्जी है बल्कि औषधीय गुणों से भरपूर कंद भी है। बवासीर के मरीजों के लिए यह ज्यादा ही फायदेमंद होता है। मिनरल्स और फाईबर्स के साथ-साथ काफी मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट का सुलभ प्राकृतिक स्रोत भी है। दो-तीन दशक पहले तक यह आमतौर पर Backyard kitchen-garden का हिस्सा हुआ करता था किन्तु बढती माँग को देखते हुए अब इसकी खेती भी होने लगी है। व्यवसायिक पैमाने पर खेती के लिए इसके उच्च उपज क्षमता वाले प्रजातियों की पहचान की गई है और इन्हीं को रोना जाता है। कम उपज वाले प्रभेद जिनमें ऑक्जेलेट्स अधिक होते हैं और गले में प्रायः तकलीफ़ पहुँचाने का काम करते हैं, अब यूपी-बिहार के बैकयार्ड किचनगार्डन में सीमित रह गए हैं।मगर इनमें औषधीय गुण ज्यादा हैं। 

उन्नत प्रभेद -- गजेन्द्र,, त्रिवेन्द्रमी,हैदराबादी, मद्रासी ।

भूमि का चयन :-- हल्की दोमट,बलुई,ह्युमसयुक्त ऊँची जमीन जिसमें बरसात का पानी नहीं रुकता है,ओल के लिए सर्वश्रेष्ठ है। उसर भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है। आम-लीची आदि के बगीचों में छायादार परिस्थितियों में भी यह अच्छी तरह उगती और उपज देती है। 

🧭रोपने का सही समय : -- मार्च-अप्रैल या जून।

🎯बीज का आकार :-- 500 ग्राम के आसपास के कंद या कंद के टुकड़े। प्रत्येक टुकड़े में मुख्य अंकुर का कुछ भाग रहना चाहिए। इससे पुष्ट पौधे प्राप्त होते हैं । किन्तु यदि घरेलू प्रभेद का उपयोग करना चाहें तो 200-250 ग्राम के कंद या कंद के टुकड़े आरोप सकते हैं। 

💥पौधे से पौधे की दूरी :-- 75 सेमी ×75 सेमी(500 ग्राम के कंद या कंद के टुकड़े रोपने के लिए), बगीचों में यह दूरी 1 मी × 1 मी उपयुक्त है। 

👌बीजोपचार :-- बाविस्टिन या इमीसान-6 की मात्रा  2.5 ग्राम/लिटर पानी में घोल कर 15-20 मिनट तक बीज कंद को डुबो कर रखें। इस घोल में स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 1/2 ग्राम प्रति लीटर की दर से मिला देना चाहिए।यह एक एंटीबायोटिक है जो पौधों में होने वाले बैक्टीरिया जनित रोगों का निवारण करता है। 

🌿बीज की मात्रा  : -- 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर (1 हेक्टेयर =100 मीटर × 100 मीटर =10000 वर्ग मीटर )         प्रयोग के लिए एक कट्ठा में  लगाना चाहते हैं तो 1.6 - 2 क्विंटल बीज लगेगा। 

🟢खाद एवं उर्वरक : -- जुताई के साथ खाद देने के बजाय प्रत्येक पौधे को लक्षित कर प्रति गड्ढा 3 किलोग्राम सड़ी गोबर अथवा 1 किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट ,38 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 20 ग्राम अमोनियम सल्फेट या 10 ग्राम यूरिया, 16 ग्राम पोटैशियम सल्फेट मिट्टी में मिलाकर कंद का रोपण करें। इससे उर्वरक का पूरा लाभ तो पौधे को मिलता हीं है लागत खर्च में कमी भी होती है। रोपण के 80-90 दिन बाद नेत्रजनीय उर्वरक से उपरिवेशन करना जरूरी है। 

🌵🌾☘निकाई-गुडाई (खरपतवार निकालना एवं मिट्टी की उपरी परत ढीली करना) : -- पहली बार 50-60 दिन की अवस्था में, दूसरी बार 90-100 दिन की अवस्था में। पहली निकौनी के दौराञन पौधे के पास मिट्टी चढाना जरूरी है। 

🚰 सिंचाई: -- वैसे तो आमतौर पर ओल की खेती में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है किन्तु सूखे की स्थिति में मई-जून के महीने में नमी बहुत कम हो जाने पर हल्की सिंचाई कर सकते हैं पर जल जमाव न हो।

📆 इस फसल की अवधि अन्य फसलों की तुलना में अधिक है । 9-10 माह में कंद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं

💲💱उपज :-- सामान्यतः रोपे गये कंद के वजन के 8-10 गुणा उपज की अपेक्षा रहती है। विभिन्न कृषि अनुसंधान संस्थानों, कृषि महाविद्यालयों में किये गये परीक्षणों से भिन्न-भिन्न उपज संबंधी आकड़े (data) प्राप्त हुए हैं। पूसा कृषि विश्वविद्यालय समस्तीपुर, बिहार के  अनुसार कम से कम 400-500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है। 

🔁🏛 आय-व्यय :-- एक हेक्टेयर में अनुमानित लागत =₹ 4,50,000                                                                      400 क्विंटल न्यूनतम उपज प्राप्त होने पर फसल का न्यूनतम मूल्य =₹ 8,00,000                                                          शुद्ध लाभ=₹ 3,50,000 ( 77%)

मृदा की गुणवत्ता, मौसम की अनुकूलता एवं उचित देखभाल से उपज और मुनाफे में वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं।  Tips: रोगों का काल है जिमीकंद, जानें इसके 5 फायदे  via zeenews - https://zeenews.india.com/hindi/health/health-benefits-of-jimikand-in-hindi-know-the-five-benefits-of-jimikand-spup/889218

जून माह में किये जाने वाले कृषि कार्य

 जून माह भारतीय पंचांग के अनुसार प्रायः ज्येष्ठ आषाढ़ के महीनों के मध्य आता हैं।इसी समय मॉनसून भी दस्तक देता है।इस वर्ष यानि 2021ई० में 3 जून को केरल और 10-12जून तक शेष भारत में मॉनसून का आगमन हो चुका हैं।और अच्छी खासी बारिस के आसार नजर आ रहे हैं।जमीन और हवा में काफी नमी है जो धान के बीज गिराने और विभिन्न खरीफ फसलों की बुआई के लिए उपयुक्त स्थिति हैं। 

कृषि क्षेत्र की एक सच्चाई जिसे अक्सर किसान भाई भूल जाते हैं,वो हैं-"किसान की मर्जी से मौसम नहीं बदलता,पर वे मौसम के अनुरूप खेती कर सकते हैं।"    

यदि उपरोक्त सूत्र वाक्य का मर्म समझ लें तो खेती लाभ का धंधा बन सकता हैं।मोटे तौर पर ज्यादातर लोग रूटीन खेती करते हैं और मौसम की 'गुगली' में फंस जाते हैं।खरीफ या जायद फसलों के लिहाज से मौसम तीन विकल्पों क्रमशः-बाढ़,सुखाड़ और संतुलित वर्षा में से एक ही उपलब्ध कराती हैं।इसलिए अपनी जमीन की प्रकृति,किस्म और आगामी मौसम पूर्वानुमान के अनुरूप फसल का चुनाव करें और स्मार्ट किसान बनें।आगे हम जानेंगे इस माह के कृषि कार्यो में से उन मुख्य कार्यो के बारे में,जो इस वर्ष की संभावित बरसात की मात्रा के अनुरूप हैं।

1.‌ अनाज की खेती:-


(i)धान - चावल जो पूरे एशिया और खास तौर पर भारत में भोजन का सबसे प्रमुख  घटक हैं,धान से ही प्राप्त होता हैं।इसकी इतनी ज्यादा प्रजातियाँ हैं कि सबकी चर्चा की जाए तो महाग्रंथ बन जाए। भारत में मुख्यतः ये धान के खेत हैं -- पर्वतीय-पठारी भागों के सीढ़ीदार खेत,मैदानी भागों के सामान्य,मध्यम,नीची और गहरी जमीन।इन में से गहरे जल जमाव वाली भूमि में सामान्यतः फरवरी से अप्रैल तक ही मूंग  और धान  की मिश्रित बोआई की जाती हैं,फिर वर्षा जल के जमाव से मूंग सूख कर सड़ जाती है और जैविक खाद की तरह उर्वरा शक्ति वढ़ाती हैं।धान जल स्तर के अनुरूप बढ़ता जाता हैं।इसके परंपरागत  किस्में  जागर,पाखर,जेसरिया ईत्यादि हैं जबकि उन्नत प्रभेद जानकी और सुधा हैं।शेष चारों भूमि में धान सीधी बुआई के बजाए नर्सरी तैयार कर बिचड़े कीचड़ में रोपने की विधि से लगाई जाती हैं।अभी नर्सरी में धान के बीज बोने का उपयुक्त समय हैं।बीज बोने के25 दिन बाद पौधे उखाड़ कर अच्छी तरह जुताई कर कीचड़(mud) बनाये गये खेत में रोप सकते हैं।रोपन के पूर्व फास्फेट की पूरी मात्रा पोटाश की आधी मात्रा और नाइट्रोजन की एक चौथाई मात्रा का प्रयोग करें।

(ii) मक्का - खरीफ मक्का की  खेती/बुआई साफ मौसम देख कर कर लें।फफून्दनाशी से बीजोपचार करना न भूलें।

(iii)मरूआ या रागी - खरीफ मरूआ की रोपाई जून में पूरा कर लें।गरमा मरूआ यदि रोपा हैं तो उपरिवेशन कर लें।यह सबसे अधिक फायदेमंद मोटा अनाज (millet)हैं।इसका हलवा और रोटी बनाई जाती हैं जो अत्यंत पौष्टिक व शक्तिवर्धक  खाद्य पदार्थ हैं।

(iv)ज्वार - बाजरे की बुआई भी जून माह में ही की जाती हैं।बिहार के आरा - बक्सर पूर्वी उत्तरप्रदेश,राजस्थान,मध्यप्रदेश में इसकी खेती  होती हैं।कम वर्षा वाले क्षेत्रों में अपेक्षाकृत  ऊँची भूमि में मोटे अनाज एवं पशुओं के चारे के लिए इन्हे उपजाया जाता है।

2. दलहन की खेती :- जून माह में मुख्यतः दो दलहन फसलें बोई जाती हैं।


अरहर+उड़द,अरहर+मक्का,उड़द+मक्का,अरहर+मरूआ,अरहर+मूँगफली,अरहर+मिश्रीकन्द,अरहर+साँवा।अरहर(pigeon pea)उच्च कोटि की दलहन प्रजाति हैं,जिसमें 21-26% तक प्रोटीन पायी जाती हैं।यह पूरे भारतवर्ष में लोकप्रिय हैं और कई  नामो से जाना जाता हैं;जैसे - तुअर,तूर,रहरी,अरहर,आदि।लिन्नियस नामकरण पद्घति के अनुसार इसे Cajanus cajan या Cajanus indicus कहते हैं। यह एक लम्बी अवधि की फसल है जो खेत में 9 महीने रंडरहती है। शुद्ध अरहर की फसल उगाने के लिए प्रति हेक्टेयर 20 कि०ग्रा० बीज की जरूरत होती है।मिश्रित खेती के लिए 15 कि०ग्रा० बीज पर्याप्त है।अकेले उत्तरप्रदेश में 30 लाख एकड़ से अधिक क्षेत्र में इसकी खेती होती है।उन्नत प्रभेद - प्रभात,बिहार,लक्ष्मी,BR-65,मालवीय अरहर-151उरद के उन्नत प्रभेद-T-9को जून-जलाई में बो सकते हैं।

3. तिलहन- खरीफ फसल में तिलहन के की विकल्प हैं।-तिल,सूरजमुखी,मूँगफली,एरंड/अंडी।अंडी एक अखाद्य तिलहन फसल हैं और इसकी बुआई जुलाई-अगस्त  में होती हैं।जबकि तिल,मूँगफली,सूरजमुखी खाद्य श्रेणी के तिलहन हैंऔर 15 जून से 15जुलाई के बीच बोए जा सकते हैं।मूँगफली  के लिए ऊँची,ह्लकी दोमर मिट्टी उपयुक्त हैं।तिल के लिए भी ऊँची जमीन  चाहिए  जिसमें जल जमाव न हो।कमोवेश सूर्यमुखी भी जल जमाव को बर्दाश्त  नहीं कर पाती हैं।

4. कन्दवर्गीय फसलें:-अदरक व हल्दी रोपने का समय मई तक ही हैं जो बीत चुका हैं।ओल की अगैती बुआई मार्च-अप्रैल  में हो चुकी हैं किन्तु मुख्य फसल जून माह में ही रोपाई जाती हैं।विस्तृत  जानकारी के लिए निम्नांकित  लिंक को क्लिक करें : ओल की खेती 

 खरीफ  अरबी मई-जून में ही रोपी जाती हैं,जबकि इसकी वसंतकालीन रोपाई फरवरी में होती हैं।12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज लगता हैंऔर उपज 80-100 क्विंटल तक होती हैं इसके कन्द के अलावा पत्तों की भी सब्जी बहुत स्वादिष्ट  होती हैं।130-140दिन में फसल खोदने के लिये तैयार हो जाती हैं।अच्छी कमाई के लिए  इसका खेती कर सकते हैं।जून के अंत से जुलाई भर मिश्रीकन्द  यानि केसऊर की खेती कर सकती हैं।सितम्बर  अरहर के साथ इसकी मिश्रित खेती सितम्बर माह में भी कर सकते हैं।जून- जुलाई में बोने पर बीज 15-20kg/hectare और अगस्त  में 30-40 kg/hectare और सितम्बर  में 50-60kg/hectare की दर से लगता हैं।जून-जुलाई में इसे मकई और अरहर के साथ भी लगा कर सकते हैं।मिश्रीकन्द की खेती के विशेष इच्छुक हैं तो कमेंट सेक्शन में लिखें।इस पर विस्तृत  एवं अनुभव सिद्ध तथ्यों से परिपूर्ण लेख उपलब्ध कराया जाएगा।

5. बरसाती सब्जियों की खेती :-ज्यादातर बरसाती सब्जियाँ गरमा और बरसाती दोनों रूपों में उगाई जाती हैं,जिसमें बैगन,भिण्डी,लौकी,खीरा,घिनौनी,करेला,नेनुआ,बोदी,पेठा और मिर्च प्रमुख हैं।इनमें से भिण्डी को छोड़कर शेष सभी के लिए थोड़ा सा जल जमाव  भी अत्यंत घातक हैं।इस तथ्य को ध्यान में रख कर ही उपयुक्त भूमि में इन फसलों को लगाए।ये सारी सब्जियाँ टेरेस गार्डन,लाॅन या बैकयार्ड किचन गार्डन के लिए भी बहुत उपयुक्त  हैं।


फूलगोभी(Cauliflower): जून माह में अगैती (early)प्रभेद का बीज नर्सरी में बोया जाता हैं।बिहार में प्रचलित नस्लें हैं-पटना अर्ली,पूसा कतकी,कुँआरी ।इनके अलावा कुछ  हाईब्रिड  नस्लें भी उपलब्ध हैं।छोटे स्तर पर गमलों में भी बीज बोया जा सकता हैं।बरसाती मौसम में उगते ही बेवकूफ की तरह लम्बे होकर मुरझाते हुए मर जाने की बीमारी अक्सर  अगात फूलगोभी की नर्सरी में पाई जाती हैं।इसके निराकरण  हेतु streptocycline नामक antibiotic दवा का प्रयोग  बीजोपचार तथा उगते के बाद स्प्रे के रूप में भी करना चाहिए।600-700  ग्राम बीज लगता हैं। यह उच्च लाभ देने वाली फसल हैं किन्तु विशेष देखभाल  की जरूरत पड़ती हैं।

 


बैंगन
(Egg plant/Brinjal):बैगन की मुख्य फसल हेतु जून महीने के अंत तक पौधशाला में बीजाई कर देनी चाहिए।वैसे 15  जुलाई तक भी कर सकते हैं।बैंगन की खेती पर विस्तृत व पूर्ण जानकारी के लिए alongwithroots.blogspot.com पर विजिट करते रहें।(शीघ्रप्रकाश्य)।

भिण्डी(Okra/Lady finger): बरसाती भिण्डी की बोआई  जून से जुलाई तक कर सकते हैं।एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 8-10 kg बीज लगता है।कतार से कतार की दूरी 50 सेमी और कतार में पौधे से पौधे की दूरी 40 सेमी रखें।

लौकी(Gourd): जून-जुलाई  में रोपी जाने वाली बरसाती लौकी नवंबर-दिसंबर तक फल देती है।खेतों में लगाने के लिए ऊँचे थाले बनाए जिनमें पहले से 2-3 kg सड़ी गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट के साथ 20 ग्राम यूरिया,25 ग्राम पोटाश  और 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट प्रति थाला मिला लें और तीन बीज  प्रत्येक में रोपें।गमलों या ग्रो बैग में  भी इसी प्रकार  रोप सकते हैं।मचान बनाना जरूरी हैं।


नेनुआ/घिउरा(Sweet Gourd/SpongeGourd)  :इसे बरसात में जुलाई महीने में 2m×1.5m की दूरी पर ऊँची बेड बना कर रोपते हैं।खाद एवं उर्वरक लौकी के समान प्रयोग  करें।यदि 1m चौड़ी व 20cm ऊँचे बेड बना कर रोपें तो बिना मचान बनाए भी उपज ले सकते हैं किन्तु मचान पर फलों की गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ जाती हैं।



तोरई/झिगुनी(RidgeGourd):जून-जलाई  माह में एकल या मिश्रित फसल के रूप में इसे लगाया जाता हैं।( गरमा तोरई फरवरी- मार्च में रोपी जाती हैं।) अरहर+मकई+ तोरई एक प्रचलित  फसल संयोजन हैं।एकल फसल के रूप में नेनुआ की तरह ही बेड बनाकर रोप सकते हैं।मचान बनाकर लताओं को उन पर फैलने दें।इससे उपज की मात्रा एवं गुणवत्ता बढ़ जाती हैं।खाद एवं उर्वरक की मात्रा कद्दू से आधी कर दें।उन्नत प्रभेद पंजाब सदाबहार,पूसा नसदार,सतपुतिया,PKM1,कोयम्बटूर-2 इत्यादि।

 खीरा(Cucumber): बरसाती खीरे की खेती 50 सेमी चौड़ी,20 सेमी ऊँची बेड व 50 सेमी चौड़ी नाली के अंतराल बनाकर 50-50 सेमी की दूरी पर 3-3 बीज रोपते हुए करें।खाद एवं उर्वरक का प्रयोग जुताई के समय ही कर दें।यह सावन-भादो के महीने में फल देता है।इस दौरान सामान्य माँग के अतिरिक्त व्रत-त्योहारों की भरमार होने से अत्यधिक माँग उत्पन्न हो जाती है जिससे मूल्य ज्यादा मिलता है।

करेला (BitterGourd): जून-जुलाई में मुख्यतः दो प्रकार के करेले रोपे जाते हैं - बारहमासी और हाईब्रिड। पुरानी भदई नस्लें अब लुप्तप्राय हैं।इसकी लताएँ जमीन पर फैल कर फल नही देती।मचान बनाकर ही उपज ले सकते हैं। कीटनाशक एवं फफून्दनाशी का आवश्यकतानुसार उपयोग करना पड़ता है। 

बरबटी/बोदी/बोरो(Long Beans): बोने का समय - जून से जुलाई तक। उन्नत प्रभेद - पूसा बरसाती,पूसा दोफसली, पूसा ऋतुराज। पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी,कतार से कतार की दूरी 25 सेमी। खाद एवं उर्वरक - कम्पोस्ट 4 क्विंटल/कट्ठा, यूरिया 1.4 kg/कट्ठा, म्यूरेट ऑफ पोटाश 1.5 kg/कट्ठा और सिंगल सुपर फास्फेट 5 kg/कट्ठा। (1 कट्ठा=1760 वर्ग फीट)

6. बागवानी : - आम,अमरूद, लीची,केला, नींबु, नारियल के पौधे लगाने का सबसे अधिक उपयुक्त समय 15 जून से 31 जुलाई तक है।यदि अप्रैल माह में गड्ढे खोदकर तैयार कर लिए गए हैं तो रोपने से 10-12 दिन पूर्व खाद-उर्वरक और मिट्टी का मिश्रण भरकर दबा दें।

7. वानिकी  : - गम्हार, जल गम्हार,बकाईन, करंज, बबूल, खैर के बीज पौधशाला में लगायें।

मौसम के मिजाज और सरकारी नीतियो के चक्रव्यूह में फंसी खेती

 बीत चुका है मई का महीना और 3 जून को मॉनसून पहुंचा केरल तट।इससे पहले 'तौक्ते' और 'यास' तूफ़ानों के कारण दो बार भारी वर्षा हो चुकी है।कुछ क्षेत्रों में तौक्ते ने तबाही मचाई तो कुछ में 'यास' ने।बिहार-बंगाल-झारखंड में मूंग और सब्ज़ी की फसलें नष्टप्राय हो गई। दियारा क्षेत्रों में तरबूज, ,खरबूज, ककड़ी, खीरा और कद्दूवर्गीय सब्जियों की फसल पूरी तरह नष्ट हो गई। किसानों की मेहनत और लागत पर पानी फिर गया। चूंकि इनकी खेती में मोटी रकम लगती है,इसलिए ज्यादातर किसानों की हवा निकल गई। महाजन और बैंक तो सूद समेत कर्ज की वसूली के लिए सिर पर सवार होंगे ही ----  घर खर्च कैसे चलेगा!

समय-समय पर सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर जो कृषि क्षेत्र में उन्नति संबंंधी चिकने-चुुपडे आंंकड़े पेश किए जाते हैं उनसे तो लगता हैै कि सब कुछ ठीक चल रहा है। मगर ऐसा है नही।आज बिहार-यूपी के गाँवों में खेती की वो हालत नहीं है जो आम तौर पर आधिकारिक रूप से पेश की जाती है।

चौंकाने वाले तथ्य :

■ 80 से 90% रैयती किसान स्वयं खेती नही करते।मगर किसान कहलाते हैं।

■ भारत सरकार इन्हीं किसानों को प्रधानमन्त्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत सम्मानित करती है।(6000 ₹ वार्षिक)

■ अकेले बिहार राज्य में 1,19,00,520 तथाकथित सम्मानित किसान हैं जो कुल जनसंख्या का 12 से 15% हैं।

■  वर्ष 2020 में बिहार के कुल 1002 किसानों ने पैक्सों को मात्र 0.05 लाख मीट्रिक टन गेंहू बेचा।(अर्थात 50000 क्विंटल)

जमीनी हकीकत :

रैयती किसान या भूस्वामी स्वयं खेती करने की जहमत नही उठाते हैं।दरियादिली दिखाते हुए वैसे भूमिहीन मजदूर या सीमांत किसान को जमीन जोतने-बोने देते हैं जो उपज का आधा हिस्सा बैठे बिठाए दे जाता है।अथवा अल्पकालिक या दीर्घकालिक लीज पर जमीन दे देते हैं ।इस प्रथा को बटाईदारी, मनखप आदि नामों से जाना जाता है।एक ठीक-ठाक दो फसली जमीन का औसत वार्षिक किराया आमतौर पर(धान+गेंहू)15 क्विंटल/हेक्टेयर है।बाढ,सुखाड़ या किसी अन्य कारण से फसल भले नष्ट हो जाए,खेत का किराया तो चुकाना पड़ेगा।समाज में ये सब सामान्य समझा जाता है,मगर क्या यह वास्तव में सामान्य बात है?

असामान्य बातें :

●सरकार खेती करने वालों को भी किसान मानती है और न करने वालों को भी।

●जो भूमिहीन खेती करता है,वो सरकार की नजर में किसान सम्मान योजना में लाभ प्राप्त करने का हकदार नही है।

●भूमिहीन खेती तो कर सकता है मगर कृषि संबंधित किसी भी सब्सिडी या सरकारी सहायता को प्राप्त करने का पात्र नही हो सकता।

●निजी क्षेत्र को मनमानी उपज खरीद दर निर्धारित करने की खुली छूट। 

जो खेती नही करते मगर जमीन के मालिक हैं,वे सरकारी किसान हैं और जो खेती करते हैं पर जमीन का मालिकाना हक नही रखते वे सरकार की दृष्टि में किसान नही हैं।

            भई वाह! जो पूँजी लगाए,मेहनत करे और रिस्क फैक्टर भी झेले वो न तो उद्यमी है और न किसान!उसे न तो किसान सम्मान योजना का लाभ मिलता है और न फसल क्षति मुआवजा या फसल बीमा लाभ।खाद-बीज सब्सिडी या डीजल अनुदान की तो बात भी करना बेमानी है।कृषि विभाग बिहार राज्य के वेबसाइट पर पंजीकृत किसानों की संख्या 1,67,56,502 है और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना से लाभान्वितों की संख्या 1,19,00,520 है।यह बिहार की जनसंख्या का 12-15% हिस्सा है।आज की तारीख में यदि निष्पक्ष स्वतंत्र जांच एजेंसी से जांच या सर्वे करा लें तो तथाकथित किसानों की पोल खुल जायेगी।इनमें से 15-20% लाभुक वास्तविक किसान भी होंगे।मगर शेष निठल्लों को किस आधार पर 'सम्मानित' किया जा रहा है,यह समझ से परे है।

⁉️क्या यह जनता को नाकारा बनाने का सिस्टम नही है?

⁉️ क्या यह आम करदाता की गाढी मेहनत की कमाई व्यर्थ लुटाने जैसा नही है?

यह विकास का कैसा मॉडल है?

सरकारें दावा करती हैं एमएसपी पर किसान का अनाज खरीदने का,मगर नया कृषि बिल जिसका विरोध देशभर के किसान दिल्ली में जुट कर कर रहे हैं वह निजी क्षेत्र को खुली छूट देता है कि मनचाहे तरीके से कृषि क्षेत्र का शोषण कर सके।यदि बात करें बिहार की तो यहां पंचायत स्तर पर सहकारी कृषि साख समितियों(पैक्स) और प्रखंड स्तर पर व्यापार मंडल का सिस्टम स्थापित किया गया है जो किसान का अनाज भी खरीदती है।वित्तीय वर्ष 2020-2021 अंतर्गत बिहार सरकार ने धान अधिप्राप्ति के लिए 1868 रूपये/क्विंटल का दर निर्धारित किया मगर ज्यादातर खेतिहरों को 1100-1200 रूपये/क्विंटल की दर पर बेचना पड़ा। ये बीच का 668-768 रूपया किसकी जेब में गया?इसी प्रकार अप्रैल 2021 में गेहूँ का समर्थन मूल्य आया 1975 रूपए/क्विंटल और किसानों को औसतन1500 रूपए/क्विंटल की दर से बनियों के हाथ बेचना पड़ा। बीच का 475 रूपया कहाँ गया?

जहाँ तक वर्ष 2020-21 में गेहूँ की सरकारी खरीद की बात है,तो बिहार में कुल 1002 किसानों से मात्र 50,000 क्विंटल अनाज खरीदी गई। जबकि यहाँ 1 करोड़ 19 लाख 520 सम्मानित और 1 करोड़ 67 लाख 56 हजार निबंधित किसान हैं।जबकि पूरे भारत देश में एमएसपी पर 43 लाख 35 हजार 972 किसानों ने गेहूँ  बेचा। आधिकारिक आँकड़ों की माने तो बिहार में गेहूँ का औसत वार्षिक उत्पादन 60 लाख मीट्रिक टन है।

यहाँ ग़ौरतलब सवाल यह है कि किसान पैक्स में 1975 रूपए/क्विंटल की दर से गेहूँ बेचने के बजाय निजी क्षेत्र में 1500 रूपए/क्विंटल के भाव से बेचना क्यों पसंद करते हैं?

धान खरीद के आंकड़ों पर गौर करें तो हम पाते हैं,वर्ष 2020-21 में बिहार के 1,39,188 किसानों से 10,19,680.26 मीट्रिक टन धान खरीदा गया।इनमें से ज्यादातर पैक्स अध्यक्ष के 'यसमेन' या समर्थक हैं,जिनके नाम पर रजिस्ट्रेशन कर 1200 रूपए/क्विंटल खरीदा हुआ धान सरकार को चूना लगाते हुए बेच दिया गया।ये लोग स्थानीय छोटे व्यवसायियों के माध्यम से सस्ता धान खरीद कर सरकार से बेच देते हैं  महँगे दाम पर।

       वर्ष 2020-21 खरीफ सीजन में बिहार सरकार ने रैयत किसानों के लिए धान की पूर्व निर्धारित अधिकतम क्रय सीमा को 200 क्विंटल से बढ़ाकर 250 क्विंटल प्रति किसान कर दिया। जबकि भूमिहीन किसान के लिए 75 क्विंटल से बढ़ाकर 100 क्विंटल प्रति किसान कर दिया।इसका लाभ किसान को तो लगभग न के बराबर मिला मगर बिचौलियों की चाँदी हो गई। इसीलिए कहा जाता है,"माल महाराज के मिर्जा खेले होली"।

चालू सत्र में पैक्सों द्वारा गेहूँ की खरीद जारी है।इसमें भी वही खेत चल रहा है,जो धान क्रय में चला। 3 जून को एक हिन्दी दैनिक में बाइलाईन खबर छपी जिसका आशय यही था।

थोड़ा अतीत में चलें तो पाते हैैं पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश आदि की तरह बिहार राज्य मेें भी सरकार के नियंत्रण वाली अनाज मंडी की व्यवस्था 2006 ई० से पहले तक लागू थी।ऐसी मंडी में किसान से कोई भी MSP से कम मूल्य पर खरीद नही सकता। 2006 ई० मेें कृषि उत्पाद समितियों को खत्म कर निजी क्षेत्र को फायदा और कृषक को घाटा कराने का काम किया गया।इससे व्यापारियों को कम मूल्य लगाने की छूट मिल गई। बाद मेें झोल-झाल वाली पैक्स व्यवस्था कायम की गई जो आज किसानो के शोषण का औजार बन गई है।


 


कोरोना मरीज की देखभाल होम आइसोलेशन में कैसे करें



 पिछले आलेख में आपने जाना कि होम आइसोलेशन का पालन करते हुए घर में किस प्रकार रहे। रहन-सहन,संयम-नियम,आहार और मानसिकता के संदर्भ में यथा सम्भव संक्षिप्त व सटीक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। दवाओं के दुष्प्रभाव और उनके सेवन से बढने वाली मृत्यु दर को देखते हुए इस नये आलेख के सृजन की आवश्यकता महसूस हुई। 

■ यद्यपि विभिन्न प्रान्तों की सरकारें संक्रमण दर में गिरावट के आंकड़े पेश कर रही हैं जैसे बिहार में मात्र 3.11%  बताया गया है तथापि वास्तविक स्थिति कुछ और ही है। इसीलिए लाकडाऊन बढाने की चर्चा सत्ता के गलियारों में चल रही है। दूसरी तरफ म्यूकर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) को भी 22 मई को महामारी अधिनियम 1897 के तहत पैन्डेमिक घोषित कर दिया गया है। इसके मामले न केवल शहरों में बल्कि गावों में भी समान रूप से उजागर हो रहे हैं। अब इसकी मानिटरिंग एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम ( ISDP) द्वारा की जायेगी। 

■ इसी क्रम में एक दूसरा कोरोना follow up रोग उभरने लगा है,जिसे व्हाइट फंगस कहा जा रहा है। इसका भी मूल कारण कमजोर इम्यूनिटी या कोरोना से कमजोर हुई इम्यूनिटी बताया गया है। वास्तव में यह एस्पर्जिलस जीनस के सैकड़ों फफून्दो(moulds) में से एक का संक्रमण है। डाक्टर लोग इस रोग को एस्पर्जिलोसिस भी कह रहे हैं और कम घातक बताते है। इसके लक्षणों में सबसे प्रमुख है शरीर, जीभ,मुँह पर सफेद चकत्ते उभरना।ब्लैक फंगस जहाँ शरीर के अंदरूनी हिस्से को रुग्ण करता है वहीं व्हाइट फंगस सामान्यतः शरीर के बाहरी हिस्से को प्रभावित करता है। ब्लैक फंगस के इलाज में सर्जरी की आवश्यकता पड सकती है मगर व्हाइट फंगस के इलाज में सर्जरी की आवश्यकता नहीं पड़ती। 

■ एक रोचक तथ्य : संसार के कुल साइट्रिक एसिड उत्पादन का 99% हिस्सा केवल एस्पर्जिलस नाइजर नामक फंगस के द्वारा होता है। केवल 1% उत्पादन नींबू और नींबू वर्गीय(citrus) फलों से होता है। 

■ एक कटु सत्य : आज जो भी महामारी इत्यादि फैल रही है वह मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ की जाने वाली स्वार्थपूर्ण छेडछाड का नतीजा है। 

■ कोरोना सीज़न-1यानि वर्ष 2020 में सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के लाइफ टाईम स्टूडेंट्स द्वारा वायरल तथाकथित प्रतिरोधक या होम्योपैथिक वैक्सीन आर्सेनिक था। यह सीज़न-2 में भी वायरल है। यह सब देखकर स्वर्गीय हैनीमैन साहब की आत्मा जरूर रो रही होगी। यह एक गलत सलाह है ।इसके चक्कर में न पड़ें। 

■  होम आइसोलेशन का पालन करते हुए भी स्वच्छता का ध्यान रखें। कमरा, कपड़े, शरीर और खाना-पानी की स्वच्छता का विशेष रूप से ख्याल रखा जाना चाहिए। 

■ कोरोना सीज़न-2 में एस्पिडोस्पर्मा-Q का प्रचार चल रहा है। लोग 60-60 मिली की 4-4,5-5 शीशियाँ खरीद कर स्टाक कर रहे हैं। कालाबाजारी हो रही है,जिस प्रकार ऑक्सीजन सिलेंडर की होती है। दरअसल जिस कोरोना रोगी को सांस लेने में तकलीफ हो,ऑक्सीजन लेवल कम हो गया हो और तत्काल ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध न हो तो एस्पिडोस्पर्मा के सेवन से फायदा होता है। यह सांस में खींची गई हवा में से अपनी जरूरत के अनुसार ऑक्सीजन अवशोषित करने की क्षमता को बढ़ाने का काम करती है। इससे रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है और रोगी का हाँफना व सांस के लिए छटपटाना बंद हो जाता है। यह एक प्राण रक्षक औषधि है, स्थायी समाधान नहीं। स्थायी समाधान पाना है तो योग्य होम्योपैथ से सम्पर्क कर सकते हैं। 

■ एलोपैथिक पद्धति में अबतक कोरोना या कोविड19 की कोई सटीक (appropriate) दवा नहीं है। यह एक अकाट्य सत्य है। जो कुछ भी इलाज अस्पतालों में किया जा रहा है वह रोग के बजाय अलग-अलग लक्षणों का इलाज है। नतीजा लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी जिन्दगी से हाथ धो लेना।हम 2020 से ही रैमडेसीवीर जैसी दवाओं के निरर्थक प्रयोग और जानलेवा प्रभाव के बारे में लोगों को आगाह करते रहे हैं। देर से ही सही बिहार सरकार की आँखे खुली तो सही। पटना के कुछ बडे अस्पतालों की शिकायत पर सरकार ने रैमडेसीवीर दवा की जाँच के आदेश दे दिए हैं।




ऐसी ही सच्चाई बयां करने के बाद अगले ही दिन रामदेव जी को बयान वापस लेना पड़ा है। सुना है सरकार में  कोई मंत्री हैं डाक्टर हरसबरधन,उन्हें घोर आपत्ति है कि एलोपैथी की बेइज्जती हो गई। अरे भाई रोग तो लक्षण समूह से भी गहरी और उँची चीज है। दम है तो रोग का इलाज ढूँढो फिर अधिकारपूर्वक रोगी को घेर कर रखना। लक्षणों के अनुसार ही चिकित्सा करनी है तो क्या होम्योपैथी खराब है। यह तो सम्यक् लक्षणों के आधार पर चयनित दवा से आरोग्य करती है। 

■ याद रखें : 96°F - 98°F शारीरिक तापमान को बुखार नहीं समझा जाता है। यह नार्मल ताप है। 99°F से 100°F के  बीच हल्का ज्वर माना जाता है। इस स्थिति में डाक्टर लोग दिन में 2-3 बार पेरासिटामोल खिला रहे हैं। इस प्रिस्क्रीप्शन को हाई फीवर के लिए बचा कर रखिये, अगर जीवित रहने की चाह है। विश्वास कीजिए नये अनुसंधान कुछ ही दिनों में मेरी सलाह की पुष्टि करेंगे। 

■ अब हम चर्चा करेंगे उन होमियोपैथिक दवाओं की जो सेफ हैं। कोरोना मरीजों के यथार्थ लक्षण समुच्चय से सम्यक् रूप से मेल खाने वाली इन दवाओं का प्रयोग कर सफल चिकित्सा की गई है। 


(1) ब्रायोनिया एल्बा-30 : एक रिसर्च प्रोजेक्ट के तहत आगरा के डाक्टर प्रदीप गुप्ता ने 50 कोरोना पाजिटिव रोगियों को उनके common symptoms के आधार पर  केवल ब्रायोनिया देकर 3-5 दिन में चंगा कर दिया। मगर जरूरी नहीं कि हर रोगी इसी दवा से ठीक हो जाए। परिवर्तनशील लक्षणों के अनुसार अन्य दवाओं की भी जरूरत पड़ सकती है। बुखार आने से पहले नासा-रंध्र शुष्क लगे,छींक आये, गले में खराश या दर्द हो, फिर धीरे-धीरे शरीर का ताप बढ़े,खुली हवा की चाह,हरकत से तकलीफ बढ़े और विश्राम से घटे तो ब्रायोनिया एल्बा की कुछ खुराकें देकर देखें। यह रोग को शान्त कर शरीर को राहत प्रदान करेगी। 

(2) बेलाडोना-30 : इसका प्रयोग तब करें जब आँखे  लाल,सिरदर्द, आँखों से पानी आना,तेज बुखार, जलन,मुँह-गला सूखने पर पानी पीने से घृणा, प्रकाश-शोर-स्पर्श से घृणा, सूखी खाँसी, डिसेन्ट्री इत्यादि लक्षणों का समूह मिले।4-4 घंटे पर एक बूँद दे सकते हैं। 



(3) इपिकाक-30 : उल्टियाँ, जी मिचलाना, सिरदर्द, बुखार, जीभ लाल या साफ,फेफड़ों में बलगम जमा हो और न निकलता हो,सुखी खाँसी हो तब इपिकाक-30 सुबह-शाम दो-तीन दिन तक सेवन करायें। 

(4) मैग्नीशिया म्योर-6 : मुँह-गला सूखता हो,नाक बंद या पनीला स्राव,गंधलोप, स्वादलोप, जुकाम के जैसे अन्य लक्षण, श्वास लेने में परेशानी, मुँह से सांस लेना पडता हो,भूख कम या बिलकुल न लगे,सूखी खाँसी, रात में लक्षण वृद्धि, छाती में दर्द, जलन,पीठ-नितम्बों और बाहों में अंदर की तरफ खीचने जैसा दर्द हो तो मैग म्यूर-6 हर 4 घंटे पर सेवन करायें। शर्तिया लाभ होगा। इसके अलावा भी बहुत सी दवाएं हैं जो लक्षणों के अनुसार अनुभवी चिकित्सकों द्वारा प्रयुक्त की जा सकतीं हैं। 

क्या करें जब कोरोना संक्रमित हो जायें

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0️⃣जब कोरोना हो जाए तो होम आइसोलेशन का पालन करते हुए कैसे रहे,इस विषय पर काफी लेख और वीडियो कंटेंट इन्टरनेट और सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं, मगर उचित आहार-विहार,व्यवहार तथा दिमागी सोंच की दिशा-दशा के संबंध में सही मार्गदर्शन करने वाली सामग्री का सर्वथा अभाव है। अतः हम यहाँ उन्हीं अछूते किन्तु अति आवश्यक विन्दुओं पर फोकस करेंगे जो व्यावहारिक हैं और बेहतर परिणाम दे सकते हैं। 

1️⃣   कैसे पहचाने कि कोरोना संक्रमित हो गये हैं?                ■■ आँखे हल्की लाल,उनसे पानी आना,सिरदर्द, बुखार, कमजोरी, पीठ-कमर-नितम्बों में दर्द, नाक के सबसे अंदरूनी हिस्से में शुष्कता, भूख का अभाव,गंधलोप,स्वादलोप, जी मिचलाना, पेट में ऐंठन, दर्द, डायरिया/डिसेन्ट्री,अन्य गैस्ट्रो-इन्टेस्टीनल दिक्कतें इत्यादि लक्षण हो तो समझ जायें कि आप कोरोना पीड़ित हैं। विश्वास नहीं तो रैपिड टेस्ट करवा कर देख लें। यह टेस्ट आपके नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर मुफ्त उपलब्ध है। यह जाँच लगभग 80% विश्वसनीय है। लक्षण हो और टेस्ट रिपोर्टें निगेटिव आये तो भी खुशफहमी न पाले बल्कि समझ जायें कि अब खुद को घर के एक कोने में समेट लेने का समय आ गया है। 

2️⃣ कोरोना पाजिटिव कन्फ़र्म हो जाएँ तो क्या करें?

 ■■ याद रहे शरीर को पूर्ण निष्क्रियता से बचाएँ। साफ-सफाई पर ध्यान दें। रोज स्नान करें। कमरे में कुछ धुप आती है तो बहुत अच्छी बात है। गरमी,नमी और अंधेरे से फंगस की उत्पत्ति और वृद्धि होती है। (कोरोना के साथ अब ब्लैक फंगस संक्रमण के द्वारा म्यूकर-माइकोसिस नामक जानलेवा फौलोअप बीमारी भी हो रही है)   



                                               टेस्ट या बिना टेस्ट जब कंफर्म हो जाए कि आप कोरोना पाजिटिव हैं तो पहले दिन ठोस आहार छोड़ दें। दो लीटर से कुछ अधिक विभिन्न ताजे फलों के रस जिसमें नारियल पानी (डाभ),मुसम्बी,नारंगी शामिल हैं अलग-अलग व्यवस्थित कर लें। दिन भर में पूरा जूस पी जायें। दूसरे दिन भी ऐसा ही करें थोड़े परिवर्तन के साथ। आधा लीटर जूस कम कर खीरा और सेव को शामिल करें। तीसरे दिन फ्रूट सलाद या फल की मात्रा बढा लें। यहाँ सलाद से हमारा मतलब केवल फल-सब्जियों के स्लाइस्ड मिक्स से  है। प्याज, हरी मिर्च, सलाद क्रीम,toppings इत्यादि का प्रयोग नहीं करना है । खीरा के साथ नींबू का रस उपयोग किया जाना जरूरी है। काजू,पिस्ता,बादाम,अखरोट इत्यादि ड्राई फ्रूट्स के बारे में तो सोचें भी नहीं। चौथे दिन से धीरे-धीरे सुपाच्य  हल्के ठोस आहार की दिशा में बढ़े। इसमें बार्ली,,दलिया, मूँग दाल +चावल की खिचड़ी को शामिल कर सकते हैं। मगर मुसम्बी, खीरा,नींबू, ताजे फलों का सेवन जारी रखें। आप जल्द ही स्वस्थ्य हो जायेंगे। वो भी बिना किसी दवा के!अगर दवा खाने की तलब परेशान करे तो सुबह शाम चुटकी भर गिलोय चूर्ण शहद या मिस्री के साथ ले सकते हैं अथवा टीनोस्पोरा कार्डिफोलिया मदर टिन्कचर नामक होमियोपैथिक दवा ले सकते हैं। पारासेेटामोल का उपयोग केवल तभी करें जब बुखार 100° फारेनहाइट से बढने लगे ।लाइसेंसधारी मौत के सौदागरों के चंगुल में फंसे तो भैया उपर का टिकट रिजर्व समझो।जेब में पैसा है, दिल में मौत का खौफ है तो अस्पताल जरूर जाना चाहोगे। हमने तो इन्सानी फर्ज समझ कर सच्चाई बयां करी,बाकी आपकी मर्जी। 

3️⃣ मनःस्थिति 

 मेरे जान-पहचान के अनेक लोग जिन्हें कोरोना वायरस रूपी काल अपने गाल में समा चुका है पहले से किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित नहीं थे।किन्तु कोरोना के हल्के प्रभाव से ही दुनिया छोड़ गए। उनकी समस्या जिस्मानी कम और दिमागी ज्यादा थी।मौत का डर,घबड़ाहट और टीवी-सोशल मीडिया पर चल रहे भौकाल से अत्यधिक प्रभावित होना ही उनकी जान का दुश्मन बन गया। शायद आप ने भी देखा-सुना होगा कि कई बार पानी के विषहीन ढोरवा सांप के काटने पर भी लोग मर जाते हैं। वे सांप के ज़हर से नहीं, अपनी मानसिकता की वजह से मरते हैं। वही कंडीशन्स आज कोरोना से होने वाली एक तिहाई मौतों के संदर्भ में लागू होती है। 

4️⃣ जिन्दा बचने के उपाय 

■ हौसला बुलंद रखें। 

■ बिल्कुल न घबराये 

■ सोचें यह एक प्रकार का जुकाम है, मेरा कुछ नहीं बिगड़ा सकता। 

■ शरीर को राहत देने वाले आहार-विहार,नियम-संयम का पालन करते रहें। 

 ■ निम्नलिखित मंत्र का जाप दिन में 24 बार करते हुए अपनी भावनाओं को संयत रखें-  " जो डर गया समझो मर गया "


 


Corona virus update in india


 If we talk about the whole world, then the spread of Corona / Covid-19 and the transition did not see much effect in 2021 as compared to the way it happened in 2020. But the situation in India was comparatively opposite. Here the new strain of Kovid 19 virus is spreading and infecting at a very fast pace. Taking a rigorous examination of the immune system of Indians, it has started taking more lives than last year.So the question arises that-..

■ Has the average Indian's immunity decreased in a year? 

■ Or has the corona virus increased its ability to change its formation and causing illness?

 Research so far suggests that our immunity stands firmly in its place and is positioned to deal with other diseases.It is well known that the most important property of the corona virus is its ability to change form. This uncommon power of adaptation is the real secret of its immortality. For this reason, the development of an accurate and effective vaccine is not possible. Today, the vaccines of Kovid 19, which have been made available by various pharma companies, research institutes of universities and state research institutes, are being used almost all over the world. But even after vaccination, there are complaints of being corona positive.On this, doctors and scientists say that due to the vaccine, the disease does not suffer in its extreme form. But this is just an attempt to hide the failures.

* In Corona Season-1, it is said that wash hands frequently with soap, also use the sanitizer unnecessarily. Two yards distance and mask is necessary. 

My challenge is for those so-called doctors and scientists who are promoting unscientific things. They should prove that the corona virus is destroyed by the sanitizer or dies with soap. 

* In Corona season-2, it is said that there is a shortage of oxygen cylinders and Ramdesivir medicine, otherwise it would have saved everyone.

First of all, it should be investigated whether the death toll due to the use of ramadasivir medicine is large or that of the survivors.



🗣 On the other hand, the chaos created for oxygen also needs to be discussed on the basis of facts. To measure the lack of oxygen in the body, a gadget is being sold in the market and its name is Oximeter. The gadget holds the finger and tells the oxygen level. Isn't it an amazing gadget? How much oxygen is there in the blood, it is telling from outside the body without any chemical analysis. Brother! Amazing magic!

⁉️ The lungs of humans are made in such a way that instead of pure oxygen, the atmospheric gaseous mixture ie from the air absorbs oxygen according to their needs. But in corona patients this ability often decreases and they feel restless for respiration. In this situation, the need for oxygen cylinders is felt for artificial respiration.There is also another option in the market - 'Oxygen concentrator'. It is powered by electricity and greatly increases oxygen concentration by changing the consistency of 78% nitrogen: 21% oxygen present in the air. Middle and high income people who can afford an oximeter and oxygen concentrator are spending money easily out of fear of life. The fear of someone's death has become a bargain for someone else.

The news is coming that 1 out of every 8 people in the Corona investigation is leaving positive. While more than 50% of the infected are recovering within 10-15 days by following self-quarantine at home, they do not find it necessary to investigate nor the so-called treatment. Tests conducted in Britain have shown that the infection is now spreading through air as well as fingering. This is a very dangerous thing. No one is safe anywhere.According to the data of infection rate which is now filtering in the month of May, Goa has the highest 48%, Haryana 37%, West Bengal 33%, Delhi 32%, Puducherry 30%, MP-Chhattisgarh-Rajasthan 29%, Karnataka- Chandigarh has a high infection rate of 26%. While the average national infection rate is 21%. It is considered controllable if the rate is 5% according to WHO standards. The most notable fact is that about 50% of all corona infected patients around the world are in India alone.India alone accounts for 25% of Corona deaths worldwide in the last one week. On May 6, 2021, 414182 new cases and 3920 deaths were recorded across the country.

👌 Everything is not going wrong, some rays of hope are also sizzling. The Bihar government is carrying out emergency restoration in hospitals on the agreement of doctors, nurses, lab technicians, ward boys, etc., while in Russia a single dose vaccine has started to be used. It is named Sputnik Light. It will also be produced in India. Price is less than $ 10 and can be stored at 2 ° - 8 ° C heat. Trials have been found to be 79% effective.A German company by the name of Curevac has developed an RNA-based vaccine that can be stored in common freezes.

🚫The role of the World Health Organization was questionable yesterday, even today. Http://nbt.in/hqfDQY Its so-called standards need not be overrated. Take care of fitness, maintain physical activity, do a little bit of yoga, keep eating fresh juicy fruits. The most important thing - "the one who is scared, understand he is dead"(Jo dar gaya samjho mar  gaya!). This dialogue of the film Sholay is the biggest mantra of war against Corona.

कोरोना वायरस अपडेट इन इण्डिया


 यदि बात करें पूरी दुनिया की तो कोरोना/ कोविड19 का प्रसार और संक्रमण 2020 में जिस तरह से हुआ उसके मुकाबले 2021 में उतना ज्यादा प्रभाव देखने को नहीं मिला। परन्तु भारत में स्थिति तुलनात्मक रूप से ठीक विपरीत रही।यहां कोविड 19 वायरस के नये स्ट्रेन का प्रसार और संक्रमण अत्यंत तीव्र गति से हो रहा है । भारतीयों के इम्यून सिस्टम की कड़ी परीक्षा लेते हुए यह पिछले साल की तुलना में अधिक जानें लेने लगा है। तो सवाल उठता है कि--


■ क्या एक साल में औसत भारतीय की इम्यूनिटी कम  हो गई है?

■ या फिर कोरोना वायरस ने रूप बदलते हुए बीमार करने की ताक़त बढा ली है?

अब तक  हुए अनुसंधान बताते हैं कि हमारी इम्यूनिटी अपनी जगह पूरी मजबूती से सिर उठाए खड़ी है और अन्य रोगों से दो-दो हाथ करने के लिए तैनात है।

  यह बात तो सर्वविदित है कि कोरोना वायरस का सबसे मुख्य गुण है रूप बदलने की क्षमता। अनुकूलन की यह अपूर्व शक्ति इसकी अमरता का असली राज है। इसी कारण एक सटीक और कारगर वैक्सीन का विकास संभव नहीं हो पा रहा है। आज विभिन्न फ़ार्मा कम्पनियों,विश्वविद्यालयों की शोधशालाओ और राजकीय अनुसंधान संस्थानों द्वारा जो भी कोविड19 के  वैक्सीन उपलब्ध कराए गए हैं कमोबेश पूरी दुनियां में उपयोग किया जा रहा है। परन्तु टीकाकरण के बाद भी कोरोना पोजिटिव होने की शिकायते मिल रही हैं। इस पर डाँक्टर और वैज्ञानिक कहते हैं कि टीके की वजह से बीमारी अपने उग्र रूप में नही सताती है । मगर यह महज नाकामियों को छुपाने की कोशिश भर है। 

* कोरोना सीज़न -1 में कहा जाता है कि साबुन से बार-बार हाथ धोएं ,सैनेटाईजर का बेवजह भी इस्तेमाल करते रहे। दो गज दूरी,मास्क है जरूरी। 

  🗣मेरा चैलेंज है उन तथाकथित डाक्टरों-वैज्ञानिको के लिए जो अवैज्ञानिक बातों का प्रचार कररहे हैं। वे साबित करें कि सैनेटाईजर से कोरोना वायरस नष्ट हो जाते हैं या साबुन से मर जाते हैं। 

* कोरोना सीज़न-2 में कहा जाता है कि ऑक्सीजन सिलेंडर  और रैमडेसीवीर दवा की कमी है वरना सबको बचा लेते। 

🗣सबसे पहले तो इस बात की पडताल होनी चाहिए कि रैमडेसीवीर दवा के प्रयोग से मरने वालों की संख्या बड़ी है या बचने वालो की।

🗣 दूसरी तरफ ऑक्सीजन के लिए जो हाहाकार मचा हुआ है ,उस पर भी तथ्यों के आधार पर विवेचन किया जाना जरूरी है। शरीर में ऑक्सीजन की कमी मापने के लिए एक गैजेट बाज़ार में खूब बिक रहा है और इसका नाम है ऑक्सीमीटर।महज एक ऊँगली पकड़ कर वह ऑक्सीजन लेवल बता देता है। है ना कमाल का गैजेट?खून में कितना ऑक्सीजन है यह शरीर के बाहर से ही बिना किसी कैमिकल एनालिसिस के बता रहा है ।भई वाह! गजब का जादू है!

⁉️ मनुष्य के फेफड़े कुछ इस प्रकार बने हुए हैं कि शुद्ध ऑक्सीजन के बजाय वातावरणीय गैसीय मिश्रण अर्थात् हवा में से अपनी जरूरत के अनुसार ऑक्सीजन अवशोषित कर लेते हैं। परन्तु कोरोना मरीजों में अक्सर यह क्षमता घट जाती है और वे श्वसन के लिए बेचैनी महसूस करते हैं। इसी स्थिति में कृत्रिम श्वसन हेतु ऑक्सीजन  सिलेंडर की जरूरत महसूस हो रही है। बाज़ार में एक दूसरा विकल्प भी मौजूद है - 'ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर'।यह बिजली से संचालित होता है और हवा में उपस्थित 78% नाइट्रोजन : 21% ऑक्सीजन की कंसिस्टेन्सी को बदल कर ऑक्सीजन की सान्द्रता बहुत ज्यादा कर देता है। मध्यम एवं उच्च आय वाले लोग जो ऑक्सीमीटर और ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर अफोर्ड कर सकते हैं, वे जान के डर से पैसे आसानी से ख़र्च कर रहे हैं। किसी के मौत का खौफ किसी और के लिए फायदे का सौदा बन गया है। 

◾खबर आ रही है कि कोरोना जांच में हर 8 में से 1 व्यक्ति positive निकल रहा है। जबकि 50% से अधिक संक्रमित तो घर में ही सेल्फ क्वारेन्टाइन का पालन करते हुए 10-15 दिन में ठीक हो जा रहे हैं, उन्हें न तो जांच जरूरी लगता है और न तथाकथित इलाज़। ब्रिटेन में किये गये परीक्षणों से पता चला है कि अब यह संक्रमण छुआ-छूत के साथ साथ हवा के माध्यम से भी फैल रहा है। यह बेहद खतरनाक बात है। क़ोई कहीं भी सुरक्षित नहीं है। संक्रमण दर के आंकड़े जो अब मई माह में छन कर आ रहे हैं उनके अनुसार गोवा में सर्वाधिक 48%,हरियाणा में 37%,पश्चिम बंगाल 33%,दिल्ली 32%,पुडुचेरी 30%,एमपी-छत्तीसगढ़-राजस्थान 29%,कर्नाटक-चंडीगढ़ 26% की उच्च संक्रमण दर है। जबकि औसत राष्ट्रीय संक्रमण दर 21% है। डब्लूएचओ के मानकों के अनुसार यह दर 5% हो तो नियंत्रण योग्य माना जाता है। सबसे उल्लेखनीय तथ्य तो यह है कि दुनिया भर के सभी कोरोना संक्रमित मरीजों में से लगभग 50 फ़ीसदी अकेले भारत में है। पिछले एक सप्ताह में पूरी दुनिया में कोरोना से होने वाली मौतों का 25% हिस्सा केवल भारत का है। 6 मई 2021 को देशभर में 414182 नये मामले और 3920 मौतें दर्ज की गई। 

👌 सब कुछ गलत ही नहीं हो रहा है, कुछ आशा की किरणें भी छन-छन कर आ रही हैं। बिहार सरकार अस्पतालों में डाक्टर,नर्स,लैब टेक्नीशियन, वार्ड ब्वाय इत्यादि की संविद पर आपात बहाली कर रही है ।वहीं रूस में एक खुराक वाले टीके का उपयोग शुरू हो गया है। इसका नाम स्पुतनिक लाइट रखा गया है। भारत में भी इसका उत्पादन होगा। कीमत $10 से कम है और 2° - 8° सेल्सियस ताप पर भंडारित की जा सकती है। परीक्षणों में 79% प्रभावी पाया गया है। क्योरवैक के नाम से एक जर्मन कंपनी ने आर एन ए आधारित वैक्सीन तैयार की है जिसे सामान्य फ्रीज़ में रखा जा सकता है। 

🚫वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की भूमिका कल भी संदिग्ध थी,आज भी है।http://nbt.in/hqfDQY इसके तथाकथित मानकों को ज्यादा भाव देने की जरूरत नहीं है। फिटनेस का ध्यान रखें, शारीरिक सक्रियता बनाए रखें, थोड़ा बहुत योगाभ्यास जरूर करें,ताजे रसदार फलों का सेवन करते रहें। सबसे जरूरी बात - "जो डर गया, समझो मर गया"। फिल्म शोले का यह संवाद कोरोना के खिलाफ जंग का सबसे बड़ा मंत्र है। 

Celery in Hindi

सेलरी यानि अजमोद(Apium graveolens) भूमध्यसागरीय और मध्य पूर्व क्षेत्रों का मूल निवासी है। प्राचीन ग्रीस और रोम में इसके उपयोग का इतिहास मिलत...