
🎃एक बहुवर्षीय भूमिगत रूपांतरित तने या घनकंद के रूप वाली सब्जी जिसे उत्तर भारत में 'ओल','सूरन' या 'जिमीकंद' आदि नामों से जाना जाता है और अंग्रेजी में Elephant Foot कहलाता है,एंटीऑक्सीडेंट्स और औषधीय गुणों से लबालब भरा हुआ है। कुछ लोगों को लगता है कि यह yam है पर वास्तव में रतालू को yam कहा जाता है जो एक लता वर्गीय पौधे के पर्व-संधियों पर और कंद के रूप में प्राप्त होता है। ओल को वैज्ञानिक भाषा में Amorpholus ceompenulatus कहा जाता है।
🥔 ओल न केवल एक लोकप्रिय स्वादिष्ट सब्जी है बल्कि औषधीय गुणों से भरपूर कंद भी है। बवासीर के मरीजों के लिए यह ज्यादा ही फायदेमंद होता है। मिनरल्स और फाईबर्स के साथ-साथ काफी मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट का सुलभ प्राकृतिक स्रोत भी है। दो-तीन दशक पहले तक यह आमतौर पर Backyard kitchen-garden का हिस्सा हुआ करता था किन्तु बढती माँग को देखते हुए अब इसकी खेती भी होने लगी है। व्यवसायिक पैमाने पर खेती के लिए इसके उच्च उपज क्षमता वाले प्रजातियों की पहचान की गई है और इन्हीं को रोना जाता है। कम उपज वाले प्रभेद जिनमें ऑक्जेलेट्स अधिक होते हैं और गले में प्रायः तकलीफ़ पहुँचाने का काम करते हैं, अब यूपी-बिहार के बैकयार्ड किचनगार्डन में सीमित रह गए हैं।मगर इनमें औषधीय गुण ज्यादा हैं।
उन्नत प्रभेद -- गजेन्द्र,, त्रिवेन्द्रमी,हैदराबादी, मद्रासी ।
भूमि का चयन :-- हल्की दोमट,बलुई,ह्युमसयुक्त ऊँची जमीन जिसमें बरसात का पानी नहीं रुकता है,ओल के लिए सर्वश्रेष्ठ है। उसर भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है। आम-लीची आदि के बगीचों में छायादार परिस्थितियों में भी यह अच्छी तरह उगती और उपज देती है।
🧭रोपने का सही समय : -- मार्च-अप्रैल या जून।
🎯बीज का आकार :-- 500 ग्राम के आसपास के कंद या कंद के टुकड़े। प्रत्येक टुकड़े में मुख्य अंकुर का कुछ भाग रहना चाहिए। इससे पुष्ट पौधे प्राप्त होते हैं । किन्तु यदि घरेलू प्रभेद का उपयोग करना चाहें तो 200-250 ग्राम के कंद या कंद के टुकड़े आरोप सकते हैं।
💥पौधे से पौधे की दूरी :-- 75 सेमी ×75 सेमी(500 ग्राम के कंद या कंद के टुकड़े रोपने के लिए), बगीचों में यह दूरी 1 मी × 1 मी उपयुक्त है।
👌बीजोपचार :-- बाविस्टिन या इमीसान-6 की मात्रा 2.5 ग्राम/लिटर पानी में घोल कर 15-20 मिनट तक बीज कंद को डुबो कर रखें। इस घोल में स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 1/2 ग्राम प्रति लीटर की दर से मिला देना चाहिए।यह एक एंटीबायोटिक है जो पौधों में होने वाले बैक्टीरिया जनित रोगों का निवारण करता है।
🌿बीज की मात्रा : -- 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर (1 हेक्टेयर =100 मीटर × 100 मीटर =10000 वर्ग मीटर ) प्रयोग के लिए एक कट्ठा में लगाना चाहते हैं तो 1.6 - 2 क्विंटल बीज लगेगा।
🟢खाद एवं उर्वरक : -- जुताई के साथ खाद देने के बजाय प्रत्येक पौधे को लक्षित कर प्रति गड्ढा 3 किलोग्राम सड़ी गोबर अथवा 1 किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट ,38 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 20 ग्राम अमोनियम सल्फेट या 10 ग्राम यूरिया, 16 ग्राम पोटैशियम सल्फेट मिट्टी में मिलाकर कंद का रोपण करें। इससे उर्वरक का पूरा लाभ तो पौधे को मिलता हीं है लागत खर्च में कमी भी होती है। रोपण के 80-90 दिन बाद नेत्रजनीय उर्वरक से उपरिवेशन करना जरूरी है।
🌵🌾☘निकाई-गुडाई (खरपतवार निकालना एवं मिट्टी की उपरी परत ढीली करना) : -- पहली बार 50-60 दिन की अवस्था में, दूसरी बार 90-100 दिन की अवस्था में। पहली निकौनी के दौराञन पौधे के पास मिट्टी चढाना जरूरी है।
🚰 सिंचाई: -- वैसे तो आमतौर पर ओल की खेती में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है किन्तु सूखे की स्थिति में मई-जून के महीने में नमी बहुत कम हो जाने पर हल्की सिंचाई कर सकते हैं पर जल जमाव न हो।
📆 इस फसल की अवधि अन्य फसलों की तुलना में अधिक है । 9-10 माह में कंद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं
💲💱उपज :-- सामान्यतः रोपे गये कंद के वजन के 8-10 गुणा उपज की अपेक्षा रहती है। विभिन्न कृषि अनुसंधान संस्थानों, कृषि महाविद्यालयों में किये गये परीक्षणों से भिन्न-भिन्न उपज संबंधी आकड़े (data) प्राप्त हुए हैं। पूसा कृषि विश्वविद्यालय समस्तीपुर, बिहार के अनुसार कम से कम 400-500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है।
🔁🏛 आय-व्यय :-- एक हेक्टेयर में अनुमानित लागत =₹ 4,50,000 400 क्विंटल न्यूनतम उपज प्राप्त होने पर फसल का न्यूनतम मूल्य =₹ 8,00,000 शुद्ध लाभ=₹ 3,50,000 ( 77%)
मृदा की गुणवत्ता, मौसम की अनुकूलता एवं उचित देखभाल से उपज और मुनाफे में वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं। Tips: रोगों का काल है जिमीकंद, जानें इसके 5 फायदे via zeenews - https://zeenews.india.com/hindi/health/health-benefits-of-jimikand-in-hindi-know-the-five-benefits-of-jimikand-spup/889218
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