कोरोना एक वायरसजन्य संक्रमणीय बीमारी है जिसे डब्ल्यू एच ओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) और विभिन्न देशों की स्वास्थ्य नियामक इकाइयों ने महामारी (epidemic) घोषित किया है और मजे की बात यह है कि WHO की वेबसाइट पर पहले से दी गई 'महामारी' की परिभाषा के अनुसार यह महामारी है हीं नहीं। भारत में महामारी की आड़ में आपातकालीन विशेष प्रावधानों से युक्त एक प्रकार की 'इमरजेन्सी' लागू कर दी गई और नाम दिया गया 'लाकडाऊन'।पुलिस के बल बूते ऐसे प्रोटोकॉल लागू किये गये जिनसे अफरा तफरी, दहशत और प्रबल असुरक्षा का माहौल क्रिएट हो गया। करोड़ों लोगों को अपने रोजी-रोजगार छोड़ कर हजारों किलोमीटर पैदल, साईकिल, छोटी गाड़ियों से भूखे-प्यासे अपने मूल निवास स्थानों की तरफ माइग्रेट करना पड़ा।
नतीजा :- हजारों आदमी बीमारी के बजाय दुर्घटनाओं, विषम परिस्थितियों और हृदयहीन शासन के हाथों अपनी जान गवां बैठे।
ICMR द्वारा बताया गया कि जबतक प्रभावी वैक्सीन उपलब्ध नहीं हो जाता, तबतक वायरस के प्रसार और संक्रमण को रोकने के लिए निम्न गाइडलाइन का पूरी निष्ठा से पालन किया जाना जरूरी है - ● भौतिक दूरी/सोशल डिस्टेन्सिङ्ग(2गज की दूरी)
●कार्यस्थलो व जनसंकुल जगहों पर नाक-मुंह को ढकने वाले मास्को का प्रयोग
●साबुन से हाथ धोना,हेन्डिन रब,सैनेटाईजर का उपयोग
● चबाने योग्य धुआंरहित तम्बाकू के सेवन से और जहाँ तहाँ रूकने से बचना बहुत जरूरी है।
●संतुलित आहार, शारीरिक सक्रियता, व्यायाम भी अत्यंत आवश्यक है।
इन उपायों में से व्यक्ति से व्यक्ति की दूरी कम से कम 2 गज बनाए रखना पूरी तरह से वैज्ञानिक व व्यवहारिक है। साबुन से हाथ भी जरूरी है जब आप वायरस के संभावित स्रोत/सतह को छूते हैं। ये संभावित स्रोत करेन्सी नोट,सिक्के, दरवाजे के हैन्डल,बस,ट्रेन, ऑटो के पकडने योग्य हिस्से, दुकानों के काउंटर इत्यादि हो सकते हैं। यद्यपि मास्क के छिद्रों का आकार और वायरस का आकार कुछ इस अनुपत में होता है कि वायरस के लिए कोई रोक-टोक नहीं है। अर्थात मास्क व्यवहारिक रूप से बहुत कारगर निरोधक नहीं है ।उल्टे मंद सांस, दमा,खाँसी, क्रोनिक ब्रोन्को-न्यूमोनिया, हृदयरोग वाले लोगों के लिए कष्ट बढाने वाले साबित होते हैं। बावजूद इसके पुलिस का एकमात्र लक्ष्य बिना मास्क वाले लोगों को डंडे मारकर 'कोरोना वारियर' का तमगा हासिल करना रहता है। यानि मास्क कोरोना से बचाए या न बचाए, पुलिस के डंडे से जरूर बचा सकती है।
अंत में इतना जरूर कहना है कि मीडिया, सोशल मीडिया से पढ-सुनकर तथाकथित प्रतिरोधक/प्रतिषेध दवाओं का सेवन बिलकुल न करें। कोविड-19 से बचने के इतने ही उपाय सामान्यतः काफी हैं। अधिक व अद्यतन जानकारियों से लिए हमारे साथ बने रहें और ब्लॉग को सब्सक्राइब करें। कोरोना,सोशल डिस्टेन्सिङ्ग
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