बरसाती लौकी की खेती से लाखों कमायें






कद्दू /लौकी यानी गॉर्ड(Gourd) जिसे बॉटल गॉर्ड भी कहते हैं एक प्रमुख सब्जी है। इसका व्यवहार भारत के विभिन्न भागों में तो होता ही है देश विदेश में भी यह लोकप्रिय सब्जी है। यह सालों भर बाजार में उपलब्ध रहती है। इसकी खेती सामान्यतः वर्ष में दो बार होती है किंतु नए अनुसंधानों एवं संकर किस्मों के विकास के कारण किसी भी समय इसे रोपकर फल प्राप्त करना संभव है। 

गरमा कद्दू जनवरी-फरवरी में प्लांट की जाती है । 

मई के महीने में मौसमी लौकी की खेती होती है। किंतु मूल रूप से बरसाती या भदईया लौकी जुलाई महीने में बोई जाती है। इसकी लताओं को फैलने के लिए मचान की आवश्यकता होती है जो प्रायः स्थानीय स्तर पर प्राप्त होने वाले बांस इत्यादि लकड़ियों से बनाई जाती है। बहुत से लोग गांव में अपनी झोपड़ी पर कद्दू की लताएं चढ़ा देते हैं और यह छप्पर पर फल देती है। आजकल शहरों में टेरेस पर सब्जियों की खेती का फैशन चल पड़ा है। बड़े गमले या ग्रो बैग में कद्दू रोपकर टेरेस पर ही लताओं को फैलने देते हैं। 

बच्चे अक्सर कद्दू की सब्जी का नाम सुनकर नाक भौं सिकोड़ते हैं परंतु वे यह नहीं जानते कि यह बहुत ही स्वास्थ्यप्रद एवं गुणकारी सब्जी है। जब से लोग रामदेव बाबा के योग और उनके द्वारा बताए गए विभिन्न सब्जियों के जूस पीने के नुस्खे लोकप्रिय हुए हैं तब से कद्दू और करेले की मांग बहुत बढ़ गई है। मांग बढ़ने के साथ मूल्य वृद्धि भी स्वाभाविक रूप से हो गई। एक छोटा सा कद्दू 30 से ₹50 का आता है। अब ऐसी हाइब्रिड नस्लें उपलब्ध हैं जिनमें 1 किलो और 2 किलो के फल आते हैं जो बेचने में आसान होते हैं अन्यथा कद्दू को काटकर और वजन कर बेचना थोड़ा असुविधाजनक होता है। स्थानीय स्तर पर प्रचलित कुछ नस्लें भारी भरकम फल देती है जिनका वजन 10 से 20 किलोग्राम तक होता है । इन स्थानीय वैरायटी के कद्दू का स्वाद लाजवाब होता है। यदि इनके लाजवाब स्वाद का मजा लेना है तो इन लोक प्रचलित वैराइटीज को ढूंढिए और घरों और खेतों में लगाइए अन्यथा हाइब्रिड नस्लें इन्हें खा जाएंगी। इनका संरक्षण बहुत जरूरी है।ये जैव विविधता की विरासत हैं।

 आज हम इस आलेख के जरिए बरसाती कद्दू की खेती खेतों में घर के पास अथवा टेरेस पर करने की आसान और वैज्ञानिक विधि पर चर्चा करेंगे।

भूमि का चयन : हल्की दोमट ऊंची भूमि जिस पर बरसात का पानी ना जमता हो कद्दू की खेती के लिए उपयुक्त है। मिट्टी का ह्यूमसयुक्त होना जरूरी है।

खेत की तैयारी : एक गहरी और एक रोटावेटर से जुताई के बाद खेत तैयार हो जाता है। कद्दू की खेती के लिए पूरे खेत में खाद एवं उर्वरक बिखेरने की जरूरत नहीं होती है।


प्लांटेशन प्लान : 2 मीटर × 2 मीटर की दूरी पर गड्ढे बनाएं और इन गड्ढों में प्रति गड्ढा 2 से 3 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट 25 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश और 20 ग्राम यूरिया डालें। मिट्टी के साथ मिलाकर इन गड्ढों को भर दें। गड्ढे भरने के कम से कम 3 दिन बाद इनमें प्रति गड्ढा 3 बीज लगाएं।दो कतारों के लिए एक लम्बा मचान इसप्रकार बनायें कि दो मचानों के बीच आने जाने के लिए कम से कम 1 मीटर चौड़ी जगह बची रहे। अर्थात 2.5 मीटर चौड़ाई की मचान बनानी है। जब पौधे तीन चार पत्ती के हो जाए तब इन्हें मचान पर चढ़ाने के लिए सहारे की व्यवस्था कर दे।

बीज की मात्रा : 4 से 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

बीजोपचार : थीरम फफूंदनाशी से बीजोपचार कर लें।

देखभाल : उगने के बाद जब पौधे 25 - 30 दिन के हो जाएं तो हर थाले में यूरिया 20 ग्राम चारों तरफ से डालें तथा घास फूस निकाल दें। जब फूल आने लगे तो 35 ग्राम कैलशियम अमोनियम नाइट्रेट प्रत्येक थाले में डालें। इससे पौधे की तत्कालिक नाइट्रोजन संबंधी आवश्यकता की पूर्ति होती है और पौधे का विकास सही तरीके से होता है।

कीट नियंत्रण : कद्दू पर सबसे अधिक ग॔धीबग का प्रकोप होता है जो फलन को प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त चूहे फलों को कुतर कर नष्ट कर देते हैं। कई बार लाही भी कद्दू की फसल को नुकसान पहुंचाती है। डायमेथोएट 30ईसी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से गंधीबग और लाही का नियंत्रण होता है। चूहे के बिलों में 1-1 टिकिया जिंक फास्फाइड की डालकर गीली मिट्टी से बिलों के मुंह बंद कर दें। इससे चूहे दम घुट कर बिल के अंदर ही मर जाएंगे।


स्पेशल टिप्स : जब कद्दू की बेले मचान पर फैलने लगे और मादा पुष्प ना आते हो तब मीराकुलान नामक हार्मोन युक्त दवा का छिड़काव करें। यह एक ऑक्सिन  पादप हार्मोन है। कुछ लोग ऑक्सीटॉसिन इंजेक्शन का प्रयोग भी कद्दू के पौधे पर करते हैं जिससे फ्रूट जल्दी लगने लगते हैं। यह वही इंजेक्शन है जिसका उपयोग बिना बछड़े के दुधारू पशु से दूध निकालने के लिए किया जाता है। दिसंबर जनवरी के महीने में जब ठंड बढ़ जाती है तो फल कम आते हैं। ऐसी स्थिति के लिए भी कुछ नुस्खे हैं जो पौधों को फल देने के लिए विवश कर सकते हैं। 10 किलोग्राम सरसों की खली को 100 लीटर पानी में 3 दिनों तक भी भिगोकर छान ले। छने हुए घोल को 10 गुना पानी मैं डाइल्यूट करें और प्रत्येक पौधे की जड़ के पास आधा आधा लीटर डालें । इससे काफी संख्या में फल आने लगेंगे।

टेरेस गार्डेनिंग : छतों पर सब्जी उगाने के लिए लोग गमलों के साथ-साथ ग्रो बैग्स का भी इस्तेमाल कर रहे हैं । 1.5' * 1.5' आयाम के ग्रो बैग्स का उपयोग कद्दू रोपने के लिए कर सकते हैं। ग्रो बैग्स में सबसे नीचे सूखे पत्ते और खरपतवार डालें तब गार्डन सॉइल और सड़ी हुई गोबर की खाद अथवा जैविक खाद के साथ कोको पीट और वर्मी कंपोस्ट मिलाएं। इस मिश्रण से बैग्स को पूरा भर कर मिट्टी को थपथपाते हुए ठीक से जमाए। एक ग्रो बैग में तीन से चार बीज एक-एक इंच गहराई पर डालें। छोटे स्प्रे गन से हल्की सी सिंचाई करें। 5 से 7 दिन में पौधे उग जाते हैं। 20 दिन बाद पौधों के आसपास की मिट्टी भुरभुरी करें और  पौधे से 4 इंच की दूरी बनाते हुए यूरिया 20 ग्राम डालें और सिंचाई करें। पौधे में चार पांच पत्ते आ जाएं तब एपिकल बड (फुनगियां) तोड़ दें। कुछ ही दिनों में नई शाखाएं निकल आएंगी और फैलने लगेंगे। जब यह शाखाएं 1 - 1 फीट की हो जाए तब पुनः इनके शीर्ष कलिकाओं को तोड़ दे। इसके बाद जो भी शाखाएं उत्पन्न होंगी उनमें अधिक संख्या में फल आएंगे और ज्यादा उत्पादन होगा। इस तकनीक का उपयोग  बड़े पैमाने की खेती में भी किया जा सकता है किंतु इसमें लेबर कॉस्ट अधिक आने की संभावना है।

आय-व्यय : एक हेक्टेयर क्षेत्र में लौकी की खेती के लिए बहुत अधिक निवेश की जरूरत नही है। जोताई, खाद, उर्वरक, पेस्टीसाइड, लेबर कंपोनेंट, मचान इत्यादि के ढांचे और बीज को मिलाकर लगभग 55 से ₹60,000 निवेश होते हैं। यदि स्वयं अपने परिवार के सदस्य सहित परिश्रम करें तब लेबर कंपोनेंट पर खर्च 20,000 से घटकर 10,000 रुपए हो जाएगा। इसी प्रकार यदि बांस इत्यादि अपने पास पर्याप्त रूप से उपजा हो तो इंफ्रास्ट्रक्चर कंपोनेंट पर खर्च भी घट जाएगा । ऐस्टीमेटेड उत्पादन प्रति हेक्टेयर 125 से लेकर 160 क्विंटल तक आंका गया है। अपनी मेहनत बुद्धि और तकनीकों के प्रयोग से इसे और अधिक बढ़ाया जा सकता है। यदि एक कद्दू 2:00 से 2:30 किलोग्राम वजन का हो तो कम से कम 6000 से लेकर 6500 फल प्राप्त होंगे। ₹20 प्रति फल थोक में बेचने से 1,20,000 रुपए से लेकर 1,30,000 रुपए तक प्राप्ति होगी। इस प्रकार ग्रॉस इनकम एक सौ प्रतिशत होती है। इससे बढ़िया खेती क्या होगी बशर्ते आपके पास उपयुक्त एवं पर्याप्त भूमि हो।


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