बरसाती भिण्डी की खेती

 भिंडी को लेडीज फिंगर या ओकरा(okra) भी कहते हैं। अपने विशिष्ट गुणों के कारण यह एक लोकप्रिय सब्जी है। साल में भिंडी की दो फसलें उगाई जाती हैं पहली फरवरी-मार्च में गरमा फसल और दूसरी जून-जुलाई में बरसाती। यहां हम बरसाती भिंडी की खेती कैसे करें इस विषय पर सभी जरूरी जानकारियां और व्यवहारिक अनुभव शेयर कर रहे हैं।


खेत की तैयारी : लगभग 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से कंपोस्ट डालकर गहरी जुताई करें जिससे खरपतवार मिट्टी के नीचे चले जाएं। दूसरी जुताई में रासायनिक उर्वरक अनुशंसित मात्रा में डालें। दूसरी जुताई यथासंभव रोटावेटर से करें।

खेत का चयन : 6.4 से लेकर 7 पीएच मान वाली हल्की दोमट मिट्टी युक्त ऊंची भूमि में बरसाती भिंडी की खेती करें। जलजमाव से छोटे पौधे गल जाते हैं तथा बड़े पौधों की उत्पादकता घट जाती है।

उर्वरक की मात्रा : सिंगल सुपर फास्फेट यानी एसएसपी 3.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं 80 किलोग्राम यूरिया अथवा 1.5 क्विंटल डीएपी प्रति हेक्टेयर और म्यूरेट ऑफ पोटाश 1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें।

बीज की मात्रा : 8 से 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अथवा 150 ग्राम से 200 ग्राम प्रति कट्ठा। 


उन्नत प्रभेद : परभणी क्रांति, केएच- 312, सेलेक्शन- 8 ,सेलेक्शन -10, एचबीएच -142, भवानी, कृष्णा तथा भिन्न-भिन्न कंपनियों के पीतशिरा प्रतिरोधी हाइब्रिड किस्में।

 संरचना : 60 सेमी चौड़ी बेड के अंतराल पर 15 सेमी गहरी और 40 सेमी चौड़ी नाली बनाएं यह संरचना यथासंभव पूरब से पश्चिम दिशा में बनाएं इससे क्यारियों में धूप ज्यादा अच्छे से लगेगी। बेड के दोनों किनारों से 5 - 5 सेमी छोड़कर बिजाई करें ताकि पौधों की दो कतारों के बीच 50 सेमी का अंतराल रहे।


बीज का उपचार : यदि सवेरे रोपना है तो बीज रात में भिगो दें। सुबह 5:00 बजे पानी से निकाल ले और थीरम नामक फंगीसाइड के सॉल्यूशन में उपचारित कर छांव में सुखा लें। एक किलोग्राम बीज के उपचार हेतु 2 ग्राम थीरम के साथ 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का भी व्यवहार करें।


बिजाई : एक कतार में पौधों से पौधों की दूरी 30 से 40 सेमी रखें और एक स्थान पर 3 या 4 बीज रोपें। यदि सभी उग जाएं तब भी कोई दिक्कत नहीं है। बाद में निकोनी के दौरान कमजोर पौधे को हटाया जा सकता है। एक बेड पर दो कतार लगाएं। बरसाती फसल के लिए प्रायः अंकुरित बीज रोपना अनिवार्य नहीं है क्योंकि जमीन और वातावरण में बहुत अधिक आर्द्रता होती है । केवल फफूंद और बैक्टीरिया संक्रमण से बचा कर रखने की जरूरत है।

खरपतवार नियंत्रण : बिजाई के 15 से 20 दिन बाद पहली निराई करें। खरपतवार हटाने के साथ-साथ मिट्टी भुरभुरी करना भी जरूरी है। जड़ों के विकास के लिए यह अति आवश्यक है। खरपतवार फसल को कमजोर कर देते हैं वह पौधों के हिस्से की पोषक सामग्री भी हजम कर जाते हैं। केमिकल तरीकों से यथासंभव बचे रहें। यह तरीका इको फ्रेंडली नहीं है। पहली निकोनी के साथ ही यूरिया 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। दूसरी निकोनी इसके 20 से 30 दिन बाद इतनी ही मात्रा में यूरिया डालकर करें। उत्पादन : 45वे से 60वें दिन के बीच भिंडी की तुराई आरंभ हो जाती है । यह प्रभेद विशेष तथा परिवर्तनशील भौतिक मौसमी घटकों पर निर्भर करता है कि रोपाई के कितने दिन बाद फल प्राप्त होगा। फसल अवधि में कुल उत्पादन औसतन 90 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है।

निवेश एवं आमदनी : उपरोक्त विधि से खेती करने पर सभी खर्चों को जोड़कर 80,000 से 85,000 रुपए प्रति हेक्टेयर निवेश होता है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहे तो उत्पादन 100 क्विंटल तक हो सकता है। यद्यपि भिंडी का बाजार मूल्य परिवर्तनशील है फिर भी औसत न्यूनतम होलसेल रेट ₹15 प्रति की किलोग्राम रखें तो कुल प्राप्ति ₹1,05,000 हो सकती है। यानी ₹20,000 का न्यूनतम शुद्ध लाभ प्राप्त होगा। किंतु यदि यथासंभव अधिक से अधिक उत्पाद को स्थानीय खुदरा बाजार में किसान सीधे उपभोक्ता को बेचे तब संपूर्ण विक्रय मूल्य दो लाख से अधिक आता है। भिंडी की खेती एक प्रकार का जुआ है।

नोट : -- कुछ अन्य बाह्य कारकों का भी ध्यान रखना पड़ता है। आवारा पशु और नीलगाय इसके सबसे बड़े दुश्मन है। यदि खेत को चारों तरफ से बांस और जाली की सहायता से सुरक्षित कर सकें तो पूरा लाभ उठा सकते हैं।

 रोग एवं कीट नियंत्रण : मुख्य रोग पीतशिरा रोग है एक बार संक्रमित होने पर कोई इलाज नहीं है। इसलिए बीज उसी नस्ल का चुने जो वायरस से होने वाले पीतशिरा रोग से प्रभावित नहीं होता है। फल एवं तना छेदक कीड़ों और अन्य हानिकारक कीटों के नियंत्रण के लिए मालाथियान 50 ईसी 20 एमएल दवा 10 लीटर पानी में घोलकर प्रति कट्ठा की दर से छिड़काव करें। मालाथिऑन के स्थान पर इंडोसल्फान 35 ईसी का उपयोग कर सकते हैं। तनाछेदक एवं फलछेदक अधिक परेशान करें तो फुराडॉन 3 जी दानेदार दवा आधा किलोग्राम प्रति कट्ठा की दर से पूरे खेत में छीट दें । यदि पत्तों पर जाल बुनकर क्षति पहुंचाने वाली मकड़ी या रेड माइट का प्रकोप हो तो डाईकोफॉल 18.5 ईसी 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में डाइल्यूट कर स्प्रे करें। डायकोफॉल के बजाय सॉल्युबल सल्फर का भी प्रयोग कर सकते हैं। रेड माइट नामक मकड़िया बहुत छोटी छोटी होती है जिन्हें बहुत ध्यान से देखने पर ही पता चलता है। इनका प्रकोप बरसाती भिंडी में कम होता है। 

                    सावधानियां : कीटनाशकों अथवा फफूंद नाशी के प्रयोग से पूर्व फल तोड़ ले और स्प्रे के कम से कम 7 दिन बाद ही अगली तुड़ाई करें। क्योंकि यह रसायन जहरीले होते हैं और इनके अवशेष शरीर में उपद्रव मचा देते हैं अतः इनसे बचने के उपायों का सतर्कता से पालन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त फलों की तुराई में यह भी सतर्कता बरतनी चाहिए की पूर्ण परिपक्व होने से पहले ही फलों को तोड़ लें। फल की लंबाई तो बढ़ जाए किंतु यह नरम रहे तभी तोड़ ले। रेशे कड़े हो जाने पर बिक्री में परेशानी आती है साथ ही भिंडी के ढेर में कुछ कठोर रेशे वाले परिपक्व फल दिख जाने पर मूल्य कम हो जाता है। फसल से पूरा लाभ लेने के लिए इन छोटी-छोटी बातों का बड़ा ध्यान रखना पड़ता है । फल तोड़ने में पौधे क्षतिग्रस्त ना हो इसके लिए चाकू या ब्लेड से फल का डंठल काटे। बड़े खेतों से फल तुराई के लिए हाथों पर प्लास्टिक के डिस्पोजेबल दस्ताने लगाएं क्योंकि भिंडी के पत्तों और फलों पर खुजली व इरिटेशन उत्पन्न करने वाले रोम होते हैं।

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