तो आईए जानते हैं इसकी खेती के तौर तरीके और फायदे :
उपयुक्त परिस्थितियां :
ठंडा मौसम
हल्की क्षारीय मिट्टी जिसका pH मान 6 से 6.5 के बीच हो
मृदा में नमी हो किन्तु जल जमाव की संभावना नहीं रहे
जीवांश युक्त मृदा
बीज 🙂 उच्च गुणवत्ता के अंकुरण सक्षम बीजों का प्रयोग करें। इसके लिए पहले तो स्थानीय विक्रेताओं से संपर्क करें। यदि न मिले तो किसी ऑनलाइन इ-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से विश्वस्त सेलर देखकर खरीदें। केवल कीमत से कोई राय बनाने की बजाय उपभोक्ताओं के रिव्यू भी देखें।
नर्सरी : खूब अच्छी तरह तैयार नमी और ह्यूमसयुक्त मिटटी वाली नर्सरी बेड बनायें। सतह से 1/8 इंच गहराई में बीजों को बोयें। चूँकि इसके बीज बहुत छोटे होते हैं इसलिए ज्यादा गहराई में बोने पर उग नहीं पाएंगे।
रोपण : जब नर्सरी में पौधे तीन-चार पत्तों के हो जाएँ तो इनका प्रत्यारोपण 12" अंतराल वाले कतारों में 8" - 8" दुरी पर करें। प्रत्यारोपण के दौरान प्रत्येक पौधे की हल्की सिंचाई अवश्य करें।
सिंचाई : 15 दिन बाद से आवश्यकतानुसार हलकी सिंचाई करें।
उपरिवेशन : प्रत्येक सिंचाई के बाद नाइट्रोजन युक्त उर्वरक से उपरिवेशन करें।
मिट्टी चढ़ाना (healing) : सिंचाई और उपरिवेशन के 5 - 7 दिन बाद निराई और पौधों की जड़ों के चारो और मिट्टी चढ़ाना जरुरी है।
ब्लैंचिंग : कटाई से 2 - 3 सप्ताह पूर्व कागज से डंठलों को लपेट कर बांध दें। इससे सीधे प्रकाश से बचाव होगा और कोमलता बढ़ने के साथ कड़वाहट में कमी आएगी।
कटाई (harvesting) : रोपण के 85 से लेकर 120 दिन बाद से कटाई की जा सकती है। डंठल काटने के कुछ दिन बाद पुनः नए डंठल और पत्ते आ जाते हैं। इसलिए हार्वेस्टिंग अनेक बार की जा सकती है।
भोजन में अजमोद (celery ) को शामिल करने के फायदे :
हृदय को स्वस्थ रखने में सहायक
पाचन तंत्र को मदद करता है।
याद्दाश्त को बूस्ट करता है।
सूजन कम करता है।
वजन कम रखने में सहायक
रक्त शर्करा नियंत्रण में सहायक
किसे नहीं लेना चाहिए :
इसमें ऑक्सेलेट्स पाए जाते हैं जो किडनी स्टोन एवं किडनी से सम्बंधित रोगों से पीड़ित लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है।
Irritable Bowel Syndrome = IBS से पीड़ित लोगों के लिए भी यह ज्यादा उपयुक्त नहीं है।
कुछ लोगों को इससे एलर्जी हो सकती है। जैसे छींके ,नाक बहना , मुँह और जीभ में खुजली इत्यादि।
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