कोरोना मरीज की देखभाल होम आइसोलेशन में कैसे करें



 पिछले आलेख में आपने जाना कि होम आइसोलेशन का पालन करते हुए घर में किस प्रकार रहे। रहन-सहन,संयम-नियम,आहार और मानसिकता के संदर्भ में यथा सम्भव संक्षिप्त व सटीक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। दवाओं के दुष्प्रभाव और उनके सेवन से बढने वाली मृत्यु दर को देखते हुए इस नये आलेख के सृजन की आवश्यकता महसूस हुई। 

■ यद्यपि विभिन्न प्रान्तों की सरकारें संक्रमण दर में गिरावट के आंकड़े पेश कर रही हैं जैसे बिहार में मात्र 3.11%  बताया गया है तथापि वास्तविक स्थिति कुछ और ही है। इसीलिए लाकडाऊन बढाने की चर्चा सत्ता के गलियारों में चल रही है। दूसरी तरफ म्यूकर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) को भी 22 मई को महामारी अधिनियम 1897 के तहत पैन्डेमिक घोषित कर दिया गया है। इसके मामले न केवल शहरों में बल्कि गावों में भी समान रूप से उजागर हो रहे हैं। अब इसकी मानिटरिंग एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम ( ISDP) द्वारा की जायेगी। 

■ इसी क्रम में एक दूसरा कोरोना follow up रोग उभरने लगा है,जिसे व्हाइट फंगस कहा जा रहा है। इसका भी मूल कारण कमजोर इम्यूनिटी या कोरोना से कमजोर हुई इम्यूनिटी बताया गया है। वास्तव में यह एस्पर्जिलस जीनस के सैकड़ों फफून्दो(moulds) में से एक का संक्रमण है। डाक्टर लोग इस रोग को एस्पर्जिलोसिस भी कह रहे हैं और कम घातक बताते है। इसके लक्षणों में सबसे प्रमुख है शरीर, जीभ,मुँह पर सफेद चकत्ते उभरना।ब्लैक फंगस जहाँ शरीर के अंदरूनी हिस्से को रुग्ण करता है वहीं व्हाइट फंगस सामान्यतः शरीर के बाहरी हिस्से को प्रभावित करता है। ब्लैक फंगस के इलाज में सर्जरी की आवश्यकता पड सकती है मगर व्हाइट फंगस के इलाज में सर्जरी की आवश्यकता नहीं पड़ती। 

■ एक रोचक तथ्य : संसार के कुल साइट्रिक एसिड उत्पादन का 99% हिस्सा केवल एस्पर्जिलस नाइजर नामक फंगस के द्वारा होता है। केवल 1% उत्पादन नींबू और नींबू वर्गीय(citrus) फलों से होता है। 

■ एक कटु सत्य : आज जो भी महामारी इत्यादि फैल रही है वह मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ की जाने वाली स्वार्थपूर्ण छेडछाड का नतीजा है। 

■ कोरोना सीज़न-1यानि वर्ष 2020 में सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के लाइफ टाईम स्टूडेंट्स द्वारा वायरल तथाकथित प्रतिरोधक या होम्योपैथिक वैक्सीन आर्सेनिक था। यह सीज़न-2 में भी वायरल है। यह सब देखकर स्वर्गीय हैनीमैन साहब की आत्मा जरूर रो रही होगी। यह एक गलत सलाह है ।इसके चक्कर में न पड़ें। 

■  होम आइसोलेशन का पालन करते हुए भी स्वच्छता का ध्यान रखें। कमरा, कपड़े, शरीर और खाना-पानी की स्वच्छता का विशेष रूप से ख्याल रखा जाना चाहिए। 

■ कोरोना सीज़न-2 में एस्पिडोस्पर्मा-Q का प्रचार चल रहा है। लोग 60-60 मिली की 4-4,5-5 शीशियाँ खरीद कर स्टाक कर रहे हैं। कालाबाजारी हो रही है,जिस प्रकार ऑक्सीजन सिलेंडर की होती है। दरअसल जिस कोरोना रोगी को सांस लेने में तकलीफ हो,ऑक्सीजन लेवल कम हो गया हो और तत्काल ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध न हो तो एस्पिडोस्पर्मा के सेवन से फायदा होता है। यह सांस में खींची गई हवा में से अपनी जरूरत के अनुसार ऑक्सीजन अवशोषित करने की क्षमता को बढ़ाने का काम करती है। इससे रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है और रोगी का हाँफना व सांस के लिए छटपटाना बंद हो जाता है। यह एक प्राण रक्षक औषधि है, स्थायी समाधान नहीं। स्थायी समाधान पाना है तो योग्य होम्योपैथ से सम्पर्क कर सकते हैं। 

■ एलोपैथिक पद्धति में अबतक कोरोना या कोविड19 की कोई सटीक (appropriate) दवा नहीं है। यह एक अकाट्य सत्य है। जो कुछ भी इलाज अस्पतालों में किया जा रहा है वह रोग के बजाय अलग-अलग लक्षणों का इलाज है। नतीजा लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी जिन्दगी से हाथ धो लेना।हम 2020 से ही रैमडेसीवीर जैसी दवाओं के निरर्थक प्रयोग और जानलेवा प्रभाव के बारे में लोगों को आगाह करते रहे हैं। देर से ही सही बिहार सरकार की आँखे खुली तो सही। पटना के कुछ बडे अस्पतालों की शिकायत पर सरकार ने रैमडेसीवीर दवा की जाँच के आदेश दे दिए हैं।




ऐसी ही सच्चाई बयां करने के बाद अगले ही दिन रामदेव जी को बयान वापस लेना पड़ा है। सुना है सरकार में  कोई मंत्री हैं डाक्टर हरसबरधन,उन्हें घोर आपत्ति है कि एलोपैथी की बेइज्जती हो गई। अरे भाई रोग तो लक्षण समूह से भी गहरी और उँची चीज है। दम है तो रोग का इलाज ढूँढो फिर अधिकारपूर्वक रोगी को घेर कर रखना। लक्षणों के अनुसार ही चिकित्सा करनी है तो क्या होम्योपैथी खराब है। यह तो सम्यक् लक्षणों के आधार पर चयनित दवा से आरोग्य करती है। 

■ याद रखें : 96°F - 98°F शारीरिक तापमान को बुखार नहीं समझा जाता है। यह नार्मल ताप है। 99°F से 100°F के  बीच हल्का ज्वर माना जाता है। इस स्थिति में डाक्टर लोग दिन में 2-3 बार पेरासिटामोल खिला रहे हैं। इस प्रिस्क्रीप्शन को हाई फीवर के लिए बचा कर रखिये, अगर जीवित रहने की चाह है। विश्वास कीजिए नये अनुसंधान कुछ ही दिनों में मेरी सलाह की पुष्टि करेंगे। 

■ अब हम चर्चा करेंगे उन होमियोपैथिक दवाओं की जो सेफ हैं। कोरोना मरीजों के यथार्थ लक्षण समुच्चय से सम्यक् रूप से मेल खाने वाली इन दवाओं का प्रयोग कर सफल चिकित्सा की गई है। 


(1) ब्रायोनिया एल्बा-30 : एक रिसर्च प्रोजेक्ट के तहत आगरा के डाक्टर प्रदीप गुप्ता ने 50 कोरोना पाजिटिव रोगियों को उनके common symptoms के आधार पर  केवल ब्रायोनिया देकर 3-5 दिन में चंगा कर दिया। मगर जरूरी नहीं कि हर रोगी इसी दवा से ठीक हो जाए। परिवर्तनशील लक्षणों के अनुसार अन्य दवाओं की भी जरूरत पड़ सकती है। बुखार आने से पहले नासा-रंध्र शुष्क लगे,छींक आये, गले में खराश या दर्द हो, फिर धीरे-धीरे शरीर का ताप बढ़े,खुली हवा की चाह,हरकत से तकलीफ बढ़े और विश्राम से घटे तो ब्रायोनिया एल्बा की कुछ खुराकें देकर देखें। यह रोग को शान्त कर शरीर को राहत प्रदान करेगी। 

(2) बेलाडोना-30 : इसका प्रयोग तब करें जब आँखे  लाल,सिरदर्द, आँखों से पानी आना,तेज बुखार, जलन,मुँह-गला सूखने पर पानी पीने से घृणा, प्रकाश-शोर-स्पर्श से घृणा, सूखी खाँसी, डिसेन्ट्री इत्यादि लक्षणों का समूह मिले।4-4 घंटे पर एक बूँद दे सकते हैं। 



(3) इपिकाक-30 : उल्टियाँ, जी मिचलाना, सिरदर्द, बुखार, जीभ लाल या साफ,फेफड़ों में बलगम जमा हो और न निकलता हो,सुखी खाँसी हो तब इपिकाक-30 सुबह-शाम दो-तीन दिन तक सेवन करायें। 

(4) मैग्नीशिया म्योर-6 : मुँह-गला सूखता हो,नाक बंद या पनीला स्राव,गंधलोप, स्वादलोप, जुकाम के जैसे अन्य लक्षण, श्वास लेने में परेशानी, मुँह से सांस लेना पडता हो,भूख कम या बिलकुल न लगे,सूखी खाँसी, रात में लक्षण वृद्धि, छाती में दर्द, जलन,पीठ-नितम्बों और बाहों में अंदर की तरफ खीचने जैसा दर्द हो तो मैग म्यूर-6 हर 4 घंटे पर सेवन करायें। शर्तिया लाभ होगा। इसके अलावा भी बहुत सी दवाएं हैं जो लक्षणों के अनुसार अनुभवी चिकित्सकों द्वारा प्रयुक्त की जा सकतीं हैं। 

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