Celery in Hindi

सेलरी यानि अजमोद(Apium graveolens) भूमध्यसागरीय और मध्य पूर्व क्षेत्रों का मूल निवासी है। प्राचीन ग्रीस और रोम में इसके उपयोग का इतिहास मिलता है।आजकल यूरोप और अमेरिका में सब्जी सलादऔर सूप के रूप  में यह प्रचलित है।इसके पत्ते धनिया के पत्तों जैसे दिखते हैं किंतु इसके डंठल मांसल लंबे और विकसित होते हैं जबकि धनिया धनिया पत्ती के डंठल पतले और कमजोर होते हैं।स्वाद और सुगंध में भी यह धनिया से बिल्कुल अलग है।यह स्वाद में हल्का साल्टी और क्रंची होता है जबकि धनिया के पत्तों में तीखी विशिष्ट स्वाद और सुगंध होती है । भारत में भी अब कुछ पश्चिमी प्रभाव वाले क्षेत्र एवं ठंडे पर्वतीय स्थलों में इसे उपजाया और भोजन में शामिल किया जाने लगा है। भारत के हाई प्रोफाइल फैशनेबल लोग जिनकी पॉकेट में काफी पैसा है वह इसके संभावित ग्राहक हो सकते हैं। यानी सैलरी की खेती में अच्छी कमाई की जबरदस्त संभावना है।अभी बहुत लोग इससे परिचित भी नहीं है इसलिए अभी मौका है क्योंकि मोटी कमाई किसी काम में शुरुआत में ही होती है।इसका प्रचलन हो जाएगा तो मूल्य भी घट जाएगा।

                                  तो आईए जानते हैं इसकी खेती के तौर तरीके और फायदे : 

उपयुक्त परिस्थितियां

  1. ठंडा मौसम 

  2. हल्की क्षारीय मिट्टी जिसका pH मान 6 से 6.5 के बीच हो 

  3. मृदा में नमी हो किन्तु जल जमाव की संभावना नहीं रहे 

  4. जीवांश युक्त मृदा 

बीज 🙂 उच्च गुणवत्ता के अंकुरण सक्षम बीजों का प्रयोग करें। इसके लिए पहले तो स्थानीय विक्रेताओं से संपर्क करें। यदि न मिले तो किसी ऑनलाइन इ-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से विश्वस्त सेलर देखकर खरीदें। केवल कीमत से कोई राय बनाने की बजाय उपभोक्ताओं के रिव्यू भी देखें।

नर्सरी : खूब अच्छी तरह तैयार नमी और ह्यूमसयुक्त मिटटी वाली नर्सरी बेड बनायें। सतह से 1/8 इंच गहराई में बीजों को बोयें। चूँकि इसके बीज बहुत छोटे होते हैं इसलिए ज्यादा गहराई में बोने पर उग नहीं पाएंगे। 

रोपण : जब नर्सरी में पौधे तीन-चार पत्तों के हो जाएँ तो इनका प्रत्यारोपण 12" अंतराल वाले कतारों में 8" - 8" दुरी पर करें। प्रत्यारोपण के दौरान प्रत्येक पौधे की हल्की सिंचाई अवश्य करें।

सिंचाई : 15 दिन बाद से आवश्यकतानुसार हलकी सिंचाई करें।

उपरिवेशन : प्रत्येक सिंचाई के बाद नाइट्रोजन युक्त  उर्वरक से उपरिवेशन करें।

मिट्टी चढ़ाना (healing) : सिंचाई और उपरिवेशन के 5 - 7 दिन बाद  निराई और पौधों की जड़ों के चारो और मिट्टी चढ़ाना जरुरी है। 

ब्लैंचिंग : कटाई से 2 - 3 सप्ताह पूर्व कागज से डंठलों को लपेट कर बांध दें। इससे सीधे प्रकाश से बचाव होगा और कोमलता बढ़ने के साथ कड़वाहट में कमी आएगी। 

कटाई (harvesting) : रोपण के 85 से लेकर 120 दिन बाद से कटाई की जा सकती है।  डंठल काटने के कुछ दिन बाद पुनः नए डंठल और पत्ते आ जाते हैं। इसलिए हार्वेस्टिंग अनेक बार की जा सकती है। 


भोजन में अजमोद (celery ) को शामिल करने के फायदे : 

हृदय को स्वस्थ रखने में सहायक 

पाचन तंत्र को मदद करता है। 

याद्दाश्त को बूस्ट करता है। 

सूजन कम करता है।  

वजन कम रखने में सहायक

रक्त शर्करा नियंत्रण में सहायक                                      


किसे नहीं लेना चाहिए : 

 इसमें ऑक्सेलेट्स पाए जाते हैं जो किडनी स्टोन एवं किडनी से सम्बंधित रोगों से पीड़ित लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है।

Irritable Bowel Syndrome = IBS से पीड़ित लोगों के लिए भी यह ज्यादा उपयुक्त नहीं है।  

कुछ लोगों को इससे एलर्जी हो सकती है। जैसे छींके ,नाक बहना , मुँह और जीभ में खुजली इत्यादि। 



How to grow Dragon Fruit in India? | ड्रैगन फ्रूट उगा कर लाखों रुपए कमायें

 ड्रैगन फ्रूट, जिसे पिटाया या पिटाहया के नाम से भी जाना जाता है, मध्य अमेरिकी मूल का फल  है, विशेष रूप से मैक्सिको, ग्वाटेमाला, निकारागुआ, कोस्टा रिका, अल साल्वाडोर और होंडुरास के क्षेत्रों से। आज, इसकी खेती दक्षिण पूर्व एशिया और इज़राइल सहित दुनिया के अन्य हिस्सों में भी की जाती है।



*आहारीय महत्त्व*


1.पोषक मान :  ड्रैगन फ्रूट आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर है। इसमें विटामिन सी, विटामिन बी (जैसे बी1, बी2, बी3) जैसे विटामिन और आयरन, कैल्शियम और फास्फोरस जैसे खनिज होते हैं। यह आहारीय फाइबर का भी अच्छा स्रोत है, जो इसे पाचन के लिए फायदेमंद बनाता है।


2. लो कैलोरी : ड्रैगन फ्रूट में कैलोरी कम होती है, जिससे यह उन लोगों के लिए एक स्वस्थ विकल्प है जो अपना वजन नियंत्रित करना चाहते हैं। एक कप ड्रैगन फ्रूट में लगभग 60-70 कैलोरी होती है, जो इसे हानिरहित  नाश्ता बनाती है।


3. एंटीऑक्सीडेंट गुण : यह फल अपने उच्च स्तर के एंटीऑक्सीडेंट के लिए जाना जाता है, जो शरीर में फ्री रैडिकल्स से लड़ने में मदद करता है। माना जाता है कि एंटीऑक्सिडेंट कुछ प्रकार के कैंसर सहित पुरानी बीमारियों के जोखिम को कम करने में भूमिका निभाते हैं।


4. हाइड्रेशन : ड्रैगन फ्रूट में पानी की मात्रा अधिक होती है, जो इसे हाइड्रेटिंग और ताज़ा बनाता है, खासकर गर्म मौसम में।


 आर्थिक महत्व 


1. निर्यात और व्यापार : ड्रैगन फ्रूट कई देशों में एक मूल्यवान नकदी फसल है। इसकी लोकप्रियता से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हुई है, जिससे फलों की खेती और निर्यात करने वाली अर्थव्यवस्थाओं को लाभ हुआ है। वियतनाम, थाईलैंड और मलेशिया जैसे देश प्रमुख निर्यातक हैं।


2. रोजगार : ड्रैगन फ्रूट की खेती और उसके बाद का प्रसंस्करण स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करता है। खेती और कटाई से लेकर पैकेजिंग और परिवहन तक, ड्रैगन फ्रूट उद्योग विभिन्न क्षेत्रों में नौकरियां पैदा करता है।डिमांड के अनुरूप  भारत में अभी इसका उत्पादन नहीं हो रहा है। इसलिए यह मूल्यवान है और खेती की दृष्टि से अत्यंत लाभ का धंधा है। बिहार का एक युवा १ एकड़ में इसकी खेती कर १० लाख रुपये सालाना कमा रहा है। एक बार प्लांटेशन करने के बाद २५ से ३० वर्षों तक हलके - फुल्के मेंटेनन्स के सहारे लगातार उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। 


3. कृषि का विविधीकरण : कई देशों के लिए, ड्रैगन फ्रूट कृषि उत्पादों के विविधीकरण का प्रतिनिधित्व करता है। इसे शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उगाया जा सकता है जहां अन्य फसलों की खेती करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। यह विविधीकरण किसानों के लिए जोखिम प्रबंधन में मदद करता है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थिर करता है।


4. पर्यटन : ड्रैगन फ्रूट के खेत अक्सर पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। कृषि-पर्यटन, जहां आगंतुक ड्रैगन फ्रूट के खेतों का दौरा कर सकते हैं, खेती के बारे में सीख सकते हैं और ताजा उपज का स्वाद ले सकते हैं, पर्यटन से संबंधित गतिविधियों के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।


5. स्वास्थ्य संबंधी उपयोगिता : स्वास्थ्यवर्धक भोजन के रूप में ड्रैगन फ्रूट की प्रतिष्ठा के कारण इसे जूस, स्मूदी और आहार अनुपूरक जैसे विभिन्न उत्पादों में शामिल किया गया है। इसने बाजार में एक जगह बना ली है, जिससे फलों का आर्थिक मूल्य बढ़ गया है।


संक्षेप में, ड्रैगन फ्रूट मानव पोषण और आर्थिक समृद्धि दोनों के संदर्भ में महत्व रखता है, जिससे उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और इसकी खेती और व्यापार में शामिल किसानों और समुदायों की आजीविका को लाभ होता है।






भारत के मैदानी इलाकों में ड्रैगन फ्रूट की खेती संभव है, खासकर गर्म और शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में।तो आइये जानते हैं  ड्रैगन फ्रूट की खेती की बेसिक विधि :


1. सही किस्म का चयन :

     अपनी जलवायु के लिए उपयुक्त ड्रैगन फ्रूट किस्म चुनें। हिलोसेरियस अंडैटस (सफ़ेद गूदे वाली किस्म) और हिलोसेरियस कोस्टारिकेंसिस (लाल गूदे वाली किस्म) भारत में उगाई जाने वाली आम किस्में हैं।


2. साइट चयन :

     ड्रैगन फ्रूट के पौधों को अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और भरपूर धूप की आवश्यकता होती है। रेतीली या दोमट मिट्टी वाली जगह चुनें जिसमें पानी जमा न हो।चूँकि यह एक जीरोफाइट है इसलिए शुष्क जलवायु और बलुई मिट्टी में आसानी से ग्रो कर सकता है। क्षेत्र को प्रतिदिन कम से कम 6-8 घंटे सीधी धूप मिलनी चाहिए।


3. मिट्टी तैयार करना :

     कम्पोस्ट या अच्छी तरह सड़ी हुई खाद जैसे कार्बनिक पदार्थ डालकर मिट्टी तैयार करें। इससे मिट्टी की उर्वरता और जल निकासी में सुधार होता है। ड्रैगन फ्रूट के पौधे थोड़ी अम्लीय से तटस्थ मिट्टी पीएच (लगभग 6 से 7) को पसंद करते हैं।


4. ड्रैगन फ्रूट कटिंग का रोपण :

     ड्रैगन फ्रूट आमतौर पर कलमों से उगाया जाता है। किसी विश्वसनीय स्रोत से स्वस्थ कटिंग प्राप्त करें।लोकल नर्सरी में कटिंग्स मिल जाये तो ठीक है वरना कई ऑनलाइन प्लैटफॉर्म्स पर इसके पौधे,बीज और कट्टिंग्स उपलब्ध हैं। कटिंग को तैयार मिट्टी में रोपें, समर्थन के लिए जमीन के ऊपर एक हिस्सा छोड़ दें। वर्ष के गर्म महीनों के दौरान कटिंग लगाना सबसे अच्छा है।यद्यपि ड्रैगन फ्रूट के बीज से भी आसानी से पौधा उगा सकते हैं किन्तु इस तरह फल आने में ३-५ वर्ष का समय लग जाता है।


5. समर्थन संरचनाएँ :

     ड्रैगन फ्रूट के पौधे आरोही होते हैं। प्रत्येक पौधे के चारों ओर जाली या कंक्रीट के खंभे जैसी सहायक संरचनाएँ प्रदान करें। जैसे-जैसे पौधा बढ़ता है, उसे चढ़ने में मदद करने के लिए उसकी टेंड्रिल्स को सहारा देकर निर्देशित करें।


6. पानी देना :

     ड्रैगन फ्रूट के पौधों को नियमित रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है, खासकर शुष्क अवधि के दौरान। हालाँकि, यह महत्वपूर्ण है कि ज़्यादा पानी न डालें, क्योंकि वे जड़ सड़न के प्रति संवेदनशील होते हैं। ड्रिप सिंचाई प्रणाली फायदेमंद हो सकती है, जो मिट्टी में जलभराव के बिना लगातार नमी सुनिश्चित करती है।


7. 

     सूक्ष्म पोषक तत्वों से युक्त संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें। मिट्टी की उर्वरता में सुधार के लिए खाद जैसे जैविक उर्वरकों को भी समय-समय पर डाला  जा सकता है।


8. कीट एवं रोग प्रबंधन :

     एफिड्स और माइलबग्स जैसे सामान्य कीटों पर नज़र रखें। इन कीटों को नियंत्रित करने के लिए नीम के तेल या कीटनाशक का उपयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, पौधों के बीच उचित दूरी और अच्छे वायु प्रवाह से फंगल रोगों को रोका जा सकता है।


9. कांट-छांट :

     मृत या रोगग्रस्त शाखाओं को हटाने के लिए पौधे की नियमित रूप से छँटाई करें। छंटाई पौधे के आकार को बनाए रखने में भी मदद करती है और फूल और फलने को बढ़ावा देती है।


10. कटाई :

     ड्रैगन फ्रूट के पौधे आमतौर पर रोपण के एक या दो साल के भीतर फलना शुरू कर देते हैं। जब फल पूरी तरह रंगीन हो जाए और छूने पर थोड़ा नरम हो जाए तो उसकी तुड़ाई करें। अधिक पके फल पौधे से गिरने लगते हैं।


इन चरणों का पालन करके और उचित देखभाल प्रदान करके, भारत के मैदानी क्षेत्रों में ड्रैगन फ्रूट की खेती सफल हो सकती है, जिससे उत्पादकों को एक मूल्यवान और पौष्टिक फसल मिलेगी।



Winter vegetables in India

 यद्यपि भारत एक जैविक एवं भौगोलिक विविधताओं वाला देश है जहां एक ही समय भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न जलवायु संबंधी परिस्थिति हो सकती हैं।किंतु उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में अभी शरद ऋतु का  प्रादुर्भाव हो चुका है और यह नई फसल बोने  के लिए एक बेहतर समय है।सर्दियां आने वाली है।बरसात खत्म होने के बाद अब खेतों में पानी प्राय सूख चुका हैऔर सरसों सहित शीतकालीन फसल बुवाई की तैयारी जारी है। खास तौर पर शरदकालीन सब्जियों की बुवाई भी सितंबर-अक्टूबर माह में सबसे उपयुक्त मानी जाती है।यह आलेख न केवल शौकिया तौर पर किचन गार्डनिंग करने वालों के लिए बल्कि व्यावसायिक पैमाने पर सब्जी उत्पादन के लिए भी अत्यंत उपयोगी है।


यहाँ कुछ सामान्य स्टेप्स हैं जो आपको सर्दियों की सब्जियाँ उगाने में मदद कर सकते हैं:

  • बीज़ चुनाव: सबसे पहला कदम है सही बीज़ का चयन करना। उच्च गुणवत्ता वाले और स्थानीय बीज़ चुनना शुभ रहता है।

  • खेत की तैयारी: एक अच्छी खेत की तैयारी जैसे कि उपजाऊ मिट्टी, उर्वरक, और खाद्य सामग्री का सही समय पर इस्तेमाल करना जरूरी है।

  • सिंचाई और जल संचयन: सिंचाई की अच्छी प्रणाली बनाना जरूरी है। समय पर सिंचाई करना और जल संचयन की सुविधा उपलब्ध कराना महत्वपूर्ण है।

  • रोग और कीटनाशकों का प्रबंधन: सर्दियों की सब्जियों को कीटों और रोगों से बचाने के लिए निर्दिष्ट  और जैविक उपायों का पालन करना चाहिए।

  • सही समय पर विपणन : सब्जियों का उत्पादन होने पर सही समय पर उन्हें बेचना या हार्वेस्टिंग महत्वपूर्ण है।


जाड़े में कई प्रकार की सब्जियाँ भारत में उगाई जा सकती हैं जो किसानों को प्रॉफिट कमाने में मदद कर सकती हैं। जाड़े में उगाने वाली कुछ सुरक्षित और लाभकारी सब्जियाँ निम्नलिखित हो सकती हैं:

  • गोभी (Cauliflower): गोभी जाड़े में उगाने के लिए अच्छी होती है और अगर आप इसकी सही खेती करते हैं तो यह अच्छा प्रॉफिट दे सकती है।किंतु श्रम संसाधन एवं पूंजी का निवेश इसमें कुछ अधिक होता है।अच्छा मुनाफा कमाना है तो निवेश करना पड़ेगा।अगस्त माह में नर्सरी में लगाए गए सीड्स से जो पौधे तैयार हो गए हैं उन्हें अक्टूबर तक खेतों में लगाया जा सकता है। तैयार पौधों को50 सेमी ×50 सेमी की दूरी पर लगाना चाहिए। जो बीज अक्टूबर महीने में नर्सरी में बोया जाएगा वह रोपाई के लिए नवंबर में तैयार होगाऔर नवंबर के अंत में खेतों में 50 सेमी × 50 सेमी की दूरी  पर लगाया जाएगा।सड़ी हुई गोबर की खाद 4 क्विंटल /कट्ठा ,NPK उर्वरक 6 किलोग्राम /कट्ठा खेत की तयारी के समय डालें।




  • शलरी (celery): शलरी की खेती भी ठंडे में की जा सकती है और इससे अच्छा प्रॉफिट किया जा सकता है।हिंदी में इसे अजमोद कहते हैं। यह भारत केग्रामीण क्षेत्रों में कम प्रचलित है किंतु नगरों एवं महानगरों में इसकी मांग है।क्योंकि यह एक विदेशी मूल की सब्जी है जिसे भारत में भी शीत ऋतु में उपजाया जा सकता है।इसे खेतों,किचन गार्डन अथवा गमले में भी लगाया जा सकता है।स्थानीय स्तर पर इसके बीज उपलब्ध न हो तो यहां से लें

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  • गाजर (Carrots): गाजर का उत्पादन ठंडे में किया जा सकता है और यह एक लाभकारी सब्जी हो सकती है।इसकी खेती मध्य अक्टूबर से नवंबर तक कर सकते हैं। प्रति हेक्टेयर 5 किलोग्राम बीज़ की जरूरत होती है। खाद एवं उर्वरक मूली के समान ही दें और मृदा का चयन भी उसी के समान करें।


  • मूली (Radish): मूली की खेती भी जाड़े में की जा सकती है और यह जल संचारित जगहों में अच्छा उत्पादन दे सकती है।बीज़ 4.5 kg/हेक्टर और कंपोस्ट 150 क्विंटल/हेक्टर के अतिरिक्त एनपीके खाद दो क्विंटल प्रति हेक्टेयर डालें।इसकी हरवेस्टिंग 45 से 60 दिन के बीच कर ली जाती है। मतलब यह कि उखाड़ कर बेचने के लिए टोटल 15 दिन का समय मिलता है।


  • मटर (Peas): मटर की खेती भी ठंडे में की जा सकती है और यह भारत में बड़े पैमाने पर उत्पादन की जाती है।इस अक्टूबर से नवंबर तक बो सकते हैं ।इसे कतार से  कतार 30 सेमी और पौधे से पौधा 15 सेमी की दूरी पर लगाना चाहिए। इसमें अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है ,बुवाई के एक माह बाद एक या दो सिंचाई कर सकते हैं।इंडियन क्यूज़ीन में बहुत सारी वेजिटेबल रेसिपीज मटर से संबंधित है जैसे मटर पनीर।इसलिए सीजन में इसकी काफी डिमांड रहती है।


  • सरसों का साग (Mustard Greens): सरसों की पत्तियाँ भी जाड़े में उगाई जा सकती हैं और यह भारतीय रसोई में बड़े पसंद की जाती हैं।देहात में इसका कोई आर्थिक मूल्य नहीं है।सामान्य रूप से कोई भी किसी के खेत से बथुआ के साथ सरसों के घने पौधों में से कमजोर पौधों को चुनकर उखाड़ लेता हैकिंतु शहरों में सरसों की साग एक फैशन है और फैशन के लिए भुगतान करना पड़ता है। एक मुट्ठी सरसों की साग उतने ही पालक के मुकाबले महँगी  है।इसलिए शहर से10 - 15 किलोमीटर दूरी के देहात में यत्र- तत्र बाकायदा सरसों के साग की खेती होने लगी है।अगर आपके खेत शहर से 20 किलोमीटर के रेंज में है तो सरसों की खेती करकेऔर साग बेचकरअच्छा पैसा कमा सकते हैं।


  • पालक (Spinach): पालक भी जाड़े में उगाई जा सकती है ।यह स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होती है।इसकी खेती के लिए एक अलग आर्टिकल हमारे वेबसाइट परउपलब्ध है ।यहाँ देखें।


  • चना (Gram) cicer arietinum : चने की साग और हरी फली बहुत ही डिमांडिंग आइटम है। अच्छे दाम मिलते हैं।आमतौर पर जहां चने की खेती नहीं भी होती है वहां बाजार में मिलने वाले चने को भिगोकर अंकुरित कर लें और नमीयुक्त भुरभुरी मिट्टी में बुवाई कर दें।उगाने के बाद समय-समय पर आवश्यकता अनुसार सिंचाई करते रहे।पौधे10 से 15 सेमी के हो जाएं तो साग के लिए कटिंग कर सकते हैं। यदि फली प्राप्त करना है तो कटिंग ना करें। हरी मटर के मुकाबले हरा चना कई गुना अधिक महंगा बिकता है। 


  • टमाटर (Tomato): टमाटर की खेती अब भारत के विभिन्न हिस्सों में सालों भर होती है मगर मैदानी क्षेत्रों में बरसात को छोड़ कर सर्दी और गर्मी में इसे उगा सकते हैं।सितंबर से अक्टूबर तक टमाटर के बीज़ नर्सरी में बोए जा सकते हैं और तैयार पौधों को खेत में अक्टूबर से नवंबर तक 45*45 सेमी दूरी पर प्लांट कर सकते हैं।स्थानीय बीज़ दुकानों से इसके बीज़ प्राप्त किये जा सकते हैं।यदि कुछ डिफरेंट करना है तो यहां दिए गए लिंक से बीज़ ले सकते हैं। 


  • सलाद (Lettuce): यह भी एक विदेशी पत्तेदार सब्जी है जिसका उपयोग सलाद,बर्गर,सैंडविच इत्यादि में होता है।खाने के शौकीन इसके लिए अच्छा मूल्य दे सकते हैं। इसे खेतों,किचन गार्डन अथवा गमले में भी लगाया जा सकता है।स्थानीय स्तर पर इसके बीज  उपलब्ध न हो तो यहां से लें













  • शलजम (Turnip): यह एक प्रचलित सब्जी है जिसे हल्की दोमट मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है और इसमें लागत भी अपेक्षाकृत कम आती है।अतः इसे लगाना फायदे का सौदा हो सकता है।मध्य अक्टूबर से जनवरी तक इसे बोया जा सकता है।खाद और उर्वरक मूली के समान ही उपयोग करें।डेढ़ से 2 किलो बीज प्रति हेक्टेयर लगता है।क्यारियां 30 सेमी की दूरी पर और इनमें बीज 20 सेमी अंतर से लगाए ।बुवाई के10 दिन बाद से सिंचाई आरंभ कर दें ; दो सिंचाईयों के बीच मृदा एवं स्थानीय वातावरण के अनुरूप 10 से 15 दिन काअंतराल रखें और फसल-कटाई के पहले तक कुल मिलाकर तीन-चार सिंचाईकर सकते हैं।




  • पत्ता गोभी (Cabbage): आजकल पत्ता गोभी सालों भर उपलब्ध रहता है किंतु जाड़े के दिनों में इसे स्वाभाविक रूप से उगाया जा सकता है।यही इसका असली सीजन है। फूलगोभी की तरह ही इसकी भी खेती में कुछ अतिरिक्त देखभाल और निवेश जरूरी होता है।मुख्य फसल और लेट वैरायटी के लिए पौधशाला में बीज़ डालने का समय पूरा अक्टूबर महीना है तथा तैयार बिचड़े को खेत में लगाने का समय नवंबर से मध्य दिसंबर तक होता है।सामान्य ग्रीन पत्तागोभी लगानी है तो स्थानीय बीज भंडारों से लें और यदि लाल या बैंगनी रंग की पत्तागोभी उगानी है तो यहां से ले। चीनी पत्ता गोभी यानी बोक चोय भी लगा सकते हैं।


  • गांठ गोबी (lump cabbage/Kohlrabi): कम लागत अधिक उपजवाली सब्जियों में इसका एक प्रमुख स्थान है।फूलगोभी के विपरीत इसमें अधिक निवेश और देखभाल की जरूरत नहीं होती।यह बहुत पौष्टिक और  स्वास्थ्याप्रद सब्जी है जिसका बाजार मूल्य सामान्यतः फूलगोभी से अधिक ही होता है।इसके सीड्स स्थानीय स्तर पर ना मिले तो यहां से प्राप्त करें। 

यदि आप किसान नहीं हैं और बिना खुद की खेती किए भी प्रॉफिट कमाना चाहते हैं, तो आप स्थानीय किसानों से सीधे उत्पादन खरीद सकते हैं और इसे बाजार में बेच सकते हैं। सही विपणन नेटवर्क बनाने से आप अच्छा प्रॉफिट कमा सकते हैं।


Crop cutting machines : suitable for small farmers

जैसा कि हम जानते हैं अब गांव में पहले की तरह पर्याप्त कृषि मजदूर नहीं मिल पाते हैं क्योंकि ज्यादातर लोग उद्योगों में काम करने के लिए तथा निर्माण स्थलों पर काम करने के लिए पलायन कर गए हैं वह बड़े शहरों में और नए बस रहे औद्योगिक नगरों में जाकर रोजगार तलाशते हैं।जबकि दूसरी तरफ बढ़ती हुई जनसंख्याके कारण भूमि पर जनसंख्या का घनत्व बढ़ता जा रहा है इस कारण जोतें छोटी होती जा रहीं हैं। इसी क्रम में बड़े किसान मध्यम में मध्यम किसान लघु में और लघु किसान सीमांत किसान के रूप में तब्दील होते जा रहे हैं जिसका परिणाम यह हुआ कि खेती में बड़े यंत्रों जिनकी कीमत बहुत अधिक है का उपयोग भौतिक एवं आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं रह गया है। बढ़ी हुई श्रम लागत और मजदूरों की कमी के कारण बहुत से किसानों ने खेती करना छोड़ दिया है और वे जमीनों को बँटाई या किराये पर उठाना पसंद करते हैं अथवा परती छोड़ देते हैं। यह सारी बातें तो केवल समस्या से संबंधित है किंतु जरूरी है इसका समाधान।अन्यथा भारत में कृषि का विकास होने की बजाय पूरी तरह विनाश हो जाएगा।
 समाधान : बदलते परिदृश्य में कॉस्ट एफिशिएंट विकल्प उपलब्ध है बस जरूरत है उनके बारे में जानने की और उनका खेती में सही ढंग से उपयोग करने की। यदि सकारात्मक सोच के साथ उपयुक्त कृषि यंत्रों का चयन कर इस्तेमाल किया जाए तो उत्पादन लागत में प्रभावीरूप से कमी आएगी और खेती मुनाफे का सौदा बन सकेगा। 
   

 फसल काटने वाली मशीनें छोटे किसानों के लिए फसल कटाई के श्रम-गहन कार्य को काफी आसान बना सकती हैं। छोटे पैमाने पर खेती के लिए उपयुक्त फसल काटने की मशीन का चयन करते समय, आपके द्वारा उगाई जाने वाली फसलों के प्रकार, आपके खेत का आकार, आपका बजट और आपके क्षेत्र में स्पेयर पार्ट्स और सेवा की उपलब्धता जैसे कारकों पर विचार करना महत्वपूर्ण है। यहां छोटे किसानों के लिए उपयुक्त कुछ फसल काटने वाली मशीनें दी गई हैं:

 मिनी हार्वेस्टर: मिनी हार्वेस्टर छोटी, हल्की मशीनें हैं जिन्हें छोटे खेतों के लिए डिज़ाइन किया गया है। वे बहुमुखी हैं और उनका उपयोग चावल, गेहूं, मक्का और अन्य विभिन्न फसलों को काटने के लिए किया जा सकता है। कुछ लोकप्रिय ब्रांडों में कुबोटा, यानमार और महिंद्रा शामिल हैं।13 से 15 लाख रुपए के बजट में मध्य किसानों के लिए 74 एचपी का मिनी कंबाइन हार्वेस्टर पंजाब के नाभा में उपलब्ध है जिससे फसल कटाई और अनाज निकालना के लिए लागत ₹1200 प्रति बीघा आती है।


 रीपर बाइंडर: रीपर बाइंडर गेहूं, जौ और जई जैसी फसलों की कटाई और बांधने के लिए उपयुक्त हैं। वे फसल काटते हैं और स्वचालित रूप से उसे बंडलों में बांध देते हैं, जिससे किसानों के लिए इसे संभालना आसान हो जाता है।ये दो तरह के होते हैं : ट्रैक्टर माउंटेड रीपर बाइंडर और रीपर बाइंडर मशीन। जिन किसानों के पास पहले से ट्रैक्टर है वे 2.6 से 3 लाख रूपये की लागत से रीपर बाइंडर इक्विपमेंट ले सकते हैं जो ट्रैक्टर से जुड़ कर संचालित होता है।जबकि सवा लाख से 5 लाख रुपये के निवेश से ऐसा रीपर बाइंडर ले सकते हैं जिसके उपयोग के लिए ट्रैक्टर की जरूरत नहीं है।इन में इंजन लगे हुए हैं जो किफायती भी हैं , उपयोग में आसान भी।

 सिकल बार घास काटने की मशीन: छोटे पैमाने पर घास या चारा फसल उगाने वाले किसानों के लिए सिकल बार घास काटने की मशीन लागत प्रभावी उपकरण हैं। वे मैनुअल या ट्रैक्टर-चालित हैं और घास और अन्य चारा फसलों को कुशलतापूर्वक काट सकते हैं।
हैंडहेल्ड ब्रश कटर: ये सीमित बजट और छोटे खेतों वाले छोटे पैमाने के किसानों के लिए आदर्श हैं। हैंडहेल्ड ब्रश कटर का उपयोग घास, खरपतवार और छोटी झाड़ियों को काटने के लिए किया जा सकता है।

 

चारा काटने की मशीन: यदि आपके पास पशुधन है और आपको चारा काटने की जरूरत है, तो चारा काटने की मशीन एक मूल्यवान अतिरिक्त उपकरण हो सकता है। यह पुआल, घास और अन्य चारे को छोटे टुकड़ों में काटने और काटने में मदद करता है।

 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर: कुछ छोटे पैमाने के किसान मिनी-कंबाइन हार्वेस्टर में निवेश करने पर विचार कर सकते हैं जो छोटे खेतों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं और कई फसलों की कटाई कर सकते हैं। प्रीत और फील्डकिंग जैसे ब्रांड ऐसी मशीनें पेश करते हैं।यदि बजट कुछअच्छा होतो किर्लोस्कर का 15 एचपी वाला मेगा टी मिनी कंबाइन हार्वेस्टर जिसकी कीमत लगभग 9 लख रुपए है एक अच्छा विकल्प हो सकता है।


अनुकूलित स्थानीय मशीनें: आपकी विशिष्ट फसल और क्षेत्र के आधार पर, आपको स्थानीय रूप से निर्मित फसल काटने वाली मशीनें या मौजूदा मशीनरी में संशोधन मिल सकते हैं जो आपकी आवश्यकताओं और बजट के अनुरूप हों।
 मशीन चुनते समय, रखरखाव की आवश्यकताओं, स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता और उपकरण के संचालन और रखरखाव के लिए प्रशिक्षण जैसे कारकों पर विचार करें। इसके अतिरिक्त, अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं और परिस्थितियों के आधार पर एक सूचित निर्णय लेने के लिए स्थानीय कृषि विस्तार सेवाओं या अपने क्षेत्र में समान उपकरणों के साथ अनुभव रखने वाले साथी किसानों से सलाह लेना एक अच्छा विचार है।

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कंटोला यानि स्पाइन गौर्ड

 कंटोला, जिसे वैज्ञानिक रूप से मोमोर्डिका डियोइका के नाम से जाना जाता है, कुकुर्बिटेसी परिवार से संबंधित एक उष्णकटिबंधीय बेल का पौधा है। इसे टीसेल लौकी, स्पाइनी लौकी और चठैल जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। यह पौधा भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया का मूल निवासी है और अपने खाद्य फलों (सब्जी) के लिए लोकप्रिय रूप से उगाया जाता है।कुछ लोग इसे सबसे ताकतवर सब्जी कहते हैं तो कुछ इसके स्वाद के दीवाने हैं।फाइबर ,मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर चठैल एक महँगी सब्जी है।सामान्यतः यह एक जंगली या प्राकृतिक रूप से उगने वाली सब्जी है किन्तु पिछले कुछ दशकों से इसकी खेती भी की जाने लगी है। बाजार में इसकी मांग की तुलना में आपूर्ति बहुत कम है।अतः इसकी खेती में व्यावसायिक संभावनाएं बहुत ज्यादा हैं।



स्पाइन लौकी उगाने में आपकी मदद के लिए यहां कुछ दिशानिर्देश दिए गए हैं:


जलवायु: स्पाइन लौकी गर्म और आर्द्र जलवायु में पनपती है। इसके अंकुरण और विकास के लिए न्यूनतम तापमान लगभग 70°F (21°C) की आवश्यकता होती है। यह आमतौर पर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बारहमासी के रूप में उगाया जाता है, लेकिन ठंडी जलवायु में इसकी वार्षिक खेती भी की जा सकती है।


मिट्टी: पौधा अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी पसंद करता है जो कार्बनिक पदार्थों से भरपूर हो। भात करेला की खेती के लिए थोड़ा अम्लीय से तटस्थ पीएच स्तर (लगभग 6.0-7.0) उपयुक्त है। सुनिश्चित करें कि मिट्टी ढीली और उपजाऊ हो।


सूर्य का प्रकाश: कंटोला को उगने और फल पैदा करने के लिए बहुत अधिक सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है। दिन में कम से कम 6-8 घंटे पूर्ण सूर्य के संपर्क में रहने वाला स्थान चुनें।


रोपण: आप कंटोला के बीजों को घर के अंदर बीज ट्रे में बोना शुरू कर सकते हैं या सीधे बगीचे में बो सकते हैं। यदि आप घर के अंदर बीज बोना शुरू कर रहे हैं, तो उन्हें अपने क्षेत्र में आखिरी ठंढ की तारीख से 4-6 सप्ताह पहले बोएं। जब पाला पड़ने की सारी संभावनाएँ समाप्त हो जाएँ तो पौधों को बाहर रोपें। कंटोला के बीज को मिट्टी में लगभग 1 इंच गहराई में लगाना चाहिए।बीजों के बजाए कंटोला को उगाने के लिए इसके कंद का उपयोग भी किया जा सकता है यह अपेक्षाकृत अधिक फायदेमंद तरीका है क्योंकि इससे उगने वाले पौधे जल्दी बढ़ते हैं और इनमें फल भी जल्दी लगते किंतु इनसे खेती करना बड़े पैमाने पर कठिन है। वास्तव में एक पूर्ण विकसित पौधे के नीचे सीमित मात्रा में कंद लगते हैं।अतः बड़े पैमाने पर इसकी खेती के लिए कंद का उपयोग करना संभव नहीं है।बीज कहां उपलब्ध है?यहां क्लिक करें



दूरी: पौधों को फैलने और चढ़ने के लिए पर्याप्त जगह दें। विकास के लिए पर्याप्त जगह प्रदान करने के लिए प्रत्येक पौधे के बीच कम से कम 3-5 फीट का अंतर छोड़ें।


पानी देना: मिट्टी को लगातार नम रखें लेकिन जलभराव न रखें। नियमित रूप से पानी देना महत्वपूर्ण है, खासकर सूखे के दौरान। सावधान रहें कि अधिक पानी न डालें, क्योंकि अत्यधिक नमी से जड़ें सड़ सकती हैं।


जाली और समर्थन: स्पाइन लौकी एक जोरदार पर्वतारोही है, इसलिए जालीदार सपोर्ट, बाड़, या अन्य सहायता संरचनाएं प्रदान करना आवश्यक है। इससे पौधे को लंबवत रूप से बढ़ने में मदद मिलेगी और आपके बगीचे में जगह की बचत होगी। सुनिश्चित करें कि समर्थन लताओं और फलों का वजन सहन करने के लिए पर्याप्त मजबूत है।



उर्वरक: रोपण से पहले मिट्टी को समृद्ध करने के लिए जैविक खाद या अच्छी तरह सड़ी हुई खाद का उपयोग करें। आप स्वस्थ विकास और फलों के विकास को बढ़ावा देने के लिए बढ़ते मौसम के दौरान संतुलित उर्वरक भी डाल सकते हैं।


कीट और रोग नियंत्रण: स्पाइन लौकी कुछ कीटों जैसे एफिड्स, ककड़ी बीटल और व्हाइटफ्लाइज़ के लिए अतिसंवेदनशील होती है। नियमित रूप से अपने पौधों का निरीक्षण करें और कीटों के संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए उचित उपाय करें, जैसे कि जैविक कीटनाशकों का उपयोग करना या लाभकारी कीटों को शामिल करना। फंगल रोग स्पाइन लौकी को भी प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए जोखिम को कम करने के लिए अच्छा वायु परिसंचरण सुनिश्चित करें और ओवरहेड पानी देने से बचें।


कटाई: स्पाइन लौकी के फल आमतौर पर तब काटे जाते हैं जब वे अभी भी छोटे और कोमल होते हैं, आमतौर पर लंबाई में लगभग 2-3 इंच होते हैं। नियमित रूप से कटाई करने से पौधे को अधिक फल पैदा करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। बेल से फल काटने के लिए तेज़ चाकू या छंटाई वाली कैंची का उपयोग करें।


इन दिशानिर्देशों का पालन करके, आप सफलतापूर्वक स्पाइन लौकी उगा सकते हैं और इसके स्वादिष्ट फलों का आनंद ले सकते हैं। शुभ बागवानी!



टेरेस गार्डनिंग आइडियाज |Terrace Gardening Ideas

 आजकल की शहरी जीवन शैली में स्वच्छ एवं शुद्ध सब्जियां पाना जरा मुश्किल हो गया है। वहीं कंक्रीट के जंगल में प्राकृतिक हरियाली का अभाव है।इस आलेख में हम जानने की कोशिश करेंगे कि कैसे अपने आवासीय परिवेश में नेचर को समाहित करते हुए सुहाना एहसास ले सकते हैं।छत पर बागवानी आपके पास  उपलब्ध स्थान का अधिकतम उपयोग करने और पौधों और सब्जियों को उगाने के लाभों का आनंद लेने का एक शानदार तरीका है। इस के लिए यहां कुछ उपयोगी विचार दिए गए हैं:



अपनी जगह का आकलन करें: अपना टैरेस गार्डन शुरू करने से पहले, उपलब्ध जगह का आकलन करें और सूरज की रोशनी, हवा के पैटर्न और छत की वजन वहन करने की क्षमता जैसे कारकों पर विचार करें। इससे आपको तदनुसार योजना बनाने और उपयुक्त पौधे चुनने में मदद मिलेगी।



कंटेनर बागवानी: कंटेनर बागवानी का विकल्प चुनें क्योंकि यह लचीलेपन और आसान गतिशीलता की अनुमति देता है। जगह का अधिकतम उपयोग करने के लिए विभिन्न आकारों और सामग्रियों के कंटेनरों का उपयोग करें, जैसे बर्तन, हैंगिंग बास्केट और वर्टिकल प्लांटर्स।plant support cage


सही पौधे चुनें: ऐसे पौधों का चयन करें जो आपकी जलवायु में पनपते हों और आपकी छत को मिलने वाली धूप की मात्रा के अनुकूल हों। तुलसी, थाइम और पुदीना जैसी जड़ी-बूटियाँ, साथ ही चेरी टमाटर और सलाद जैसी कॉम्पैक्ट सब्जियाँ, छत के बगीचों के लिए अच्छे विकल्प हैं। दृश्य आकर्षण के लिए रसीले पौधों और फूलों वाले बारहमासी जैसे सजावटी पौधों पर विचार करें।


ऊर्ध्वाधर बागवानी: जाली, दीवार पर लगे प्लांटर्स, या लटकती टोकरियाँ शामिल करके ऊर्ध्वाधर स्थान का उपयोग करें। खीरे, बीन्स, या आइवी जैसी बेलों को लंबवत रूप से बढ़ने, जगह बचाने और आपकी दीवारों पर हरा स्पर्श जोड़ने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है।


माइक्रॉक्लाइमेट बनाएं: अपने छत के बगीचे में माइक्रॉक्लाइमेट बनाने के लिए बड़े बर्तनों या प्लांटर्स का उपयोग करें। हवा के अवरोध के रूप में कार्य करने के लिए हवा की दिशा में लम्बे पौधे लगाएं और अधिक नाजुक पौधों के लिए छाया प्रदान करें जिन्हें तेज हवाओं या तीव्र धूप से आश्रय की आवश्यकता होती है।


कुशल जल प्रणाली: उचित जल सुनिश्चित करने और पानी की बर्बादी को रोकने के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली स्थापित करें या स्व-पानी वाले कंटेनरों का उपयोग करें। इसके अतिरिक्त, मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए गीली घास या पानी बनाए रखने वाली सामग्री का उपयोग करने पर विचार करें।

खाद डालना: कंटेनर में उगाए गए पौधों को अक्सर नियमित रूप से खाद देने की आवश्यकता होती है क्योंकि समय के साथ पॉटिंग मिश्रण में पोषक तत्व कम हो सकते हैं। पौधों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार संतुलित, धीमी गति से निकलने वाले उर्वरक या तरल या पानी में घुलनशील उर्वरकों के पूरक का उपयोग करें।

Extra effort

खाद बनाना: रसोई के स्क्रैप को रीसायकल करने और अपने पौधों के लिए पोषक तत्वों से भरपूर खाद बनाने के लिए अपनी छत पर एक कंपोस्टिंग बिन शुरू करें। खाद न केवल मिट्टी को समृद्ध बनाती है बल्कि अपशिष्ट को भी कम करती है।


बैठने के क्षेत्रों को एकीकृत करें: अपनी छत पर एक आरामदायक बैठने का क्षेत्र बनाएं, जिससे आप आराम कर सकें और अपने बगीचे की सुंदरता का आनंद ले सकें। मौसम प्रतिरोधी फर्नीचर का उपयोग करें और छतरियां या पेर्गोलस जैसे छाया तत्व शामिल करें।



सजावटी तत्व जोड़ें: रंगीन प्लांटर्स, गार्डन लाइट्स, विंड चाइम्स या सजावटी पत्थरों जैसे सजावटी तत्वों के साथ अपने टैरेस गार्डन के सौंदर्यशास्त्र को बढ़ाएं। ये आपके स्थान में आकर्षण और व्यक्तिगत स्पर्श जोड़ सकते हैं।


नियमित रखरखाव: कीटों या बीमारियों के लिए नियमित रूप से अपने पौधों का निरीक्षण करें और उचित उपाय करें। पौधों का आकार बनाए रखने और स्वस्थ विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यकतानुसार उनकी काट-छाँट करें। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपका बगीचा फलता-फूलता रहे, पानी देने, खाद देने और निराई-गुड़ाई के कार्यों में शीर्ष पर रहें।प्रूनिंग और निराई के टूल.


याद रखें, प्रत्येक टैरेस गार्डन अद्वितीय है, और इन विचारों को अपनी विशिष्ट जगह और प्राथमिकताओं के अनुरूप बनाना महत्वपूर्ण है। शुभ बागवानी!


National vegetable of India|भारत की राष्ट्रीय सब्जी|

 भारत की राष्ट्रीय सब्जी कद्दू है। 1 अप्रैल 2021 को इसे भारत की राष्ट्रीय सब्जी घोषित किया गया था। कद्दू भारत में सांस्कृतिक महत्व रखता है और देश भर में विभिन्न क्षेत्रीय व्यंजनों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।पके हुए कद्दू को लम्बे समय के लिए स्टोर किया जा सकता है। यहाँ कद्दू से हमारा अभिप्राय है कुम्हड़ा,काशीफल,pumpkin,क़दीमा।लौकी (bottle gourd) को भी कद्दू कहा जाता है किन्तु इसे नेशनल वेजिटेबल का दर्जा नहीं मिला है। 



कद्दू उगाने के लिए, इन सामान्य चरणों का पालन करें:


सही किस्म चुनें: कद्दू की कई किस्में उपलब्ध हैं, इसलिए अपनी जलवायु और बढ़ती परिस्थितियों के अनुकूल एक का चयन करें। सामान्य किस्मों में कनेक्टिकट फील्ड, शुगर पाई और जैक ओ'लैंटर्न शामिल हैं।


मिट्टी तैयार करें: कद्दू अच्छे जल निकास वाली, उपजाऊ मिट्टी में पनपते हैं। सुनिश्चित करें कि खाद या अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद डालकर मिट्टी कार्बनिक पदार्थों से समृद्ध है। पीएच स्तर 6.0 और 7.5 के बीच होना चाहिए।


बीज बोएं: आखिरी ठंढ की तारीख के बाद कद्दू के बीज सीधे बगीचे में लगाएं जब मिट्टी गर्म हो जाए. लगभग 2-3 फीट की दूरी पर टीले या पहाड़ियाँ बनाएँ, क्योंकि कद्दू को फैलने के लिए पर्याप्त जगह की आवश्यकता होती है। प्रति टीले में 3-4 बीज लगाएं, लगभग 1 इंच गहरा।



उचित देखभाल प्रदान करें: मिट्टी को लगातार नम रखें, लेकिन अधिक पानी देने से बचें, क्योंकि इससे जड़ सड़ सकती है। एक बार अंकुर उभरने के बाद, उन्हें पतला कर दें, जिससे प्रति टीला सबसे मजबूत पौधा निकल जाए। पौधों के चारों ओर मल्चिंग करने से नमी बनाए रखने और खरपतवारों को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।


समर्थन प्रदान करें (वैकल्पिक): यदि आप कद्दू की बड़ी किस्में उगा रहे हैं या उन्हें कीटों और बीमारियों से बचाना चाहते हैं, तो आप जमीन से फलों को उठाने के लिए जाली या समर्थन का उपयोग कर सकते हैं।


कीटों और बीमारियों की निगरानी करें: आम कद्दू कीटों जैसे स्क्वैश बग और ककड़ी बीटल के लिए देखें। यदि आवश्यक हो तो जैविक कीट नियंत्रण विधियों को लागू करें। इसके अतिरिक्त, अच्छा वायु संचार प्रदान करके और पानी देते समय पत्तियों को गीला होने से बचाकर फफूंद जनित रोगों को रोकें।


परागण: कद्दू को फल विकसित करने के लिए परागण की आवश्यकता होती है। मधुमक्खियाँ और अन्य परागणकर्ता आमतौर पर इसका ध्यान रखते हैं, लेकिन अगर आपके क्षेत्र में परागणकों की कमी है, तो आप एक छोटे ब्रश या कपास झाड़ू का उपयोग करके फूलों को हाथ से परागित कर सकते हैं।


कटाई: किस्म के आधार पर कद्दू को परिपक्व होने में लगभग 75-120 दिन लगते हैं। जब त्वचा सख्त हो जाए और वांछित रंग तक पहुंच जाए तो उन्हें काट लें। कुछ इंच के तने को छोड़कर, कद्दू को बेल से काट लें। भंडारण या उपयोग करने से पहले उन्हें लगभग दो सप्ताह तक गर्म, सूखी जगह में ठीक होने दें।


आपके द्वारा चुनी गई कद्दू की किस्म के लिए विशिष्ट आवश्यकताओं की जांच करना याद रखें, क्योंकि उनकी बढ़ती परिस्थितियों में मामूली बदलाव हो सकते हैं।

Zucchini और कद्दू दोनों कुकुर्बिटेसी परिवार के सदस्य हैं और एक ही जीनस, कुकुर्बिता से संबंधित हैं। जबकि वे कुछ समानताएँ साझा करते हैं, तोरी(Zucchini) और कद्दू के बीच कई अंतर हैं:


सूरत: तोरी आमतौर पर कद्दू से छोटी और पतली होती है। तोरी की त्वचा चिकनी, गहरे हरे रंग की होती है, जबकि कद्दू के विभिन्न रंग और आकार हो सकते हैं, छोटे से लेकर बड़े तक।


बनावट और स्वाद: ज़ूकिनी में एक कोमल, हल्का स्वाद होता है जिसमें थोड़ा मीठा और अखरोट जैसा स्वाद होता है। इसमें एक नरम, नम मांस है। दूसरी ओर, कद्दू में सख्त और सघन गूदा होता है। कद्दू का स्वाद आम तौर पर मीठा और अधिक मिट्टी वाला होता है, खासकर जब पकाया जाता है।


पाक संबंधी उपयोग: तोरी बहुपयोगी है और आमतौर पर स्वादिष्ट व्यंजनों जैसे स्टिर-फ्राइज़, सौते, सलाद और ब्रेड या मफिन में एक घटक के रूप में उपयोग की जाती है। इसे अक्सर तब खाया जाता है जब यह अपरिपक्व होता है और त्वचा अभी भी कोमल होती है। दूसरी ओर, कद्दू का उपयोग अक्सर मीठे और नमकीन दोनों तरह के व्यंजनों में किया जाता है, जैसे कि कद्दू पाई, सूप, करी और भुनी हुई सब्जी मेडले। कद्दू आमतौर पर पूरी तरह से परिपक्व होने और मांस के सख्त होने पर काटा जाता है।


पोषण संबंधी प्रोफाइल: तोरी और कद्दू में समान पोषण संबंधी प्रोफाइल होते हैं, लेकिन विशिष्ट किस्म के आधार पर कुछ भिन्नताएं हो सकती हैं। दोनों कैलोरी और वसा में कम हैं, और वे आहार फाइबर, विटामिन ए और सी, और पोटेशियम और मैग्नीशियम जैसे खनिजों के अच्छे स्रोत हैं।


कटाई का समय: तोरी की कटाई आमतौर पर तब की जाती है जब यह युवा और कोमल होती है, आमतौर पर लगभग 6-8 इंच लंबी होती है। तोरी को बहुत बड़ा होने और उसका स्वाद खोने से बचाने के लिए उसे नियमित रूप से काटना महत्वपूर्ण है। दूसरी ओर, कद्दू की कटाई तब की जाती है जब वे पूर्ण परिपक्वता तक पहुँच जाते हैं, जिसमें रोपण के बाद कई महीने लग सकते हैं।


जबकि तोरी और कद्दू की अपनी विशिष्ट विशेषताएं हैं, उन्हें कुछ व्यंजनों में एक दूसरे के स्थान पर इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि दोनों के बीच बनावट और स्वाद के अंतर पकवान के अंतिम परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं।



Celery in Hindi

सेलरी यानि अजमोद(Apium graveolens) भूमध्यसागरीय और मध्य पूर्व क्षेत्रों का मूल निवासी है। प्राचीन ग्रीस और रोम में इसके उपयोग का इतिहास मिलत...