आधुनिकता के दौड़ में दुनिया सरल से जटिल, सादगी से विलासिता की ओर अग्रसर है। विभिन्न वैज्ञानिक आविष्कारों, तकनीक के उपयोग से जीवन को आरामदेह और सहज बनाने में मदद मिली है। परन्तु किसी भी चीज की अति अच्छी नहीं होती है। विकास के बेलगाम रथ पर सवार तथाकथित सभ्य समाज की जो रोजाना की जीवन शैली संघटित हुई है वो कुछ ज्यादा ही असंतुलनकारी साबित हो रही है। उच्च पोषक मानकों के अनुरूप और अच्छा भोजन गटकने के बावजूद स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। ढीला शरीर, मोटा पेट,झुके कंधे, गंजी खोपड़ी, डायबीटीस-ब्लडप्रेशर से पीड़ित हांफता काँपता शरीर और चिता-तनावयुक्त अन्यमनस्क चिड़चिड़ा दिमाग लिए घूम रहा है आज हर इन्सान। कैंसर, हृदय रोग, मनोविकार जैसे विरल रोगों से ग्रसित होने वालों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
क्या हैं इन सब विसंगतियों के मूल में?
क्या आपने कभी सोचा है?
यदि नहीं सोचा तो अब सोंच लीजिए।
क्योकि सवाल आपकी जिन्दगी का है।
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