बैंगन की उन्नत खेती


बैंगन (Brinjal) सोलेनेसी (Solanaceae) कुल का एक पौधा है जिसके फल भारत ही नही दुनियाभर में सब्ज़ी के तौर पर लोकप्रिय हैं।इसके कुल वैश्विक उत्पादन में अकेले भारत का योगदान 27% है,जबकि चीन शीर्ष पर है।

गुण(Qualities) :  यह शरीर में कोलेस्ट्राल घटाने में मददगार सिद्ध हुआ है।सुपाच्य है और स्वादिष्ट भी।हृदय रोग से बचाता है और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित रखने में सहायक है।सब्जियों का राजा कहलाता है।

 दोष(Drawbacks) :  लोक प्रचलित मान्यता है कि बैंगन खाने से खुजली बढती है। मगर जिसे पहले से खुजली नही है उसे कोई फर्क नही पड़ता। 

चूंकी बैंगन हर मौसम में उपलब्ध रहता है तो जाहिर सी बात है कि इसे वर्ष में एक से अधिक बार रोपा जाता होगा। यह खरीफ, रबी और गरमा तीनो मौसम में रोपा जाता है।

खरीफ : जून-जुलाई में बीजाई कर जुलाई-अगस्त में रोपाई, यह मुख्य फसल है।जब नर्सरी में 5-7 इंच के पौधे हो जाए तब उखाड़ कर खेत में लगाएं।

● रबी : अक्टूबर में बीजाई और नवम्बर माह में रोपाई। 

● गरमा : फरवरी मध्य से मार्च तक बीजाई और मार्च-अप्रैल तक रोपाई। 

स्थानीय जलवायु की विशिष्टता के अनुरूप उपरोक्त समय से कुछ भिन्न शेड्यूल भी हो सकते हैं।

पौधशाला में बीज गिराकर बिचड़े तैयार करना उन्हीं किसानों के लिए उपयुक्त व व्यवहारिक है जो व्यवसायिक पैमाने पर बैंगन की खेती करना चाहते हैं, अन्यथा छोटे पैमाने पर, टेरेस गार्डन में या बैकयार्ड किचन गार्डन में रोपने के लिए तैयार बिचड़े खरीद लेना सुविधाजनक होता है।परन्तु मनपसंद प्रभेद के लिए स्वयं बीजाई कर पौधे तैयार करना श्रेष्ठ विधि है।

प्रचलित देशी किस्में : -- गुच्छेदार हरा,कचबचिया/सतपुतिया,गुच्छेदार सफेद इत्यादि। 

उन्नत किस्में : -- पूसा पर्पल लॉङ्ग (PPL),चाइनीज लॉन्ग पर्पल F-1,ब्रिंजल ब्लैक ब्यूटी,व्हाइट ऑब्लॉङ्ग राउंड, नीलम,राजेन्द्र बैंगन-1,राजेन्द्र बैंगन-2,पूसा क्रांति,पूसा अनमोल, पंत ऋतुराज, पंत सम्राट, कल्याणपुर टी-3,  US-1004 हाइब्रिड F-1 इत्यादि। इनमें से पूसा क्रांति और ब्लैक ब्यूटी गोल और वजनदार होते हैं।ये भर्ता/चोखा के लिए ज्यादा उपयुक्त होते हैं तथा बाजार में अपेक्षाकृत महँगे बिकते हैं।PPL,नीलम और राजेन्द्र बैंगन अधिक प्रचलन में हैं।चाइनीज मिर्च की तरह चाइनीज बैंगन भी लोकप्रिय हो रहा है।

खेत की तैयारी - पहली जुताई गहरी होनी चाहिए। जुताई से पहले ही 200 क्विंटल/हेक्टेयर की दर से कम्पोस्ट डाल दें।दूसरी जुताई रोपने से दो-तीन दिन पूर्व करें और अनुशंसित मात्रा में रासायनिक उर्वरक भी डाल दें। 

रोपने का तरीका : - गरमा बैंगन (फरवरी-मार्च) 60 सेमी ×45 सेमी के फॉर्मेट में रोपते हैं, जबकि मुख्य फसल (जून-जुलाई) 75 सेमी × 60 सेमी के फॉर्मेट में।प्रति थाला 6 इंच के दायरे में 2-3 बिचड़े लगाएं।ये तो हुई खेतों में बैंगन लगाने की विधि, अब हम शहरी और गार्डेनिंग का शौक रखने वाले पाठकों की रूचि का ध्यान रखते हुए टेरेस एवं लॉन गार्डेनिंग के तहत गमलों, ग्रो बैग्स या बेकार पड़े खाली प्लास्टिक के डिब्बों में बैंगन उपजाने की विधि जानेंगे। जो भी पॉट्स लें उनके बॉटम में जल निकासी के लिए छिद्र होने चाहिए। यदि नही हैं तो कर लें।ग्रो बैग्स जो आजकल चलन में हैं और बाजार या ई-कॉमर्स प्लेटफार्म्स पर उपलब्ध हैं, उनमें जल निकासी की समुचित व्यवस्था बनी होती है। पॉट्स के बॉटम में जो छिद्र हैं उन पर सीधे मिट्टी डालने के बजाए पहले टुटे हुए मिट्टी के बर्तन या खपरों के टुकड़े डालें ताकि मिट्टी से छिद्र बंद न हो। यदि पूरा पॉट केवल खेत या गार्डन की मिट्टी से भर देंगे तो अपेक्षित परिणाम प्राप्त नही होगा।सही बढवार के लिए मिट्टी,खाद और softening agents (मृदुकारक घटक) का उचित मिश्रण जरूरी है। यदि आप पहले से कोई उपयुक्त मिश्रण इस्तेमाल कर रहे हैं तो ठीक है अन्यथा गार्डन स्वाएल, कोको पिट और वर्मी कम्पोस्ट तीनो बराबर मात्रा में मिलाकर पॉट्स को भरें। पौधा रोपें और सिंचाई करें।रोपने से पहले जड़ों पर थीरम 75% पाउडर छिड़कें या बेवेस्टीन के 0.5%  घोल में कुछ देर डुबोकर रखें। 

अनुशंसित उर्वरक  : - प्रति हेक्टेयर 3-3.5 क्विंटल सिंगल सुपर फास्फेट, 1 क्विंटल म्यूरेट ऑफ पोटाश और 0.8 क्विंटल यूरिया अंतिम जुताई में दें।इतनी ही मात्रा यूरिया की रोपने के 30 वें और 60 वें दिन डालें।कम क्षेत्र में बैंगन की खेती करना हो तो इस प्रकार समझें : SSP 6-7 kg,MOP 2kg, यूरिया 1.6 kg प्रति कट्ठा।(10,000 वर्ग मीटर = 1 हेक्टेयर; लगभग 50 कट्ठा = 1 हेक्टेयर)

सिंचाई : - मुख्य फसल के लिए प्रायः सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती।नवम्बर से मई तक आवश्यकतानुसार सिंचाई कर सकते हैं।ध्यान रहे जड़ों के पास जल जमाव न हो।


खरपतवार नियंत्रण
: - रासायनिक विधि का प्रयोग न करें।पारंपरिक तरीका अपनाते हुए खुरपी-कुदाल से घास निकालें,मिट्टी भुरभुरी करें।50-60 दिन बाद दूसरी निराई के बाद कतार पर मिट्टी चढायें। बगल के चित्र को जूम कर देखें कि कैसा करना है।

कीट प्रबंधन : - बैंगन की फसल में फल छेदक और तना छेदक कीड़ा ज्यादा लगता है।यह अग्रस्थ कलिकाओं को नष्ट कर फलन को बाधित कर देता है।जो फुनगियां मुरझाई हुई दिखे उन्हें यथासंभव तोड़कर हटा दें और मालाथिऑन 50 EC 20ml दवा प्रति कट्ठा 10 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।इसके स्थान पर इंडोसल्फान 35 EC का भी प्रयोग कर सकते हैं।फुराडान 3जी दानेदार दवा 500 ग्राम प्रति कट्ठा की दर से पौधों के पास डालें।

स्पेशल टिप्स : अधिक उपज, शीघ्र फलन और गुणवत्ता वृद्धि के लिए समय-समय पर माईक्रो-न्यूट्रिएन्ट्स और हार्मोन का foliar spray(पर्णीय छिड़काव) कर सकते हैं।

उपज : उपरोक्त तरीके से खेती कर एक सीजन में 250 - 300 क्विंटल/हेक्टेयर उपज प्राप्त कर सकते हैं।

लागत एवं लाभ : वर्तमान दरों के सापेक्ष 1 हेक्टेयर बैंगन की खेती करने में 1 लाख रूपए खर्च होते हैं। कुल न्यूनतम उपज 250 क्विंटल मानें और थोक मूल्य दर 10/- प्रति किलोग्राम लें तो उत्पाद का कुल मूल्य 2,50,000/- ढाई लाख रूपए  बनता है।इस प्रकार 100-120 दिन में 1,50,000/- डेढ लाख रूपए शुद्ध लाभ प्राप्त होता है। 150% का लाभ कुछ कम है क्या?तुलना करें ओल की खेती

ओल की खेती

 


🎃एक बहुवर्षीय भूमिगत रूपांतरित तने या घनकंद के रूप वाली सब्जी जिसे उत्तर भारत में 'ओल','सूरन' या 'जिमीकंद' आदि नामों से जाना जाता है और अंग्रेजी में Elephant Foot कहलाता है,एंटीऑक्सीडेंट्स और औषधीय गुणों से लबालब भरा हुआ है। कुछ लोगों को लगता है कि यह  yam  है पर वास्तव में रतालू को yam  कहा जाता है जो एक लता वर्गीय पौधे के पर्व-संधियों पर और कंद के रूप में प्राप्त होता है। ओल को वैज्ञानिक भाषा में Amorpholus ceompenulatus कहा जाता है। 

            🥔      ओल न केवल एक लोकप्रिय स्वादिष्ट सब्जी है बल्कि औषधीय गुणों से भरपूर कंद भी है। बवासीर के मरीजों के लिए यह ज्यादा ही फायदेमंद होता है। मिनरल्स और फाईबर्स के साथ-साथ काफी मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट का सुलभ प्राकृतिक स्रोत भी है। दो-तीन दशक पहले तक यह आमतौर पर Backyard kitchen-garden का हिस्सा हुआ करता था किन्तु बढती माँग को देखते हुए अब इसकी खेती भी होने लगी है। व्यवसायिक पैमाने पर खेती के लिए इसके उच्च उपज क्षमता वाले प्रजातियों की पहचान की गई है और इन्हीं को रोना जाता है। कम उपज वाले प्रभेद जिनमें ऑक्जेलेट्स अधिक होते हैं और गले में प्रायः तकलीफ़ पहुँचाने का काम करते हैं, अब यूपी-बिहार के बैकयार्ड किचनगार्डन में सीमित रह गए हैं।मगर इनमें औषधीय गुण ज्यादा हैं। 

उन्नत प्रभेद -- गजेन्द्र,, त्रिवेन्द्रमी,हैदराबादी, मद्रासी ।

भूमि का चयन :-- हल्की दोमट,बलुई,ह्युमसयुक्त ऊँची जमीन जिसमें बरसात का पानी नहीं रुकता है,ओल के लिए सर्वश्रेष्ठ है। उसर भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है। आम-लीची आदि के बगीचों में छायादार परिस्थितियों में भी यह अच्छी तरह उगती और उपज देती है। 

🧭रोपने का सही समय : -- मार्च-अप्रैल या जून।

🎯बीज का आकार :-- 500 ग्राम के आसपास के कंद या कंद के टुकड़े। प्रत्येक टुकड़े में मुख्य अंकुर का कुछ भाग रहना चाहिए। इससे पुष्ट पौधे प्राप्त होते हैं । किन्तु यदि घरेलू प्रभेद का उपयोग करना चाहें तो 200-250 ग्राम के कंद या कंद के टुकड़े आरोप सकते हैं। 

💥पौधे से पौधे की दूरी :-- 75 सेमी ×75 सेमी(500 ग्राम के कंद या कंद के टुकड़े रोपने के लिए), बगीचों में यह दूरी 1 मी × 1 मी उपयुक्त है। 

👌बीजोपचार :-- बाविस्टिन या इमीसान-6 की मात्रा  2.5 ग्राम/लिटर पानी में घोल कर 15-20 मिनट तक बीज कंद को डुबो कर रखें। इस घोल में स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 1/2 ग्राम प्रति लीटर की दर से मिला देना चाहिए।यह एक एंटीबायोटिक है जो पौधों में होने वाले बैक्टीरिया जनित रोगों का निवारण करता है। 

🌿बीज की मात्रा  : -- 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर (1 हेक्टेयर =100 मीटर × 100 मीटर =10000 वर्ग मीटर )         प्रयोग के लिए एक कट्ठा में  लगाना चाहते हैं तो 1.6 - 2 क्विंटल बीज लगेगा। 

🟢खाद एवं उर्वरक : -- जुताई के साथ खाद देने के बजाय प्रत्येक पौधे को लक्षित कर प्रति गड्ढा 3 किलोग्राम सड़ी गोबर अथवा 1 किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट ,38 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 20 ग्राम अमोनियम सल्फेट या 10 ग्राम यूरिया, 16 ग्राम पोटैशियम सल्फेट मिट्टी में मिलाकर कंद का रोपण करें। इससे उर्वरक का पूरा लाभ तो पौधे को मिलता हीं है लागत खर्च में कमी भी होती है। रोपण के 80-90 दिन बाद नेत्रजनीय उर्वरक से उपरिवेशन करना जरूरी है। 

🌵🌾☘निकाई-गुडाई (खरपतवार निकालना एवं मिट्टी की उपरी परत ढीली करना) : -- पहली बार 50-60 दिन की अवस्था में, दूसरी बार 90-100 दिन की अवस्था में। पहली निकौनी के दौराञन पौधे के पास मिट्टी चढाना जरूरी है। 

🚰 सिंचाई: -- वैसे तो आमतौर पर ओल की खेती में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है किन्तु सूखे की स्थिति में मई-जून के महीने में नमी बहुत कम हो जाने पर हल्की सिंचाई कर सकते हैं पर जल जमाव न हो।

📆 इस फसल की अवधि अन्य फसलों की तुलना में अधिक है । 9-10 माह में कंद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं

💲💱उपज :-- सामान्यतः रोपे गये कंद के वजन के 8-10 गुणा उपज की अपेक्षा रहती है। विभिन्न कृषि अनुसंधान संस्थानों, कृषि महाविद्यालयों में किये गये परीक्षणों से भिन्न-भिन्न उपज संबंधी आकड़े (data) प्राप्त हुए हैं। पूसा कृषि विश्वविद्यालय समस्तीपुर, बिहार के  अनुसार कम से कम 400-500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है। 

🔁🏛 आय-व्यय :-- एक हेक्टेयर में अनुमानित लागत =₹ 4,50,000                                                                      400 क्विंटल न्यूनतम उपज प्राप्त होने पर फसल का न्यूनतम मूल्य =₹ 8,00,000                                                          शुद्ध लाभ=₹ 3,50,000 ( 77%)

मृदा की गुणवत्ता, मौसम की अनुकूलता एवं उचित देखभाल से उपज और मुनाफे में वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं।  Tips: रोगों का काल है जिमीकंद, जानें इसके 5 फायदे  via zeenews - https://zeenews.india.com/hindi/health/health-benefits-of-jimikand-in-hindi-know-the-five-benefits-of-jimikand-spup/889218

जून माह में किये जाने वाले कृषि कार्य

 जून माह भारतीय पंचांग के अनुसार प्रायः ज्येष्ठ आषाढ़ के महीनों के मध्य आता हैं।इसी समय मॉनसून भी दस्तक देता है।इस वर्ष यानि 2021ई० में 3 जून को केरल और 10-12जून तक शेष भारत में मॉनसून का आगमन हो चुका हैं।और अच्छी खासी बारिस के आसार नजर आ रहे हैं।जमीन और हवा में काफी नमी है जो धान के बीज गिराने और विभिन्न खरीफ फसलों की बुआई के लिए उपयुक्त स्थिति हैं। 

कृषि क्षेत्र की एक सच्चाई जिसे अक्सर किसान भाई भूल जाते हैं,वो हैं-"किसान की मर्जी से मौसम नहीं बदलता,पर वे मौसम के अनुरूप खेती कर सकते हैं।"    

यदि उपरोक्त सूत्र वाक्य का मर्म समझ लें तो खेती लाभ का धंधा बन सकता हैं।मोटे तौर पर ज्यादातर लोग रूटीन खेती करते हैं और मौसम की 'गुगली' में फंस जाते हैं।खरीफ या जायद फसलों के लिहाज से मौसम तीन विकल्पों क्रमशः-बाढ़,सुखाड़ और संतुलित वर्षा में से एक ही उपलब्ध कराती हैं।इसलिए अपनी जमीन की प्रकृति,किस्म और आगामी मौसम पूर्वानुमान के अनुरूप फसल का चुनाव करें और स्मार्ट किसान बनें।आगे हम जानेंगे इस माह के कृषि कार्यो में से उन मुख्य कार्यो के बारे में,जो इस वर्ष की संभावित बरसात की मात्रा के अनुरूप हैं।

1.‌ अनाज की खेती:-


(i)धान - चावल जो पूरे एशिया और खास तौर पर भारत में भोजन का सबसे प्रमुख  घटक हैं,धान से ही प्राप्त होता हैं।इसकी इतनी ज्यादा प्रजातियाँ हैं कि सबकी चर्चा की जाए तो महाग्रंथ बन जाए। भारत में मुख्यतः ये धान के खेत हैं -- पर्वतीय-पठारी भागों के सीढ़ीदार खेत,मैदानी भागों के सामान्य,मध्यम,नीची और गहरी जमीन।इन में से गहरे जल जमाव वाली भूमि में सामान्यतः फरवरी से अप्रैल तक ही मूंग  और धान  की मिश्रित बोआई की जाती हैं,फिर वर्षा जल के जमाव से मूंग सूख कर सड़ जाती है और जैविक खाद की तरह उर्वरा शक्ति वढ़ाती हैं।धान जल स्तर के अनुरूप बढ़ता जाता हैं।इसके परंपरागत  किस्में  जागर,पाखर,जेसरिया ईत्यादि हैं जबकि उन्नत प्रभेद जानकी और सुधा हैं।शेष चारों भूमि में धान सीधी बुआई के बजाए नर्सरी तैयार कर बिचड़े कीचड़ में रोपने की विधि से लगाई जाती हैं।अभी नर्सरी में धान के बीज बोने का उपयुक्त समय हैं।बीज बोने के25 दिन बाद पौधे उखाड़ कर अच्छी तरह जुताई कर कीचड़(mud) बनाये गये खेत में रोप सकते हैं।रोपन के पूर्व फास्फेट की पूरी मात्रा पोटाश की आधी मात्रा और नाइट्रोजन की एक चौथाई मात्रा का प्रयोग करें।

(ii) मक्का - खरीफ मक्का की  खेती/बुआई साफ मौसम देख कर कर लें।फफून्दनाशी से बीजोपचार करना न भूलें।

(iii)मरूआ या रागी - खरीफ मरूआ की रोपाई जून में पूरा कर लें।गरमा मरूआ यदि रोपा हैं तो उपरिवेशन कर लें।यह सबसे अधिक फायदेमंद मोटा अनाज (millet)हैं।इसका हलवा और रोटी बनाई जाती हैं जो अत्यंत पौष्टिक व शक्तिवर्धक  खाद्य पदार्थ हैं।

(iv)ज्वार - बाजरे की बुआई भी जून माह में ही की जाती हैं।बिहार के आरा - बक्सर पूर्वी उत्तरप्रदेश,राजस्थान,मध्यप्रदेश में इसकी खेती  होती हैं।कम वर्षा वाले क्षेत्रों में अपेक्षाकृत  ऊँची भूमि में मोटे अनाज एवं पशुओं के चारे के लिए इन्हे उपजाया जाता है।

2. दलहन की खेती :- जून माह में मुख्यतः दो दलहन फसलें बोई जाती हैं।


अरहर+उड़द,अरहर+मक्का,उड़द+मक्का,अरहर+मरूआ,अरहर+मूँगफली,अरहर+मिश्रीकन्द,अरहर+साँवा।अरहर(pigeon pea)उच्च कोटि की दलहन प्रजाति हैं,जिसमें 21-26% तक प्रोटीन पायी जाती हैं।यह पूरे भारतवर्ष में लोकप्रिय हैं और कई  नामो से जाना जाता हैं;जैसे - तुअर,तूर,रहरी,अरहर,आदि।लिन्नियस नामकरण पद्घति के अनुसार इसे Cajanus cajan या Cajanus indicus कहते हैं। यह एक लम्बी अवधि की फसल है जो खेत में 9 महीने रंडरहती है। शुद्ध अरहर की फसल उगाने के लिए प्रति हेक्टेयर 20 कि०ग्रा० बीज की जरूरत होती है।मिश्रित खेती के लिए 15 कि०ग्रा० बीज पर्याप्त है।अकेले उत्तरप्रदेश में 30 लाख एकड़ से अधिक क्षेत्र में इसकी खेती होती है।उन्नत प्रभेद - प्रभात,बिहार,लक्ष्मी,BR-65,मालवीय अरहर-151उरद के उन्नत प्रभेद-T-9को जून-जलाई में बो सकते हैं।

3. तिलहन- खरीफ फसल में तिलहन के की विकल्प हैं।-तिल,सूरजमुखी,मूँगफली,एरंड/अंडी।अंडी एक अखाद्य तिलहन फसल हैं और इसकी बुआई जुलाई-अगस्त  में होती हैं।जबकि तिल,मूँगफली,सूरजमुखी खाद्य श्रेणी के तिलहन हैंऔर 15 जून से 15जुलाई के बीच बोए जा सकते हैं।मूँगफली  के लिए ऊँची,ह्लकी दोमर मिट्टी उपयुक्त हैं।तिल के लिए भी ऊँची जमीन  चाहिए  जिसमें जल जमाव न हो।कमोवेश सूर्यमुखी भी जल जमाव को बर्दाश्त  नहीं कर पाती हैं।

4. कन्दवर्गीय फसलें:-अदरक व हल्दी रोपने का समय मई तक ही हैं जो बीत चुका हैं।ओल की अगैती बुआई मार्च-अप्रैल  में हो चुकी हैं किन्तु मुख्य फसल जून माह में ही रोपाई जाती हैं।विस्तृत  जानकारी के लिए निम्नांकित  लिंक को क्लिक करें : ओल की खेती 

 खरीफ  अरबी मई-जून में ही रोपी जाती हैं,जबकि इसकी वसंतकालीन रोपाई फरवरी में होती हैं।12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज लगता हैंऔर उपज 80-100 क्विंटल तक होती हैं इसके कन्द के अलावा पत्तों की भी सब्जी बहुत स्वादिष्ट  होती हैं।130-140दिन में फसल खोदने के लिये तैयार हो जाती हैं।अच्छी कमाई के लिए  इसका खेती कर सकते हैं।जून के अंत से जुलाई भर मिश्रीकन्द  यानि केसऊर की खेती कर सकती हैं।सितम्बर  अरहर के साथ इसकी मिश्रित खेती सितम्बर माह में भी कर सकते हैं।जून- जुलाई में बोने पर बीज 15-20kg/hectare और अगस्त  में 30-40 kg/hectare और सितम्बर  में 50-60kg/hectare की दर से लगता हैं।जून-जुलाई में इसे मकई और अरहर के साथ भी लगा कर सकते हैं।मिश्रीकन्द की खेती के विशेष इच्छुक हैं तो कमेंट सेक्शन में लिखें।इस पर विस्तृत  एवं अनुभव सिद्ध तथ्यों से परिपूर्ण लेख उपलब्ध कराया जाएगा।

5. बरसाती सब्जियों की खेती :-ज्यादातर बरसाती सब्जियाँ गरमा और बरसाती दोनों रूपों में उगाई जाती हैं,जिसमें बैगन,भिण्डी,लौकी,खीरा,घिनौनी,करेला,नेनुआ,बोदी,पेठा और मिर्च प्रमुख हैं।इनमें से भिण्डी को छोड़कर शेष सभी के लिए थोड़ा सा जल जमाव  भी अत्यंत घातक हैं।इस तथ्य को ध्यान में रख कर ही उपयुक्त भूमि में इन फसलों को लगाए।ये सारी सब्जियाँ टेरेस गार्डन,लाॅन या बैकयार्ड किचन गार्डन के लिए भी बहुत उपयुक्त  हैं।


फूलगोभी(Cauliflower): जून माह में अगैती (early)प्रभेद का बीज नर्सरी में बोया जाता हैं।बिहार में प्रचलित नस्लें हैं-पटना अर्ली,पूसा कतकी,कुँआरी ।इनके अलावा कुछ  हाईब्रिड  नस्लें भी उपलब्ध हैं।छोटे स्तर पर गमलों में भी बीज बोया जा सकता हैं।बरसाती मौसम में उगते ही बेवकूफ की तरह लम्बे होकर मुरझाते हुए मर जाने की बीमारी अक्सर  अगात फूलगोभी की नर्सरी में पाई जाती हैं।इसके निराकरण  हेतु streptocycline नामक antibiotic दवा का प्रयोग  बीजोपचार तथा उगते के बाद स्प्रे के रूप में भी करना चाहिए।600-700  ग्राम बीज लगता हैं। यह उच्च लाभ देने वाली फसल हैं किन्तु विशेष देखभाल  की जरूरत पड़ती हैं।

 


बैंगन
(Egg plant/Brinjal):बैगन की मुख्य फसल हेतु जून महीने के अंत तक पौधशाला में बीजाई कर देनी चाहिए।वैसे 15  जुलाई तक भी कर सकते हैं।बैंगन की खेती पर विस्तृत व पूर्ण जानकारी के लिए alongwithroots.blogspot.com पर विजिट करते रहें।(शीघ्रप्रकाश्य)।

भिण्डी(Okra/Lady finger): बरसाती भिण्डी की बोआई  जून से जुलाई तक कर सकते हैं।एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 8-10 kg बीज लगता है।कतार से कतार की दूरी 50 सेमी और कतार में पौधे से पौधे की दूरी 40 सेमी रखें।

लौकी(Gourd): जून-जुलाई  में रोपी जाने वाली बरसाती लौकी नवंबर-दिसंबर तक फल देती है।खेतों में लगाने के लिए ऊँचे थाले बनाए जिनमें पहले से 2-3 kg सड़ी गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट के साथ 20 ग्राम यूरिया,25 ग्राम पोटाश  और 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट प्रति थाला मिला लें और तीन बीज  प्रत्येक में रोपें।गमलों या ग्रो बैग में  भी इसी प्रकार  रोप सकते हैं।मचान बनाना जरूरी हैं।


नेनुआ/घिउरा(Sweet Gourd/SpongeGourd)  :इसे बरसात में जुलाई महीने में 2m×1.5m की दूरी पर ऊँची बेड बना कर रोपते हैं।खाद एवं उर्वरक लौकी के समान प्रयोग  करें।यदि 1m चौड़ी व 20cm ऊँचे बेड बना कर रोपें तो बिना मचान बनाए भी उपज ले सकते हैं किन्तु मचान पर फलों की गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ जाती हैं।



तोरई/झिगुनी(RidgeGourd):जून-जलाई  माह में एकल या मिश्रित फसल के रूप में इसे लगाया जाता हैं।( गरमा तोरई फरवरी- मार्च में रोपी जाती हैं।) अरहर+मकई+ तोरई एक प्रचलित  फसल संयोजन हैं।एकल फसल के रूप में नेनुआ की तरह ही बेड बनाकर रोप सकते हैं।मचान बनाकर लताओं को उन पर फैलने दें।इससे उपज की मात्रा एवं गुणवत्ता बढ़ जाती हैं।खाद एवं उर्वरक की मात्रा कद्दू से आधी कर दें।उन्नत प्रभेद पंजाब सदाबहार,पूसा नसदार,सतपुतिया,PKM1,कोयम्बटूर-2 इत्यादि।

 खीरा(Cucumber): बरसाती खीरे की खेती 50 सेमी चौड़ी,20 सेमी ऊँची बेड व 50 सेमी चौड़ी नाली के अंतराल बनाकर 50-50 सेमी की दूरी पर 3-3 बीज रोपते हुए करें।खाद एवं उर्वरक का प्रयोग जुताई के समय ही कर दें।यह सावन-भादो के महीने में फल देता है।इस दौरान सामान्य माँग के अतिरिक्त व्रत-त्योहारों की भरमार होने से अत्यधिक माँग उत्पन्न हो जाती है जिससे मूल्य ज्यादा मिलता है।

करेला (BitterGourd): जून-जुलाई में मुख्यतः दो प्रकार के करेले रोपे जाते हैं - बारहमासी और हाईब्रिड। पुरानी भदई नस्लें अब लुप्तप्राय हैं।इसकी लताएँ जमीन पर फैल कर फल नही देती।मचान बनाकर ही उपज ले सकते हैं। कीटनाशक एवं फफून्दनाशी का आवश्यकतानुसार उपयोग करना पड़ता है। 

बरबटी/बोदी/बोरो(Long Beans): बोने का समय - जून से जुलाई तक। उन्नत प्रभेद - पूसा बरसाती,पूसा दोफसली, पूसा ऋतुराज। पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी,कतार से कतार की दूरी 25 सेमी। खाद एवं उर्वरक - कम्पोस्ट 4 क्विंटल/कट्ठा, यूरिया 1.4 kg/कट्ठा, म्यूरेट ऑफ पोटाश 1.5 kg/कट्ठा और सिंगल सुपर फास्फेट 5 kg/कट्ठा। (1 कट्ठा=1760 वर्ग फीट)

6. बागवानी : - आम,अमरूद, लीची,केला, नींबु, नारियल के पौधे लगाने का सबसे अधिक उपयुक्त समय 15 जून से 31 जुलाई तक है।यदि अप्रैल माह में गड्ढे खोदकर तैयार कर लिए गए हैं तो रोपने से 10-12 दिन पूर्व खाद-उर्वरक और मिट्टी का मिश्रण भरकर दबा दें।

7. वानिकी  : - गम्हार, जल गम्हार,बकाईन, करंज, बबूल, खैर के बीज पौधशाला में लगायें।

मौसम के मिजाज और सरकारी नीतियो के चक्रव्यूह में फंसी खेती

 बीत चुका है मई का महीना और 3 जून को मॉनसून पहुंचा केरल तट।इससे पहले 'तौक्ते' और 'यास' तूफ़ानों के कारण दो बार भारी वर्षा हो चुकी है।कुछ क्षेत्रों में तौक्ते ने तबाही मचाई तो कुछ में 'यास' ने।बिहार-बंगाल-झारखंड में मूंग और सब्ज़ी की फसलें नष्टप्राय हो गई। दियारा क्षेत्रों में तरबूज, ,खरबूज, ककड़ी, खीरा और कद्दूवर्गीय सब्जियों की फसल पूरी तरह नष्ट हो गई। किसानों की मेहनत और लागत पर पानी फिर गया। चूंकि इनकी खेती में मोटी रकम लगती है,इसलिए ज्यादातर किसानों की हवा निकल गई। महाजन और बैंक तो सूद समेत कर्ज की वसूली के लिए सिर पर सवार होंगे ही ----  घर खर्च कैसे चलेगा!

समय-समय पर सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर जो कृषि क्षेत्र में उन्नति संबंंधी चिकने-चुुपडे आंंकड़े पेश किए जाते हैं उनसे तो लगता हैै कि सब कुछ ठीक चल रहा है। मगर ऐसा है नही।आज बिहार-यूपी के गाँवों में खेती की वो हालत नहीं है जो आम तौर पर आधिकारिक रूप से पेश की जाती है।

चौंकाने वाले तथ्य :

■ 80 से 90% रैयती किसान स्वयं खेती नही करते।मगर किसान कहलाते हैं।

■ भारत सरकार इन्हीं किसानों को प्रधानमन्त्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत सम्मानित करती है।(6000 ₹ वार्षिक)

■ अकेले बिहार राज्य में 1,19,00,520 तथाकथित सम्मानित किसान हैं जो कुल जनसंख्या का 12 से 15% हैं।

■  वर्ष 2020 में बिहार के कुल 1002 किसानों ने पैक्सों को मात्र 0.05 लाख मीट्रिक टन गेंहू बेचा।(अर्थात 50000 क्विंटल)

जमीनी हकीकत :

रैयती किसान या भूस्वामी स्वयं खेती करने की जहमत नही उठाते हैं।दरियादिली दिखाते हुए वैसे भूमिहीन मजदूर या सीमांत किसान को जमीन जोतने-बोने देते हैं जो उपज का आधा हिस्सा बैठे बिठाए दे जाता है।अथवा अल्पकालिक या दीर्घकालिक लीज पर जमीन दे देते हैं ।इस प्रथा को बटाईदारी, मनखप आदि नामों से जाना जाता है।एक ठीक-ठाक दो फसली जमीन का औसत वार्षिक किराया आमतौर पर(धान+गेंहू)15 क्विंटल/हेक्टेयर है।बाढ,सुखाड़ या किसी अन्य कारण से फसल भले नष्ट हो जाए,खेत का किराया तो चुकाना पड़ेगा।समाज में ये सब सामान्य समझा जाता है,मगर क्या यह वास्तव में सामान्य बात है?

असामान्य बातें :

●सरकार खेती करने वालों को भी किसान मानती है और न करने वालों को भी।

●जो भूमिहीन खेती करता है,वो सरकार की नजर में किसान सम्मान योजना में लाभ प्राप्त करने का हकदार नही है।

●भूमिहीन खेती तो कर सकता है मगर कृषि संबंधित किसी भी सब्सिडी या सरकारी सहायता को प्राप्त करने का पात्र नही हो सकता।

●निजी क्षेत्र को मनमानी उपज खरीद दर निर्धारित करने की खुली छूट। 

जो खेती नही करते मगर जमीन के मालिक हैं,वे सरकारी किसान हैं और जो खेती करते हैं पर जमीन का मालिकाना हक नही रखते वे सरकार की दृष्टि में किसान नही हैं।

            भई वाह! जो पूँजी लगाए,मेहनत करे और रिस्क फैक्टर भी झेले वो न तो उद्यमी है और न किसान!उसे न तो किसान सम्मान योजना का लाभ मिलता है और न फसल क्षति मुआवजा या फसल बीमा लाभ।खाद-बीज सब्सिडी या डीजल अनुदान की तो बात भी करना बेमानी है।कृषि विभाग बिहार राज्य के वेबसाइट पर पंजीकृत किसानों की संख्या 1,67,56,502 है और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना से लाभान्वितों की संख्या 1,19,00,520 है।यह बिहार की जनसंख्या का 12-15% हिस्सा है।आज की तारीख में यदि निष्पक्ष स्वतंत्र जांच एजेंसी से जांच या सर्वे करा लें तो तथाकथित किसानों की पोल खुल जायेगी।इनमें से 15-20% लाभुक वास्तविक किसान भी होंगे।मगर शेष निठल्लों को किस आधार पर 'सम्मानित' किया जा रहा है,यह समझ से परे है।

⁉️क्या यह जनता को नाकारा बनाने का सिस्टम नही है?

⁉️ क्या यह आम करदाता की गाढी मेहनत की कमाई व्यर्थ लुटाने जैसा नही है?

यह विकास का कैसा मॉडल है?

सरकारें दावा करती हैं एमएसपी पर किसान का अनाज खरीदने का,मगर नया कृषि बिल जिसका विरोध देशभर के किसान दिल्ली में जुट कर कर रहे हैं वह निजी क्षेत्र को खुली छूट देता है कि मनचाहे तरीके से कृषि क्षेत्र का शोषण कर सके।यदि बात करें बिहार की तो यहां पंचायत स्तर पर सहकारी कृषि साख समितियों(पैक्स) और प्रखंड स्तर पर व्यापार मंडल का सिस्टम स्थापित किया गया है जो किसान का अनाज भी खरीदती है।वित्तीय वर्ष 2020-2021 अंतर्गत बिहार सरकार ने धान अधिप्राप्ति के लिए 1868 रूपये/क्विंटल का दर निर्धारित किया मगर ज्यादातर खेतिहरों को 1100-1200 रूपये/क्विंटल की दर पर बेचना पड़ा। ये बीच का 668-768 रूपया किसकी जेब में गया?इसी प्रकार अप्रैल 2021 में गेहूँ का समर्थन मूल्य आया 1975 रूपए/क्विंटल और किसानों को औसतन1500 रूपए/क्विंटल की दर से बनियों के हाथ बेचना पड़ा। बीच का 475 रूपया कहाँ गया?

जहाँ तक वर्ष 2020-21 में गेहूँ की सरकारी खरीद की बात है,तो बिहार में कुल 1002 किसानों से मात्र 50,000 क्विंटल अनाज खरीदी गई। जबकि यहाँ 1 करोड़ 19 लाख 520 सम्मानित और 1 करोड़ 67 लाख 56 हजार निबंधित किसान हैं।जबकि पूरे भारत देश में एमएसपी पर 43 लाख 35 हजार 972 किसानों ने गेहूँ  बेचा। आधिकारिक आँकड़ों की माने तो बिहार में गेहूँ का औसत वार्षिक उत्पादन 60 लाख मीट्रिक टन है।

यहाँ ग़ौरतलब सवाल यह है कि किसान पैक्स में 1975 रूपए/क्विंटल की दर से गेहूँ बेचने के बजाय निजी क्षेत्र में 1500 रूपए/क्विंटल के भाव से बेचना क्यों पसंद करते हैं?

धान खरीद के आंकड़ों पर गौर करें तो हम पाते हैं,वर्ष 2020-21 में बिहार के 1,39,188 किसानों से 10,19,680.26 मीट्रिक टन धान खरीदा गया।इनमें से ज्यादातर पैक्स अध्यक्ष के 'यसमेन' या समर्थक हैं,जिनके नाम पर रजिस्ट्रेशन कर 1200 रूपए/क्विंटल खरीदा हुआ धान सरकार को चूना लगाते हुए बेच दिया गया।ये लोग स्थानीय छोटे व्यवसायियों के माध्यम से सस्ता धान खरीद कर सरकार से बेच देते हैं  महँगे दाम पर।

       वर्ष 2020-21 खरीफ सीजन में बिहार सरकार ने रैयत किसानों के लिए धान की पूर्व निर्धारित अधिकतम क्रय सीमा को 200 क्विंटल से बढ़ाकर 250 क्विंटल प्रति किसान कर दिया। जबकि भूमिहीन किसान के लिए 75 क्विंटल से बढ़ाकर 100 क्विंटल प्रति किसान कर दिया।इसका लाभ किसान को तो लगभग न के बराबर मिला मगर बिचौलियों की चाँदी हो गई। इसीलिए कहा जाता है,"माल महाराज के मिर्जा खेले होली"।

चालू सत्र में पैक्सों द्वारा गेहूँ की खरीद जारी है।इसमें भी वही खेत चल रहा है,जो धान क्रय में चला। 3 जून को एक हिन्दी दैनिक में बाइलाईन खबर छपी जिसका आशय यही था।

थोड़ा अतीत में चलें तो पाते हैैं पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश आदि की तरह बिहार राज्य मेें भी सरकार के नियंत्रण वाली अनाज मंडी की व्यवस्था 2006 ई० से पहले तक लागू थी।ऐसी मंडी में किसान से कोई भी MSP से कम मूल्य पर खरीद नही सकता। 2006 ई० मेें कृषि उत्पाद समितियों को खत्म कर निजी क्षेत्र को फायदा और कृषक को घाटा कराने का काम किया गया।इससे व्यापारियों को कम मूल्य लगाने की छूट मिल गई। बाद मेें झोल-झाल वाली पैक्स व्यवस्था कायम की गई जो आज किसानो के शोषण का औजार बन गई है।


 


Celery in Hindi

सेलरी यानि अजमोद(Apium graveolens) भूमध्यसागरीय और मध्य पूर्व क्षेत्रों का मूल निवासी है। प्राचीन ग्रीस और रोम में इसके उपयोग का इतिहास मिलत...